नई दिल्ली/मुंबई:
महाराष्ट्र में नासिक से मुंबई की ओर मार्च कर रहे हजारों किसान सरकार का सिरदर्द बन सकते हैं. किसानों ने शनिवार को तपती धूप में अपना मार्च जारी रखा और ये सोमवार को मंत्रालय का घेराव करना चाहते हैं. मार्च में शामिल किसानों का कहना है कि पिछले 9 महीनों में डेढ़ हज़ार से अधिक किसानों ने आत्महत्या की है और सरकार सुनने को तैयार नहीं है.
हाथों में लाल झंडा थामे ये किसान ऑल इंडिया किसान सभा समेत तमाम संगठनों से जुड़े हैं. इस मार्च में किसानों के साथ खेतीहर मज़दूर और कई आदिवासी शामिल हैं. इनकी प्रमुख मांगों में कर्ज़माफी ले लेकर न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने और स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट को लागू करना शामिल है. किसानों का कहना है कि फडणवीस सरकार ने पिछले साल किया 34000 करोड़ का कर्ज़ माफी का वादा अब तक पूरा नहीं किया है.
हालांकि तपती धूप में पैदल चलना इन किसानों के लिये आसान नहीं है. फिर भी आर्थिक बदहाली, खेती के चौपट होने और कर्ज़ की मार से परेशान किसान मजबूर हैं. 40 साल के गोरखनाथ पवार कहते हैं, "पांच दिन से लगातार चलने के कारण मेरी तबीयत खराब हो गई है. लेकिन गांव में हमें मूलभूत सुविधा भी नहीं मिल रही है. ना ही हमें बिजली मिल रही है और ना ही पानी. इसलिए मेरी तबीयत खराब होने के बाद भी मैं मुम्बई जाकर सरकार के सामने अपनी मांग रखूंगा."
स्वराज अभियान और जन किसान आंदोलन के योगेन्द्र यादव कहते हैं कि किसान ऐसा कुछ नहीं मांग रहे जिसका वादा फडणवीस सरकार ने नहीं किया है. किसानों की कर्ज़ माफी, उनकी फसल का उचित न्यूनतम दाम और दलित समुदाय के लोगों को दी गई ज़मीन के पट्टे देना तो महाराष्ट्र सरकार का वादा है.
यादव ने एनडीटीवी इंडिया से कहा, "ये किसानों का दुर्भाग्य है कि उन्हें अपने अधिकारों के लिये बार बार आंदोलन करना पड़ता है. पहले तो वह अपनी समस्या की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए सड़क पर आते हैं. फिर उन्हें सरकार से फैसला करवाने के लिए आंदोलन करना पड़ता है और जैसा आप देख रहे हैं कि फिर किसानों को सरकार के लिखित फैसले को लागू करने के लिए आंदोलन करना पड़ रहा है."
मार्च में शामिल किसानों का रुख इसी बात को लेकर आक्रामक दिखता है. 73 साल के किसान लक्ष्मण इम्फाल ने कहा, “मैं जब छोटा था तबसे मेरे पिताजी और दादाजी हमारी ज़मीन के लिए लड़ रहे हैं. लड़ते लड़ते उनका स्वर्गवास हो गया लेकिन फिर भी जंगल में मौजूद हमारी ज़मीन अब तक हमें नहीं मिली है. अब मैं मुम्बई जाकर सरकार से यह ज़मीन लेकर ही घर लौटूंगा.''
किसानों को अपनी फसल का सही दाम न मिलना उनकी दिक्कत की प्रमुख वजह है. टमाटर का दाम 1 रुपये तक गिर गया और छत्तीसगढ़ के दुर्ग में किसानों ने करीब 100 क्विंटल टमाटर जानवरों को खिला दिया या फेंक दिया. इसी तरह तमिलनाडु में किसान गोभी की कीमतें न मिलने से परेशान हो गये हैं. अत्यधिक उत्पादन से देश के अलग-अलग हिस्सों से कई फसलों के दाम मिट्टी में मिल गये हैं.
VIDEO: अपनी मांगों को लेकर लॉन्ग मार्च में जुड़ते जा रहें हैं किसान
महत्वपूर्ण है कि किसानों का विरोध अलग-अलग राज्यों में बार बार दिख रहा है. पंजाब के बरनाला में किसानों का विरोध हो या हरियाणा विधानसभा का घेराव या फिर तमिलनाडु से दिल्ली आकर जंतर-मंतर पर किसानों का विरोध, खेतीबाड़ी के जानकार और कृषि के मुद्दों पर लिख रहे देविन्दर शर्मा कहते हैं कि आज किसान विद्रोह जैसे हालात बने हुये हैं. शर्मा के मुताबिक शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है.
