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DAV स्कूल का प्रोजेक्ट '250 मीटर्स ऑफ हैप्पीनेस', सड़क हादसे में बच्चों को बचाने के लिए बनाया सेफ्टी कॉरीडोर

'250 meters of Happiness' नाम के पायलट प्रोजेक्ट की परिकल्पना NGO HumanQind की रूचि वर्मा ने किया है. इसका डिजाइन स्कूल के बच्चों ने ही तैयार किया है. इस प्रोजेक्ट को PWD, TRIP सेंटर और IIT दिल्ली के सहयोग से एग्जिक्यूट किया जाएगा.

DAV स्कूल का प्रोजेक्ट '250 मीटर्स ऑफ हैप्पीनेस', सड़क हादसे में बच्चों को बचाने के लिए बनाया सेफ्टी कॉरीडोर
दिल्ली के वसंत कुंज स्थित DAV पब्लिक स्कूल के सामने बच्चों के लिए एक सेफ कॉरिडोर तैयार किया गया है.
नई दिल्ली:

सड़क हादसों में आमतौर पर हर रोज 45 छात्रों की मौत होती है. ऐसे में रोड ट्रैफिक और हादसों से स्कूली बच्चों को बचाना और स्कूलों के चारों ओर सुरक्षित माहौल बनाना बेहद ज़रूरी हो गया है. इसी दिशा में दिल्ली के DAV पब्लिक स्कूल में सरकार के PWD विभाग ने एक पायलट प्रोजेक्ट '250 मीटर्स ऑफ हैप्पीनेस' शुरू किया है. 'Safe School Zone Initiative' के तहत इस प्रोजेक्ट में स्थानीय स्कूल प्रशासन, NGO HumanQind और IIT दिल्ली ने साथ काम किया है. इस प्रोजेक्ट में DAV पब्लिक स्कूल के सामने बच्चों के लिए एक सेफ कॉरिडोर तैयार किया गया है.

DAV पब्लिक स्कूल की पूर्व प्रिंसिपल अंजु पुरी ने करीब दो साल पहले हुए एक एक्सीडेंट का जिक्र करते हुए कहा, "हमारे स्कूल के सामने एक एक्सीडेंट हुआ था. दिल्ली जल बोर्ड के एक ट्रक ने ऑटो को टक्कर मार दी. उसी दौरान DAV पब्लिक स्कूल की एक छात्रा अपनी मां और भाई के साथ सड़क से गुजर रही थी. बच्ची एक्सीडेंट में घायल हो गई. उसके शरीर का निचला हिस्सा पैरालाइज हो गया. वो दो साल तक AIIMS में एडमिट रही. मुझे याद है उसकी मां मेरे कंधे पर सिर रखकर बहुत रोई थी. ठीक होने पर बच्ची ने कहा कि वो स्कूल आना चाहती है. इसके बाद हमने ये इनिशिएटिव लिया. स्कूल जाने वाला हर बच्चा सेफ होना चाहिए."

इस पायलट प्रोजेक्ट के तहत बच्चों के स्कूल आने-जाने के दौरान जगह को सुरक्षित बनाने के लिए टेबल-टॉप क्रॉसिंग, लैंडस्केप, शेडेड वेटिंग एरिया, दीवारों पर पेंटिंग्स, प्ले पॉकेट्स, साइकिल ट्रैक और एक रेगुलेटेड ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम तैयार किया  गया है.

NGO HumanQind ने की प्रोजेक्ट की परिकल्पना
'250 meters of Happiness' नाम के पायलट प्रोजेक्ट की परिकल्पना NGO HumanQind की रूचि वर्मा ने किया है. इसका डिजाइन स्कूल के बच्चों ने ही तैयार किया है. इस प्रोजेक्ट को PWD, TRIP सेंटर और IIT दिल्ली के सहयोग से एग्जिक्यूट किया जाएगा. स्कूल में कुछ साल पहले तक टीचिंग स्टाफ के लिए पार्किंग हुआ करती थी. लेकिन अब यहां स्कूली बच्चों के लिए एक सेफ और फन जोन बन गया है.

प्रोजेक्ट से 10,000 छात्रों को मिल रहा फायदा 
HumanQind की CEO रूचि वर्मा कहती हैं, "देश में सड़क हादसों में प्रतिदिन 45 छात्रों की मौत होती है. इससे हर रोज एक क्लास करीब-करीब खत्म हो जाता है. इस तरह के प्रोजेक्ट्स हर स्कूल में होने चाहिए. 250 मीटर ऑफ हैप्पीनेस प्रोजेक्ट की वजह से यहां के 4 स्कूलों के करीब 10,000 छात्रों को फायदा मिल रहा है". ये देश का पहला स्कूल सेफ्टी जोन है, जिसका निर्माण सरकार के सेफ स्कूल जोन इनिशिएटिव के तहत किया गया है. 

प्रोजेक्ट के बनने से बच्चों में कॉन्फिडेंस 
DAV पब्लिक स्कूल की प्रिंसिपल प्रियंका त्यागी कहती हैं, "इस प्रोजेक्ट के बनने से बच्चों में कॉन्फिडेंस और सोच दोनों बेहतर हुई है. ये प्रोजेक्ट आने वाले जेनेरशन के बच्चों के लिए एक मिसाल है. स्कूल के बच्चों ने ही प्रोजेक्ट का डिजाइन तैयार किया है. इन सुविधाओं का स्कूल टाइमिंग के बाद बाकी लोग भी इस्तेमाल कर सकते हैं."

स्कूल के सामने लगाए गए रोड ब्लॉकर्स
वसंत कुंज की एक व्यस्त सड़क के ठीक बगल में स्थित इस स्कूल के सामने रोड ब्लॉकर्स भी लगाए गए हैं, जिससे गाड़ियों की स्पीड नियंत्रित की जा सके. स्कूल की दीवारों पर बनाई गई पेंटिंग्स स्कूली बच्चों के साथ साथ आम राहगीरों के लिए एक मैसेज भी देती है.

स्कूल के पास 20 KM/H होनी चाहिए गाड़ियों की स्पीड
IIT दिल्ली की प्रोफेसर गीतम तिवारी ने कहा, "दीवार पर बनी पेंटिंग पर लिखे '20' का मतलब है किसी भी स्कूल के बाहर मोटर गाड़ियों की स्पीड 20 किलोमीटर प्रति घंटे से ज़्यादा नहीं होनी चाहिए, क्योंकि इस रफ़्तार पर जब गाड़ियां चलती हैं तो एक्सीडेंट से नुकसान बेहद कम होता है."  

ऐसे प्रोजेक्ट देशभर में शुरू करना जरूरी
दिल्ली के सेंट स्टीफेंस हॉस्पिटल में सर्जन डॉ. मैथ्यू कहते हैं, "हमें स्कूलों के आसपास रोड ट्रैफिक को नियंत्रित करने के लिए सख्त नियम बनाने होंगे. ये प्रोजेक्ट नेशनल लेवल पर लागू होना चाहिए. हमने आपने शहरों को कार फ्रेंडली बना दिया, लेकिन पीपुल फ्रेंडली नहीं बनाया. स्कूलों को सुरक्षित बनाने के लिए इस तरह के प्रोजेक्ट्स देशभर में लागू करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर विशेष अभियान शुरू करना बेहद ज़रूरी हो गया है".


 

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