
स्कूल के पाठ्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का इतिहास शामिल करने के दिल्ली सरकार के प्रस्ताव पर आम आदमी पार्टी का बयान सामने आया है. आप नेता सौरभ भारद्वाज ने कहा, आरएसएस का इतिहास पढ़ाने पर आपत्ति नहीं है, लेकिन यह जरूरी है कि छात्रों को सच्चाई बताई जाए और तथ्यों को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत न किया जाए.
'आजादी की लड़ाई में कोई योगदान नहीं'
सौरभ भारद्वाज ने कहा कि, "हिंदू महासभा की स्थापना 1915 में हुई थी और इसके प्रमुख नेता विनायक दामोदर सावरकर और श्यामा प्रसाद मुखर्जी थे, जबकि आरएसएस 1925 में बना. उन्होंने सवाल उठाया कि आजादी की लड़ाई में इन संगठनों ने क्या भूमिका निभाई, इसका कोई ठोस तथ्य उपलब्ध नहीं है."
'तिरंगे का किया था विरोध'
भारद्वाज ने कहा, "हिंदू महासभा और आरएसएस दोनों ने 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन' का विरोध किया था और उस समय हिंदुओं से अपील की थी कि वे विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों की सेना में भर्ती हों. आरएसएस खुद को तब भी गैर-राजनीतिक संगठन बताता था और आज भी यही दावा करता है. हिंदू हितों की रक्षा के नाम पर इस संगठन ने बंगाल में मुस्लिम लीग के साथ मिलकर सरकार ैबनाई थी. देश की आजादी में भी आरएसएस ने सक्रिय भूमिका नहीं निभाई और लंबे समय तक तिरंगे का विरोध करता रहे.'
बता दें कि, आशीष सूद ने कहा, "स्कूलों में वीर सावरकर, श्यामा प्रसाद मुखर्जी और सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में पाठ शामिल किए जाएंगे. छात्रों में नागरिक और सामाजिक चेतना पैदा करने के लिए 'राष्ट्रनीति' कार्यक्रम के तहत यह पहल की जा रही है." शिक्षा मंत्री के मुताबिक, इस कदम का मकसद छात्रों में मौलिक कर्तव्यों पर भी ध्यान केंद्रित करना है. शैक्षिक कार्यक्रम 'राष्ट्रनीति' के तहत नया अध्याय कक्षा 1 से कक्षा 12 तक के छात्रों के लिए जोड़ा जाना है.
पाठ्यक्रम में क्या रहेगा शामिल
पाठ्यक्रम के एक भाग के रूप में बच्चों को RSS की उत्पत्ति, इतिहास और उसकी विचारधारा के साथ ही प्राकृतिक आपदाओं और स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उसके कार्यकर्ताओं की भूमिका के बारे में पढ़ाया जाएगा. इन पाठों का मकसद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के बारे में तमाम दुष्प्रचार और गलफहमियों को दूर करना भी है. चैप्टर में आजादी की लड़ाई में आरएसएस की भागीदारी के साथ उसके सामाजिक कार्यों में योगदान के बारे में जानकारियां होंगी.
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