कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस चिकित्सकों का स्थान नहीं ले सकती लेकिन यह तकनीक चिकित्सा क्षेत्र के पेशेवरों की मदद कर सकती है. भारतीय चिकित्सा संघ (इंडियन मेडिकल एसोसिएशन) के अध्यक्ष डॉ. आर वी अशोकन ने यह बात कही.
पीटीआई के संपादकों से बातचीत में उन्होंने कहा कि चिकित्सा पेशा हमेशा से तकनीक को अपनाने में सबसे आगे रहा है, लेकिन यह चिकित्सक और एक मरीज के बीच के संबंध को दरकिनार नहीं कर सकता.
उन्होंने कहा, ‘‘कोई व्यक्ति चिकित्सक का स्थान नहीं ले सकता. जब तक मरीज कमजोर और ऐसी स्थिति में है जहां वह असहाय है और कोई भी विज्ञान उसका इलाज नहीं कर सकता है, तब केवल चिकित्सक का वह स्पर्श, वह आशा, वह आंखों के बीच का संपर्क, वह आश्वासन ही काम कर सकता है.''
अशोकन ने जोर देकर कहा कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता, टेलीमेडिसिन और रोबोटिक सर्जरी जैसी नई प्रौद्योगिकियां चिकित्सा क्षेत्र को काफी आगे बढ़ाएंगी लेकिन ‘‘मुझे लगता है कि चिकित्सक हमेशा मौजूद रहेंगे.''
उन्होंने कहा कि उनकी नजर में चिकित्सा की कला चिकित्सा विज्ञान से बड़ी है. चिकित्सकों पर हिंसक हमले और एक केंद्रीकृत कानून की आवश्यकता पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से ऐसे मामले संस्कृति का हिस्सा बनते जा रहे हैं.
उन्होंने कहा, ‘‘यह संस्कृति का हिस्सा बन गया है. यह अधिक उम्मीदों और ना पूरी हुई जरूरतों के कारण है... एयरलाइन कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए एक कानून है. हम सरकार से पूछ रहे हैं कि अगर एयरलाइन कर्मचारी देश के लिए इतने खास हैं, तो कृपया हमें भी कुछ सुरक्षा दीजिए.''
अशोकन ने आगे कहा कि लगभग 23 राज्यों ने चिकित्सकों के खिलाफ हिंसा से निपटने के लिए कानून पारित किए हैं, लेकिन ये धरातल पर निष्प्रभावी हैं. उन्होंने आगे कहा कि महामारी रोग अधिनियम में संशोधन उपयोगी हैं. उन्होंने कहा, ‘‘आप चाहते थे कि चिकित्सकों की सुरक्षा सामान्य समय में नहीं बल्कि कोविड महामारी के दौरान की जाए, यह भी हास्यास्पद लगता है.''
चिकित्सकीय लापरवाही के लिए चिकित्सकों की सजा पर आईएमए प्रमुख ने कहा कि कोई भी चिकित्सक आपराधिक रूप से दोषी नहीं है.
क्या भारतीय चिकित्सा संघ (आईएमए) इन आरोपों से चिंतित है कि दवा कंपनियां चिकित्सकों को अपने ब्रांड की दवा लिखने के लिए प्रभावित कर रही हैं और सम्मेलनों की आड़ में उन्हें उपहार के रूप में रिश्वत देती हैं? इस सवाल पर अशोकन ने कहा कि चिकित्सा क्षेत्र के पेशेवरों को निर्धारित शिष्टाचार का पालन करना होगा.
उन्होंने कहा, भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद का व्यावसायिक आचरण, शिष्टाचार और नैतिकता विनियम-2002 निश्चित रूप से लागू होता है.
चिकित्सा के परास्नातक विद्यार्थियों के लिए ‘उचित कामकाजी घंटे' निर्धारित करने के लिए और उन्हें एक दिन में ‘आराम के लिए उचित समय' प्रदान करने के वास्ते राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान परिषद (एनएमसी) द्वारा नए नियम लाने पर अशोकन ने कहा, ‘‘हमारे युवा चिकित्सक 86 घंटे या 100 घंटे काम कर रहे हैं, जबकि आईटी जगत के एक दिग्गज उद्योगपति कह रहे हैं कि भारत को प्रति सप्ताह 60 घंटे काम करना चाहिए.''
अशोकन ने कहा कि चिकित्सक काम के घंटे घटाकर इसे प्रति हफ्ते 60 घंटे करने की मांग कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि भारत दुनियाभर में सर्वाधिक चिकित्सक देने वाला देश है जहां हर साल एक लाख 10 हजार लोग 706 मेडिकल कॉलेज से चिकित्सक बनकर निकलते हैं. उन्होंने कहा कि भारत में 102 मेडिकल कॉलेज और तैयार किये गये हैं.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं