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This Article is From Sep 21, 2020

शाहीन बाग धरना : SC ने फैसला सुरक्षित रखा, अदालत ने कहा- विरोध करने का अधिकार संपूर्ण नहीं लेकिन... 

याचिकाकर्ता अमित साहनी ने कहा, "भविष्य में इस तरह का विरोध जारी नहीं रहना चाहिए. बड़े जनहित में, एक फैसला  लिया जा सकता है."

शाहीन बाग धरना : SC ने फैसला सुरक्षित रखा, अदालत ने कहा- विरोध करने का अधिकार संपूर्ण नहीं लेकिन... 
सुप्रीम कोर्ट विवाद के मद्देनजर विरोध प्रदर्शन के अधिकार पर फैसला सुनाएगा (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:

दिल्ली के शाहीन बाग (Shaheen Bagh) में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ सड़क पर धरने पर बैठने के मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को फैसला सुरक्षित रख लिया है. सुप्रीम कोर्ट विवाद के मद्देनजर विरोध प्रदर्शन के अधिकार पर फैसला सुनाएगा. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि लोगों के आने-जाने के अधिकार के साथ विरोध के अधिकार को संतुलित होना चाहिए. जस्टिस एस के कौल ने कहा कि विरोध करने का अधिकार संपूर्ण नहीं है, लेकिन फिर भी एक अधिकार है. एक सार्वभौमिक नीति नहीं हो सकती क्योंकि हर बार स्थितियां और तथ्य अलग-अलग होते हैं. संसदीय लोकतंत्र में, हमेशा बहस का एक अवसर होता है. एकमात्र मुद्दा यह है कि इसे कैसे संतुलित किया जाए. 

शीर्ष अदालत ने कहा कि नियुक्त किए गए वार्ताकारों द्वारा दर्ज की गई रिपोर्ट को भी अदालत देखेगी. इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता अमित साहनी और नंदकिशोर गर्ग के वकील शशांक देव सुधी से कहा कि धरना उठ चुका है क्या आप इसे वापस ले रहे हैं? इस पर याचिकाकर्ता ने 'नहीं' में जवाब दिया.  

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केंद्र की ओर से एसजी तुषार मेहता ने कहा कि पहले SC ने मामले में किसी भी हस्तक्षेप अर्जी पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि लोग विरोध प्रदर्शन करने के पूर्ण अधिकार का दावा नहीं कर सकते, लेकिन उनका कहना है कि लोगों को शांतिपूर्ण विरोध करने का अधिकार है. हालांकि, इससे सड़कों को अवरुद्ध करने से आम जनता को असुविधा नहीं होनी चाहिए. 

याचिकाकर्ता अमित साहनी ने कहा, "भविष्य में इस तरह का विरोध जारी नहीं रहना चाहिए. बड़े जनहित में, एक फैसला  लिया जा सकता है. SC में इस मामले को लंबित रखा जाए और एक विस्तृत आदेश दिया जाए. राजनीतिक मजबूरी ऐसे विरोध को जारी रखने का कारण नहीं हो सकती. इस तरह के विरोध प्रदर्शन जारी नहीं रह सकते. सड़कों को अवरुद्ध न करने के कोर्ट के आदेश के बावजूद, कुछ विरोध प्रदर्शन 100 दिनों तक चले. इस मामले को लंबित रखें और निर्देश पारित करें."

वहीं, भीम आर्मी के चीफ चंद्रशेखर आजाद व अन्य की ओर से महमूद प्राचा ने कहा- अगर इस तरह का विरोध शांति से हो रहा है तो कोई निर्देश जारी नहीं किया जाना चाहिए. कुछ लोगों को पहले ऐसे विरोध प्रदर्शनों में दंगा पैदा करने के लिए भेजा गया था. ऐसा दोबारा नहीं होना चाहिए. विरोध करने का अधिकार एक पूर्ण अधिकार है. हमारी प्रस्तुतियां यह है कि राज्य मशीनरी का कथित रूप से दुरुपयोग किया गया था. एक व्यक्ति, एक विशेष पार्टी के व्यक्ति से, वहां क्यों गया और वहां एक अलग माहौल क्यों बनाया गया? हालांकि, कोविड के चलते ये धरना प्रदर्श खत्म कर दिया गया था.

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