सुप्रीम कोर्ट से बुधवार को रिटायर हुए जज जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा कि ''सिस्टम का काम करना अमीरों और शक्तिशाली लोगों के पक्ष में अधिक लगता है. यदि एक अमीर व्यक्ति सलाखों के पीछे है, तो सिस्टम तेजी से काम करता है. जब कोई किसी गरीब की आवाज उठाता है तो सुप्रीम कोर्ट को उसे सुनना चाहिए और जो भी गरीबों के लिए किया जा सकता है वो करना चाहिए. किसी भी परिस्थिति में संस्थान की अखंडता ( ईमानदारी) को दांव पर नहीं लगाया जा सकता है. न्यायपालिका को हर अवसर पर उठना चाहिए. मुझे यकीन है कि मेरे भाई जजों के चलते यह सुनिश्चित किया जाएगा कि लोगों को अदालत से जो चाहिए वह मिल जाए.''
बुधवार को अपने विदाई भाषण में सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस दीपक गुप्ता ने उक्त बात कही. उन्होंने कहा कि संविधान जजों की पवित्र पुस्तक है. जब एक जज अदालत में बैठता है, तो हमें अपनी धार्मिक मान्यताओं को भूलना होगा और केवल इस संविधान के आधार पर मामले तय करने होंगे जो हमारी बाइबल, हमारी गीता, हमारे कुरान, हमारे गुरु ग्रंथ साहिब और अन्य ग्रंथ हैं.
जस्टिस गुप्ता की सेवानिवृत्ति पर सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने यह विदाई समारोह आयोजित किया. जस्टिस दीपक गुप्ता बुधवार को ही रिटायर हो गए. सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की ओर से सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में पहली बार जज को वर्चुअल तरीके से विदाई दी गई
जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा कि ''42 साल तक पेशे में रहने के दौरान मैंने इसके हर एक पल का आनंद लिया. हालांकि कोर्ट से रिश्ता खत्म हो गया लेकिन बार के साथ मेरा रिश्ता कभी खत्म नहीं हो सकता.
हालांकि मैं पेशे को छोड़ने के लिए दुखी हूं, मुझे खुशी है कि मेरे पास परिवार और खुद के लिए अधिक समय होगा. मुझे कुछ समय मिलेगा पढ़ने के शौक को पूरा करने का और आगे बढ़ने का. मैं जज के रूप में जितना कमाता था, उससे कुछ ज्यादा पैसा कमाने के लिए भी मिलेगा.''
इस मौके पर अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि असहमति पर, इतनी दृढ़ता से और खुलकर सामने आने वाले आप पहले जज हैं. आपके विचार कि नागरिक को शांतिपूर्ण तरीके से विरोध करने का अधिकार है, कभी नहीं भूलेंगे. सुप्रीम कोर्ट जज के रूप में यह एक बहुत ही साहसिक बयान था.
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष दुष्यंत दवे ने कहा कि आपका जाना न केवल न्यायिक पक्ष में, बल्कि हमारे व्यक्तिगत पक्ष में एक शून्य पैदा करता है. मुझे न्यायमूर्ति गुप्ता के परिवार के सदस्यों से जलन है क्योंकि वे इस महान व्यक्ति के पास रहेंगे. बार और बेंच आपकी सदा आभारी रहेगी.
जस्टिस दीपक गुप्ता का जन्म जिला कांगड़ा के नूरपुर में 6 मई 1955 को हुआ. मूलत: वह शिमला के रहने वाले हैं जबकि नूरपुर में उनका ननिहाल है. दिल्ली विश्वविद्यालय से लॉ करने के बाद उन्होंने हिमाचल हाईकोर्ट में प्रेक्टिस शुरू की थी और 2004 तक प्रेक्टिस की थी. इस दौरान उन्होंने कई विभागों के मामलों की पैरवी की. जस्टिस गुप्ता के पिता स्व एमआर गुप्ता भी जाने-माने वकील थे और वह शिमला में ही प्रेक्टिस करते थे.
जस्टिस दीपक गुप्ता को अक्तूबर 2004 में हिमाचल हाईकोर्ट में जज के रूप में तैनाती मिली. वह 3 जून 2007 से 10 जुलाई 2007 तक और फिर 24 नवंबर 2007 से 9 दिसंबर 2007 तक हिमाचल हाईकोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस भी रहे. जस्टिस गुप्ता हिमाचल हाईकोर्ट की ग्रीन बैंच के भी प्रमुख थे. जस्टिस गुप्ता 23 मार्च 2013 को त्रिपुरा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बने थे और 2016 में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के पद पर ट्रांसफर हुए. 2017 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया था.
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