शर्मा ने एनडीटीवी इंडिया से कहा, "साल 2016 में कुल 4837 विरोध प्रदर्शन हुये जो दो साल के भीतर 680% का उछाल है. पिछले दो सालों से ये आंकड़ा बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है."
हाथों में लाल झंडा थामे ये किसान ऑल इंडिया किसान सभा समेत तमाम संगठनों से जुड़े हैं. इस मार्च में किसानों के साथ खेतीहर मज़दूर और कई आदिवासी शामिल हैं. इनकी प्रमुख मांगों में कर्ज़माफी ले लेकर न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने और स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट को लागू करना शामिल है. किसानों का कहना है कि फडणवीस सरकार ने पिछले साल किया 34000 करोड़ का कर्ज़ माफी का वादा अब तक पूरा नहीं किया है.
हालांकि तपती धूप में पैदल चलना इन किसानों के लिये आसान नहीं है. फिर भी आर्थिक बदहाली, खेती के चौपट होने और कर्ज़ की मार से परेशान किसान मजबूर हैं. 40 साल के गोरखनाथ पवार कहते हैं, "पांच दिन से लगातार चलने के कारण मेरी तबीयत खराब हो गई है. लेकिन गांव में हमें मूलभूत सुविधा भी नहीं मिल रही है. ना ही हमें बिजली मिल रही है और ना ही पानी. इसलिए मेरी तबीयत खराब होने के बाद भी मैं मुम्बई जाकर सरकार के सामने अपनी मांग रखूंगा."
स्वराज अभियान और जन किसान आंदोलन के योगेन्द्र यादव कहते हैं कि किसान ऐसा कुछ नहीं मांग रहे जिसका वादा फडणवीस सरकार ने नहीं किया है. किसानों की कर्ज़ माफी, उनकी फसल का उचित न्यूनतम दाम और दलित समुदाय के लोगों को दी गई ज़मीन के पट्टे देना तो महाराष्ट्र सरकार का वादा है.
यादव ने एनडीटीवी इंडिया से कहा, "ये किसानों का दुर्भाग्य है कि उन्हें अपने अधिकारों के लिये बार बार आंदोलन करना पड़ता है. पहले तो वह अपनी समस्या की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए सड़क पर आते हैं. फिर उन्हें सरकार से फैसला करवाने के लिए आंदोलन करना पड़ता है और जैसा आप देख रहे हैं कि फिर किसानों को सरकार के लिखित फैसले को लागू करने के लिए आंदोलन करना पड़ रहा है."
मार्च में शामिल किसानों का रुख इसी बात को लेकर आक्रामक दिखता है. 73 साल के किसान लक्ष्मण इम्फाल ने कहा, “मैं जब छोटा था तबसे मेरे पिताजी और दादाजी हमारी ज़मीन के लिए लड़ रहे हैं. लड़ते लड़ते उनका स्वर्गवास हो गया लेकिन फिर भी जंगल में मौजूद हमारी ज़मीन अब तक हमें नहीं मिली है. अब मैं मुम्बई जाकर सरकार से यह ज़मीन लेकर ही घर लौटूंगा.''
किसानों को अपनी फसल का सही दाम न मिलना उनकी दिक्कत की प्रमुख वजह है. टमाटर का दाम 1 रुपये तक गिर गया और छत्तीसगढ़ के दुर्ग में किसानों ने करीब 100 क्विंटल टमाटर जानवरों को खिला दिया या फेंक दिया. इसी तरह तमिलनाडु में किसान गोभी की कीमतें न मिलने से परेशान हो गये हैं. अत्यधिक उत्पादन से देश के अलग-अलग हिस्सों से कई फसलों के दाम मिट्टी में मिल गये हैं.
VIDEO: अपनी मांगों को लेकर लॉन्ग मार्च में जुड़ते जा रहें हैं किसान
महत्वपूर्ण है कि किसानों का विरोध अलग-अलग राज्यों में बार बार दिख रहा है. पंजाब के बरनाला में किसानों का विरोध हो या हरियाणा विधानसभा का घेराव या फिर तमिलनाडु से दिल्ली आकर जंतर-मंतर पर किसानों का विरोध, खेतीबाड़ी के जानकार और कृषि के मुद्दों पर लिख रहे देविन्दर शर्मा कहते हैं कि आज किसान विद्रोह जैसे हालात बने हुये हैं. शर्मा के मुताबिक शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है.
शर्मा ने एनडीटीवी इंडिया से कहा, "साल 2016 में कुल 4837 विरोध प्रदर्शन हुये जो दो साल के भीतर 680% का उछाल है. पिछले दो सालों से ये आंकड़ा बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है."
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