
ऑपरेशन सिंदूर पर सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर गिरफ्तारी के खिलाफ अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सर्शत अंतरिम जमानत दे दी. अदालत ने कहा कि अली खान भारतीय धरती पर हुए आतंकवादी हमले या हमारे देश द्वारा दिए गए जवाबी हमले के संबंध में कोई पोस्ट नहीं करेंगे. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोपी ने जो दिखाने की कोशिश की, वह जांच का विषय है. पूरा लहजा और भाव यही है कि वो युद्ध-विरोधी हैं.
अदालत ने कहा है कि राणा आतंकी हमले या स्ट्राइक पर कोई पोस्ट नहीं करेंगे. पासपोर्ट सरेंडर करेंगे. साथ ही अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता दोनों पोस्टों से संबंधित कोई भी ऑनलाइन लेख नहीं लिख सकते हैं या कोई भी ऑनलाइन भाषण नहीं देंगे जो जांच का विषय हैं. साथ ही अदालत ने 24 घंटे के अंदर एसआईटी के गठन का भी आदेश दिया है.
गौरतलब है कि अशोका यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख प्रोफेसर महमूदाबाद को पिछले हफ्ते ऑपरेशन सिंदूर पर सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर गिरफ्तार किया गया था. उन पर समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने और राष्ट्रीय अखंडता और संप्रभुता को खतरे में डालने वाले कृत्यों से जुड़ी धाराओं के तहत आरोप लगाए गए थे.
कपिल सिब्बल ने रखा पक्ष
प्रोफेसर अली खान मेहमूदाबाद की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पक्ष रखा. प्रोफेसर की पोस्ट पढ़ने के बाद न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि क्या यह किसी अखबार में छपी खबर है या सोशल मीडिया पोस्ट?
सिब्बल: यह एक ट्विटर पोस्ट है.
सिब्बल ने प्रोफेसर अली खान मेहमूदाबाद की पूरी पोस्ट पढ़कर सुनाने के बाद कहा कि यह अत्यंत देशभक्ति से भरा हुआ बयान है. जो लोग बिना सोचे समझे युद्ध की मांग कर रहे हैं. यह टिप्पणी मीडिया के लिए है. यहां उन्हीं की बात की जा रही है. न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि युद्ध के गंभीर परिणामों पर टिप्पणी करते हुए अब ये राजनीति पर उतर आए हैं? कृपया बयान फिर से पढ़िए.
यह स्पष्ट है कि वह दक्षिणपंथी टिप्पणीकारों को संबोधित कर रहे हैं. हर किसी को अपनी बात कहने का अधिकार है. लेकिन इस तरह के सांप्रदायिक मुद्दों पर बात करने का यह समय है क्या? देश एक बड़े संकट से गुजरा है. राक्षस देश में घुसे और हमारे लोगों पर हमला किया! ऐसे समय में लोग सस्ती लोकप्रियता क्यों बटोरना चाहते हैं?
सिब्बल ने कहा कि यह बात 10 तारीख के बाद भी कही जा सकती थी, लेकिन इसमें कोई आपराधिक मंशा नहीं है!एफआईआर क्यों दर्ज होनी चाहिए? अगले ही दिन उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया! सुप्रीम कोर्ट: ऐसे बयान देने की क्या ज़रूरत थी इस समय? इंतज़ार कर सकते थे.
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