- दिल्ली में 53 वर्षों बाद कृत्रिम वर्षा का परीक्षण किया गया, लेकिन मौसम विभाग को वर्षा के कोई संकेत नहीं दिखे
- दिल्ली सरकार ने IIT कानपुर के सहयोग से बुराड़ी, करोल बाग, मयूर विहार और बादली में कृत्रिम वर्षा के परीक्षण किए
- परीक्षण के बाद पीएम 2.5 और पीएम 10 प्रदूषण कणों में कमी आई, लेकिन वायु गुणवत्ता सूचकांक अभी भी खराब है
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हमें बताएं।दिल्ली में प्रदूषण के बढ़ते स्तर के बीच 53 वर्षों के अंतराल के बाद मंगलवार को कृत्रिम वर्षा कराने का परीक्षण किया गया. हालांकि, मौसम विभाग ने दिल्ली में वर्षा के कोई संकेत दर्ज नहीं किए. यहां तक की प्रदूषण में भी कोई कमी नहीं आई. देश के टॉप 10 प्रदूषित शहरों में दिल्ली छठे स्थान पर है. दिल्ली का AQIलेवल 277 है. वहीं अगर देश के सबसे प्रदूषित शहर की बात करें तो टॉप 3 में हरियाणा के शहर हैं. पहले नंबर पर बल्लभगढ़ है. दूसरे नंबर पर धौलेरा और तीसरे नंबर चरखी दादरी है. इन तीनों शहरों का AQIलेवल बहुत खराब है. वहीं चौथे स्थान पर मेरठ तो पांचवें पर रोहतक है. मेरठ से AQIलेवल खराब स्तर पर है.
सबसे प्रदूषित और साफ हवा वाले शहर













दिल्ली में क्यों हुई कृत्रिम वर्षा
- दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने बताया कि दिल्ली सरकार ने आईआईटी-कानपुर के सहयोग से बुराड़ी, उत्तरी करोल बाग, मयूर विहार और बादली सहित दिल्ली के कुछ हिस्सों में परीक्षण किए तथा अगले कुछ दिनों में इस तरह के और परीक्षण किए जाने की योजना है. सरकार ने एक रिपोर्ट में कहा कि कृत्रिम वर्षा के परीक्षणों से उन स्थानों पर अति सूक्ष्म कणों में कमी लाने में मदद मिली. राजधानी में इस प्रक्रिया को अंजाम दिया गया, जबकि परिस्थितियां इसके लिए आदर्श नहीं थीं.
- रिपोर्ट में कहा गया है कि दो बार बारिश दर्ज की गई. इसके तहत नोएडा में शाम चार बजे 0.1 मिलीमीटर बारिश और ग्रेटर नोएडा में शाम चार बजे 0.2 मिलीमीटर दर्ज हुई. आधिकारिक रिपोर्ट में कहा गया है कि वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) निगरानी के लिए 20 स्थानों से विशेष रूप से अति सूक्ष्म कण पीएम 2.5 और पीएम 10 को लेकर आंकड़े एकत्र किए गए, जो कृत्रिम वर्षा से सीधे प्रभावित होंगे.
क्या फायदा हुआ
- रिपोर्ट में कहा गया है, 'कृत्रिम बारिश से पहले मयूर विहार, करोल बाग और बुराड़ी में पीएम 2.5 का स्तर क्रमशः 221, 230 और 229 था, जो पहले परीक्षण के बाद घटकर क्रमशः 207, 206 और 203 रह गया. इसी प्रकार, पीएम 10 का स्तर 207, 206 और 209 था, जो घटकर क्रमशः मयूर विहार, करोल बाग और बुराड़ी में 177, 163 और 177 रह गया.'
- सरकार ने कहा कि भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) और अन्य एजेंसियों द्वारा अनुमानित नमी की मात्रा 10 से 15 प्रतिशत के निम्न स्तर पर बनी रही, जो कृत्रिम बारिश के लिए आदर्श स्थिति नहीं है. हालांकि, रिपोर्ट में कहा गया है कि यह स्थिति कम नमी वाली परिस्थितियों में कृत्रिम बारिश सामग्री की प्रभाव क्षमता का आकलन करने के लिए उपयुक्त है.
- पर्यावरणविदों ने दिल्ली सरकार के कृत्रिम बारिश परीक्षण को एक अल्पकालिक उपाय बताया है. उन्होंने कहा है कि इससे प्रदूषण अस्थायी रूप से कम हो सकता है, लेकिन यह राष्ट्रीय राजधानी की बिगड़ती वायु गुणवत्ता के मूल कारणों का समाधान करने में विफल रहेगा.
पहले कब हुआ था
- भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान, पुणे के जलवायु वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कोल ने बताया कि दिल्ली में कृत्रिम वर्षा का पहला परीक्षण 1957 के मानसून के दौरान किया गया था, जबकि दूसरा प्रयास 1970 के दशक की शुरुआत की सर्दियों में किया गया था.
- भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1971 और 1972 में किए गए दूसरे परीक्षण राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला परिसर में किए गए थे, जिसमें मध्य दिल्ली का लगभग 25 किलोमीटर क्षेत्र शामिल था.
- रिपोर्ट में कहा गया है कि उस समय भू-आधारित उत्प्रेरकों से निकलने वाले सिल्वर आयोडाइड कणों ने सूक्ष्म नाभिक के रूप में काम किया था, जिनके चारों ओर नमी संघनित होकर वर्षा की बूंदों में परिवर्तित हो गई थी.
- दिसंबर 1971 और मार्च 1972 के बीच 22 दिनों को प्रयोग के लिए अनुकूल माना गया था. आईआईटीएम की रिपोर्ट में कहा गया है कि इनमें से 11 दिनों में कृत्रिम वर्षा कराई गई, जबकि शेष 11 दिनों को तुलनात्मक अध्ययन के उद्देश्य से नियंत्रण अवधि के रूप में रखा गया था.
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