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This Article is From Aug 14, 2019

आखिर भारत की आज़ादी के लिए माउंटबेटन ने 15 अगस्त ही क्यों चुना...?

तारीख थी 3 जून, 1947. शाम को 7:00 बजते-बजते तय हो गया कि भारत का बंटवारा होगा. लंबी चर्चा और बहस-मुबाहिसे के बाद अंतिम वाइसरॉय लॉर्ड माउंटबेटन इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे. अब बारी थी इसकी औपचारिक घोषणा की.

आखिर भारत की आज़ादी के लिए माउंटबेटन ने 15 अगस्त ही क्यों चुना...?
फाइल फोटो
नई दिल्ली:

तारीख थी 3 जून, 1947. शाम को 7:00 बजते-बजते तय हो गया कि भारत का बंटवारा होगा. लंबी चर्चा और बहस-मुबाहिसे के बाद अंतिम वाइसरॉय लॉर्ड माउंटबेटन इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे. अब बारी थी इसकी औपचारिक घोषणा की. ब्रिटिश साम्राज्य के भारत के इतिहास में दूसरी और अंतिम बार कोई वाइसरॉय प्रेस कॉन्फ्रेंस करने जा रहा था. हॉल में भारतीय पत्रकारों के अलावा अमेरिका, रूस, चीन समेत तमाम देशों के पत्रकार लॉर्ड माउंटबेटन की बातों को गौर से सुन रहे थे. माउंटबेटन ने जब अपनी बात खत्म की, तो सवाल-जवाब का सिलसिला शुरू हुआ. एक-एक कर तमाम सवाल आए और माउंटबेटन ने उनका जवाब दिया, लेकिन सबसे जटिल सवाल आना बाकी था. दरअसल, माउंटबेटन ने आज़ादी से लेकर बंटवारे तक की तो सारी वर्ग पहेली हल कर ली थी, लेकिन यही एक ऐसा प्रश्न था, जिसका उत्तर ढूंढना अभी बाकी था. आजादी की तारीख क्या है...?

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प्रेस कॉन्फ्रेंस के अंत में एक भारतीय संवाददाता ने सवाल दागा, "सर, आपने सत्ता सौंपे जाने की कोई तिथि भी सोच रखी होगी...! अगर तिथि तय कर ली है, तो वह क्या है...?" सवाल सुनते ही वाइसरॉय के चेहरे पर अचानक उलझन-भरे भाव उभर आए. दरअसल, उन्होंने सत्ता हस्तांतरण की कोई तारीख तय नहीं की थी, लेकिन इतना तय था कि काम जल्द हो जाना चाहिए. माउंटबेटन ने चंद सेकंड खचाखच भरे हॉल को देखा. सब उनकी तरफ बड़े गौर से देख रहे थे और फिर वह लम्हा आ गया, जिसका सबको इंतज़ार था.

तो इसलिए चुना गया 15 अगस्त...

विख्यात इतिहासकार डॉमिनिक लैपियर और लैरी कॉलिन्स अपनी किताब 'फ्रीडम एट मिडनाइट' में लिखते हैं, 'उस वक्त माउंटबेटन के दिमाग में कई तिथियां चल रही थीं... सितंबर के शुरू में... सितंबर के बीच में... अगस्त के बीच में या कुछ और...?' और फिर अचानक रूंधे गले से माउंटबेटन ने कहा, 'भारतीय हाथों में सत्ता अंतिम रूप से 15 अगस्त, 1947 को सौंप दी जाएगी...' दरअसल, इस तारीख के साथ माउंटबेटन की एक गौरवशाली स्मृति जुड़ी हुई थी. इसी दिन बर्मा के जंगलों में लंबे समय से चली आ रही लड़ाई का अंत हुआ था और जापानी साम्राज्य ने बिना किसी शर्त के आत्मसमर्पण किया था. माउंटबेटन के लिए एक नए लोकतांत्रिक एशिया के जन्म के लिए जापान के आत्मसमर्पण की दूसरी वर्षगांठ से अच्छी तिथि और क्या हो सकती थी...!

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यह क्या अनर्थ कर दिया...!

जैसे ही रेडियो पर माउंटबेटन की तय की हुई तिथि की घोषणा हुई, हिन्दुस्तान में ज्योतिषी अपने पंचांग खोलकर बैठ गए. काशी के ज्योतिषियों और पंडितों ने तुरंत घोषणा कर दी कि 15 अगस्त का दिन इतना अशुभ है कि भारत के लिए अच्छा यही होगा कि 1 दिन और अंग्रेजों का शासन सहन कर लें. उधर कलकत्ता (अब कोलकाता) में स्वामी मदनानंद ने घोषणा सुनने के बाद अपना नवांश निकाला और ग्रह नक्षत्र की स्थिति देखने के बाद लगभग चीखते हुए बोले, 'क्या अनर्थ किया है इन लोगों ने...? कैसा अनर्थ कर दिया है...!' उन्होंने तुरंत माउंटबेटन को पत्र लिखा, 'ईश्वर के लिए भारत को 15 अगस्त को स्वतंत्रता न दीजिए, क्योंकि यदि इस दिन स्वतंत्रता मिली, तो इसके बाद बाढ़, अकाल और महामारी फैल जाएगी, जिसके लिए सिर्फ और सिर्फ यह तिथि जिम्मेदार होगी...' हालांकि इस पत्र का माउंटबेटन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा और आखिरकार 15 अगस्त को वह सुबह आ ही गई, जिसका लोगों को दशकों से इंतज़ार था.

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