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This Article is From May 12, 2022

ताजमहल के 22 कमरे बंद ही रहेंगे, "ये मुद्दा इतिहासकारों पर छोड़ दें": हाईकोर्ट

Taj Mahal News : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि ताजमहल किसने बनवाया ये तय करना कोर्ट का काम नहीं है. ऐसे तो कल आप जजों से चेंबर में जाने की मांग करेंगे.

Taj mahal : ताजमहल के 22 बंद कमरों को खुलवाने की याचिका खारिज

नई दिल्ली:

ताजमहल में 22 कमरों (Taj Mahal Closed Rooms) का सर्वे की मांग करने वाली याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खारिज कर दी है. हाईकोर्ट ने कहा कि ताजमहल किसने बनवाया ये तय करना कोर्ट का काम नहीं है. ऐसे तो कल आप जजों से चेंबर में जाने की मांग करेंगे. याचिकाकर्ता की मांग के मुताबिक ये अदालत फैक्ट फाइंडिंग कमेटी गठित नहीं कर सकती. इस मामले में अदालत हस्तक्षेप नहीं करेगी. कोर्ट का काम ऐतिहासिक तथ्यों की पुष्टि और रिसर्च करने का नहीं है. ये काम ऐतिहासिक तथ्यों के विशेषज्ञों और इतिहासकारों पर हो छोड़ देना उचित है. हम ऐसी याचिका पर विचार नहीं कर सकते . याचिकाकर्ता की कोर्ट से मांग और गुहार जिन मुद्दों पर हैं वो न्यायिक समीक्षा के दायरे में नहीं हैं. कोर्ट ने आदेश में कहा कि स्मारक अधिनियम 1951 में क्या ये जिक्र या घोषणा है कि ताजमहल मुगलों ने ही बनाया था?

बीजेपी नेता ने दायर की थी याचिका

बीजेपी की अयोध्या इकाई के मीडिया प्रभारी रजनीश सिंह ने याचिका दाखिल कर दावा किया था कि ताजमहल के बारे में झूठा इतिहास पढ़ाया जा रहा है और वह सच्चाई का पता लगाने के लिए 22 कमरों में जाकर शोध करना चाहते हैं. हाईकोर्ट ने कहा, ऐसी बहस ड्राइंगरूम के लिए होती हैं, कानून की अदालतों के लिए नहीं.

याचिका में ये भी मांग की गई है कि ताज परिसर से कुछ निर्माण और ढांचे हटाए जाएं ताकि पुरातात्विक महत्व और इतिहास की सच्चाई सामने लाने के लिए सबूत नष्ट न हों. कोर्ट ने कहा कि याचिका समुचित और न्यायिक मुद्दों पर आधारित नहीं है. कोर्ट उन पर फैसला नहीं दे सकता. इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में जस्टिस डीके उपाध्याय और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी ने  याचिकाकर्ता पर सवाल भी उठाए. याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के कई जजमेंट पेश किए जिनमें अनुच्छेद 19 के तहत बुनियादी अधिकारों और खासकर उपासना, पूजा और धार्मिक मान्यता की आजादी का जिक्र है. कोर्ट ने कहा कि हम आपकी दलीलों से सहमत नहीं हैं. याचिकाकर्ता ने जब कोर्ट से कहा कि वहां तो पहले शिव मंदिर था जिसे मकबरे का रूप दिया गया.

इस पर जस्टिस डीके उपाध्याय ने याचिकाकर्ता को नसीहत देते हुए कहा  कि पहले किसी संस्थान से इस बारे में एमए पीएचडी कीजिए. तब हमारे पास आइए.अगर कोई संस्थान इसके लिए आपको दाखिला न दे तो हमारे पास आइए. याचिकाकर्ता ने फिर कहा कि मुझे ताज महल के उन कमरों तक जाना है. कोर्ट उसकी इजाजत दे. इस पर भी कोर्ट के तेवर सख्त ही रहे.

जस्टिस उपाध्याय ने कहा कि कल को आप कहेंगे कि मुझे जज के चेंबर तक जाना है. नाराजगी जताते हुए कोर्ट ने कहा कि PIL व्यवस्था का दुरुपयोग न करें. पहले ताजमहल किसने बनवाया जाकर रिसर्च कीजिए.जस्टिस डीके उपाध्याय ने याचिकाकर्ता से पूछा कि इतिहास क्या आपके मुताबिक पढ़ा जाएगा? आप पहले ये सब पढ़िए कि ताजमहल कब बना,किसने बनवाया, कैसे बनवाया. इससे आपका कोई अधिकार प्रभावित नहीं होता है. 

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