अशोक यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्र के एक और प्रोफेसर सब्यसाची दास ने अपने सहयोगी के पद छोड़ने के बाद, अपने रिसर्च पेपर के प्रकाशन को लेकर इस्तीफा दे दिया है. इस रिसर्च में चुनाव में हेरफेर की परिकल्पना के पक्ष में सबूत तलाशे गए हैं. दास के पेपर, 'डेमोक्रेटिक बैकस्लाइडिंग इन द वर्ल्ड्स लार्जेस्ट डेमोक्रेसी' ने निजी विश्वविद्यालय को कांग्रेस और बीजेपी के बीच पालिटिकल वार के केंद्र में ला खड़ा किया है. यूनिवर्सिटी ने दास का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है.
अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसरों ने विश्वविद्यालय को एक खुला पत्र लिखा है. इसमें कहा गया है कि, "प्रोफेसर दास ने एकेडमिक प्रेक्टिस के किसी भी स्वीकृत मानदंड का उल्लंघन नहीं किया... उनके हालिया अध्ययन की खूबियों की जांच करने की इस प्रक्रिया में सरकारी निकाय का हस्तक्षेप संस्थागत उत्पीड़न है. यह अकादमिक स्वतंत्रता में कटौती करता है और विद्वानों को भय के माहौल में काम करने के लिए मजबूर करता है."
प्रोफेसरों ने पत्र में कहा, "हम इसकी कड़े शब्दों में निंदा करते हैं और सरकारी विभाग द्वारा व्यक्तिगत अर्थशास्त्र संकाय सदस्यों के शोध का मूल्यांकन करने के किसी भी भविष्य के प्रयास में सामूहिक रूप से सहयोग करने से इनकार करते हैं."
अर्थशास्त्र के प्रोफेसर पुलाप्रे बालाकृष्णन ने भी इस्तीफा दे दिया है. उनका शोध कार्य भारतीय अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति की प्रक्रिया से लेकर देश की आर्थिक वृद्धि तक विस्तारित है.
पत्र में प्रोफेसरों ने दो मांगें रखी हैं, दास को अशोक विश्वविद्यालय में उनके पद पर बिना शर्त बरकरार रखा जाए और सरकारी विभाग किसी भी समिति या किसी अन्य संरचना के जरिए फैकल्टी की रिसर्च के मूल्यांकन में कोई भूमिका न निभाए.
रिसर्च पेपर में दास ने कहा है कि करीबी मुकाबले वाले निर्वाचन क्षेत्रों में बीजेपी की असंगत जीत चुनाव के समय पार्टी द्वारा शासित राज्यों में काफी हद तक केंद्रित है. पेपर में कहा गया है कि मौजूदा पार्टी के जीत मार्जिन चर के घनत्व ने शून्य की सीमा मूल्य पर एक असंतत उछाल प्रदर्शित किया है.
उन्होंने लिखा, इसका तात्पर्य यह है कि बीजेपी ने उन निर्वाचन क्षेत्रों में असंगत रूप से अधिक जीत हासिल की, जहां वह मौजूदा पार्टी थी और जहां करीबी मुकाबला था. रिसर्च पेपर में मुख्य रूप से चुनाव में हेरफेर की परिकल्पना के पक्ष में सबूतों की खोज की गई है. इसमें यह भी तर्क दिया गया है कि हेरफेर बूथ स्तर पर स्थानीय है, और इसका अर्थ यह है कि हेरफेर उन निर्वाचन क्षेत्रों में केंद्रित हो सकती है जहां पर्यवेक्षकों की बड़ी हिस्सेदारी है, जो कि बीजेपी शासित राज्यों में राज्य सिविल सेवा अधिकारी हैं.
विश्वविद्यालय ने एक बयान में कहा है कि विचाराधीन पेपर की अभी तक एक महत्वपूर्ण समीक्षा प्रक्रिया पूरी नहीं की है और इसे अकादमिक जर्नल में प्रकाशित नहीं किया गया है. अशोका फैकल्टी, छात्रों या कर्मचारियों की उनकी व्यक्तिगत क्षमता में सोशल मीडिया गतिविधियों या सार्वजनिक सक्रियता में विश्वविद्यालय का रुख प्रतिबिंबित नहीं होता है.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं