प्रतीकात्मक तस्वीर
नई दिल्ली:
किसान और मज़दूर संगठनों के बाद अब कृषि वैज्ञानिकों ने नए ज़मीन अधिग्रहण बिल के प्रावधानों का विरोध किया है।
सूत्रों के मुताबिक एक सरकारी कृषि अनुसंधान संस्थान के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नए ज़मीन अधिग्रहण बिल के प्रावधानों पर राजनीतिक सहमति बनाने के लिए गठित संसद की संयुक्त समिति के सामने कहा कि भारत में दुनिया की 17 फीसदी आबादी रहती है लेकिन सिर्फ 2 फीसदी ज़मीन भारत के पास है। ऐसे में खाद्य सुरक्षा की ज़रूरतों के लिहाज से उपजाऊ जमीन से समझौता नहीं हो सकता।
देश के बड़े कृषि विद्यालयों के वाइस-चांसलर और कृषि वेज्ञानिकों ने संसद की संयुक्त समिति को आगाह किया कि खेती लायक ज़मीन के अधिग्रहण की अनुमति गैर-कृषि कार्यों के लिए अगर बिना किसी रोक-टोक के दी जाती है तो इसका खाद्य सुरक्षा पर सीधा असर पड़ सकता है।
सूत्रों के मुताबिक पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने संसद की संयुक्त समिति को राय दी कि पीपीपी प्रोजेक्ट के लिए 50 प्रतिशत प्रभावित किसानों की सहमति जरूरी होनी चाहिये जबकि हर प्राइवेट प्रोजेक्ट के लिए 70 प्रतिशत किसानों की रजामंदी होनी चाहिए।
तमिलनाडु कृषि विद्यालय के मुताबिक किसानों की जमीन लेने से पहले जीविका का वैकल्पिक साधन देना होगा। साथ ही, तय समय में इस्तेमाल ना होने पर किसान को उनकी ज़मीन लौटाना अनिवार्य होने चाहिये।
संयुक्त समिति के सामने अब तक पेश कई किसान और मज़दूर संगठन पहले ही नए-नए ज़मीन अधिग्रहण बिल के प्रावधानों पर अपना विरोध जता चुके हैं। अब बड़े कृषि विद्यालयों के वाइस-चांसलर और कृषि वेज्ञानिकों ने सवाल उठाकर मौजूदा बिल के प्रारूप पर राजनीतिक सहमति बनाने में जुटी सरकार की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं।
सूत्रों के मुताबिक एक सरकारी कृषि अनुसंधान संस्थान के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नए ज़मीन अधिग्रहण बिल के प्रावधानों पर राजनीतिक सहमति बनाने के लिए गठित संसद की संयुक्त समिति के सामने कहा कि भारत में दुनिया की 17 फीसदी आबादी रहती है लेकिन सिर्फ 2 फीसदी ज़मीन भारत के पास है। ऐसे में खाद्य सुरक्षा की ज़रूरतों के लिहाज से उपजाऊ जमीन से समझौता नहीं हो सकता।
देश के बड़े कृषि विद्यालयों के वाइस-चांसलर और कृषि वेज्ञानिकों ने संसद की संयुक्त समिति को आगाह किया कि खेती लायक ज़मीन के अधिग्रहण की अनुमति गैर-कृषि कार्यों के लिए अगर बिना किसी रोक-टोक के दी जाती है तो इसका खाद्य सुरक्षा पर सीधा असर पड़ सकता है।
सूत्रों के मुताबिक पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने संसद की संयुक्त समिति को राय दी कि पीपीपी प्रोजेक्ट के लिए 50 प्रतिशत प्रभावित किसानों की सहमति जरूरी होनी चाहिये जबकि हर प्राइवेट प्रोजेक्ट के लिए 70 प्रतिशत किसानों की रजामंदी होनी चाहिए।
तमिलनाडु कृषि विद्यालय के मुताबिक किसानों की जमीन लेने से पहले जीविका का वैकल्पिक साधन देना होगा। साथ ही, तय समय में इस्तेमाल ना होने पर किसान को उनकी ज़मीन लौटाना अनिवार्य होने चाहिये।
संयुक्त समिति के सामने अब तक पेश कई किसान और मज़दूर संगठन पहले ही नए-नए ज़मीन अधिग्रहण बिल के प्रावधानों पर अपना विरोध जता चुके हैं। अब बड़े कृषि विद्यालयों के वाइस-चांसलर और कृषि वेज्ञानिकों ने सवाल उठाकर मौजूदा बिल के प्रारूप पर राजनीतिक सहमति बनाने में जुटी सरकार की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं।
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