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This Article is From May 23, 2024

न बड़ों को छोड़ा, न बच्चों को : भ्रामक विज्ञापनों पर ASCI ने क्यों कहा - झांसे में न आएं

देश में विज्ञापनों से जुड़े कायदे कानूनों की अनदेखी करने के मामले में हेल्थ केयर यानी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र से जुड़ी कंपनियां और बेबी केयर कंपनियां टॉप 10 में हैं.

न बड़ों को छोड़ा, न बच्चों को : भ्रामक विज्ञापनों पर ASCI ने क्यों कहा - झांसे में न आएं
नई दिल्ली:

जब भी आप फोन यूज करते हैं. किसी न किसी प्रोडक्ट का विज्ञापन आ रहा होता है. कई ऐसी बातें विज्ञापन में की जाती हैं जो भ्रामक होती हैं. कई बार सेलिब्रिटीज़ भी इस तरह के विज्ञापन करते नज़र आते हैं और फिर आपके हमारे जैसे लोग गुमराह हो जाते हैं.  Advertising standard council of India यानी ASCI ने बुधवार को जो अपनी सालाना रिपोर्ट दाखिल की है वो चौंकाने वाली थी.  भ्रामक विज्ञापनों ने ना बड़ों को छोड़ा और ना ही छोटे बच्चों को, रिपोर्ट के मुताबिक जिन 8,229 विज्ञापनों की जांच की गयी उनमें सबसे ज़्यादा 1,569 यानी 19 फीसदी विज्ञापन सेहत से जुड़े थे. इसके बाद विदेशी सट्टेबाजी के 17 फीसदी मामले रहे. पर्सनल केयर के 13 फीसदी मामले देखे गए. आपको जानकार हैरानी होगी कि टॉप 10 में पहली बार बेबीकेयर कैटेगरी भी शामिल थे. 

 हेल्थ केयर के क्षेत्र में सबसे अधिक भ्रामक विज्ञापन
देश में विज्ञापनों से जुड़े कायदे कानूनों की अनदेखी करने के मामले में हेल्थ केयर यानी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र से जुड़ी कंपनियां और बेबी केयर कंपनियां टॉप 10 में हैं. पहले नंबर पर हेल्थ केयर कंपनियां हैं. इस रिपोर्ट की कुछ खास बातें ये हैं कि जिन 8,229 विज्ञापनों की जांच की गई उनमें से 94% के मामले में ASCI ने अपनी ओर से पहल की थी यानी खुद ही संज्ञान लिया था.85% आपत्तिजनक विज्ञापन डिजिटल मीडिया से थे.असरदार लोग यानी इन्फ्लुएंसर्स कायदे कानून ना मानने के 21% मामलों में शामिल थे. 

कंपनियों ने ना बड़ों को छोड़ा और ना ही छोटे बच्चों को 
सुप्रीम कोर्ट ने भले ही  गुमराह करने वाले विज्ञापनों के मामले में पतंजलि की खिंचाई की हो लेकिन 2023-24 के दौरान निज्ञापनों के कायदे कानूनों का उल्लंघन करने के मामले में Mamaearth parent Honasa Consumer Pvt. Ltd सबसे आगे है.  ASCI  के मुताबिक उसके इस तरह के 187 विज्ञापन थे. पतंजलि के इस तरह के 26 विज्ञापन थे. पतंजलि के कुल 20 ब्रांड को लेकर शिकायतें मिलीं.  इनमें से सभी में बदलाव की ज़रूरत महसूस की गई. ये विज्ञापन पतंजलि आयुर्वेद से लेकर दंतकांति टूथपेस्ट पंतजिल च्यवनप्राश शहद, स्प्रे और दर्द निवारक गोलियों तक के थे. जो कि बाज़ार में सबसे ज़्यादा बिकने वाले उत्पादों में से एक हैं. 

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से लेकर कंपनियों तक पर उठाया था सवाल
भ्रामक विज्ञापनों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि को फटकार लगायी थी. सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि से कहा था कि लाइलाज बिमारियों को लेकर प्रचार करना कानूनी तौर पर गलत है. लेकिन आप उसे लेकर ही प्रचार कर रहे थे. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को भी इसे लेकर फटकार लगायी थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जो इन्फ्लुएंसर्स हैं उनकी भी जवाबदेही तय होनी चाहिए. जो विज्ञापन कंपनी है और जो एड छापते हैं उनके ऊपर भी कोई न कोई नियम होने चाहिए. सुप्रीम कोर्ट में यह मामला पतंजलि से काफी आगे बढ़ चुका है. अब इसके दायरे में बड़ी-बड़ी ड्रग कंपनियां आ गयी है. 

ASCI की प्रमुख मनीषा कपूर ने क्या कहा? 
ASCI की की CEO ने कहा कि हेल्थ और वेल्थ को लेकर उपभोक्ता सबसे ज्यादा गुमराह होते हैं. और इसके दुष्परिणाम बेहद खराब होते हैं. यही कारण है कि ASCI इसे लेकर बेहद गंभीर है. हम अपने स्तर से भी कई शिकायतों को उठाते हैं. कई बार उपभोक्ताओं को भी शिकायत करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.  हेल्थ केयर जैसे सेक्टर पर हमारी पैनी नजर होती है. 

यह समाज के लिए बेहद खतरनाक: सामाजिक कार्यकर्ता
सामाजिक कार्यकर्ता विनय पाठक ने कहा कि हेल्थ केयर के क्षेत्र में होने वाले भ्रामक विज्ञापन समाज के लिए सबसे अधिक खतरनाक होता है. कोई भी कंपनी अगर भ्रामक विज्ञापन दे रहे हो सब पर सुप्रीम कोर्ट को संज्ञान लेना चाहिए.  इस तरह के विज्ञापनों का बहुत बड़ा मकड़जाल है. इसके लिए कई बार विदेशी एजेंसी भी जिम्मेदार होते हैं. स्वदेशी से लोगों को दूर ले जाने के लिए भी इसका उपयोग होता था. 

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