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This Article is From Nov 16, 2021

"सीबीआई पर हमारा नियंत्रण नहीं", बंगाल की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र ने दी सफाई 

रेलवे क्षेत्र में कोयला घोटाले में सीबीआई की FIR  की वैधता को लेकर पहले ही सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. बंगाल का कहना है कि जिन राज्यों ने सामान्य सहमति वापस ले ली है,वहां सिर्फ संवैधानिक अदालतों के आदेश पर ही सीबीआई मामले दर्ज कर सकती है.

"सीबीआई पर हमारा नियंत्रण नहीं", बंगाल की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र ने दी सफाई 
केंद्र बनाम पश्चिम बंगाल विवाद- सीबीआई के अधिकारों को लेकर शीर्ष अदालत में चल रहा है केस
नई दिल्ली:

राज्यों में केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई (CBI ) द्वारा केस दर्ज करने के क्षेत्राधिकार के मामले में मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. बंगाल सरकार का कहना है कि सीबीआई को केस दर्ज कर जांच के लिए आम सहमति वापस लिए जाने के बावजूद केंद्रीय एजेंसी ने एफआईआर दर्ज की हैं. हालांकि   केंद्र सरकार (Central Government)  ने CBI के आपराधिक मामले में FIR को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में कहा है कि उसका इस पर कोई नियंत्रण नहीं है. केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई एक स्वायत्त निकाय है. सीबीआई द्वारा मामले दर्ज करने और जांच में केंद्र हस्तक्षेप नहीं करता. पश्चिम बंगाल (West Bengal) की याचिका सुनवाई योग्य नहीं है.  वहीं पश्चिम बंगाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि सीबीआई और केंद्र आपस में जुड़े हुए हैं. इस केस में अब दो हफ्ते बाद अगली सुनवाई होगी.  

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दरअसल संघीय ढांचे के उल्लंघन के आरोपों को लेकर केंद्र और उसकी एजेंसियों के खिलाफ ममता सरकार ने मूल वाद ( ऑरिजिनल सूट) दाखिल किया है. बंगाल सरकार ने केंद्र और सीबीआई पर आम सहमति वापस लेने के बावजूद पश्चिम बंगाल में मामले दर्ज करके देश के संघीय ढांचे का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है. उसने कहा है कि राज्य द्वारा पश्चिम बंगाल में घटनाओं से संबंधित मामले दर्ज करने के लिए CBI से सामान्य सहमति वापस लेने के तीन साल बाद भी CBI ने स्वत: संज्ञान से मामले दर्ज करके शासन के संघीय ढांचे का उल्लंघन करना जारी रखा है. जस्टिस एलएन राव, जस्टिस, बीआर गवई और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच मामले की सुनवाई कर रही है. 

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अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने केंद्र की ओर से कहा कि सरकार ने न तो एक भी मामला दर्ज किया है और न ही उसके पास मामला दर्ज करने का अधिकार क्षेत्र है.  केंद्र इनमें से किसी भी मुद्दे से संबंधित नहीं है. एक विशेष अधिनियम है, जिसे DSPEअधिनियम कहा जाता है और दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान के अधिकारियों को मामले दर्ज करने की अनुमति होती है. इसलिए FIR दर्ज करना विशुद्ध रूप से एक स्वायत्त निकाय द्वारा किया जाता है.

केंद्र का कोई नियंत्रण नहीं है. केंद्र ना कोई मामला दर्ज करता है ना जांच करता है. वहीं बंगाल सरकार के लिए वरिष्ठ वकील  बिस्वजीत भट्टाचार्य ने कहा कि CBI और केंद्र आपस में जुड़े हुए हैं. इससे पहले  केंद्र ने ममता सरकार पर रेलवे कोल घोटाला मामले में आरोपियों को बचाने का प्रयास करने का आरोप लगाया था. केंद्र ने कहा, बंगाल सरकार का वाद कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग के बराबर है. इसे खारिज किया जाना चाहिए. कई राज्यों या अखिल भारतीय प्रभाव वाले अपराध की  केंद्रीय एजेंसी द्वारा जांच से संघीय ढांचे को नुकसान नहीं होगा.

राज्य सरकार द्वारा सामान्य सहमति वापस लेने से CBI के लिए अपराधों की जांच के लिए कोई बाधा नहीं है. समझ में नहीं आ रहा है कि राज्य सरकार ऐसी जांच के रास्ते में क्यों आ रही है. उसका  ऐसे कई राज्यों / अखिल भारतीय अपराधों के दोषी लोगों को बचाने का प्रभाव होगा. केंद्र ने ये हलफनामा बंगाल सरकार के उस वाद पर दाखिल किया है  जिसमें केंद्र पर संघीय ढांचे का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया है. बंगाल सरकार द्वारा सामान्य सहमति वापस लेने के बावजूद सीबीआई ने मामले दर्ज किए है.

केंद्र सरकार ने कहा है कि सीबीआई राज्य सरकार से 6 मामलों में FIR दर्ज करने की इजाजत मांगी थी. लेकिन राज्य सरकार ने इससे इंकार कर दिया और सीबीआई ने ये केस दर्ज नहीं किए हैं. केंद्र सरकार ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत वाद पश्चिम बंगाल द्वारा एक गलत धारणा रखते हुए दायर किया गया है कि सामान्य सहमति को वापस लेने की शक्ति संपूर्ण है. केंद्र ने कहा, "रेलवे क्षेत्रों' में किए गए अपराधों, या सीमा पार अंतरराष्ट्रीय अवैध व्यापार से संबंधित अपराधों, या प्रत्यक्ष प्रशासनिक के तहत कर्मचारियों से संबंधित अपराधों या बहु-राज्य प्रभाव वाले अपराधों की जांच करने के संबंध में केंद्र सरकार का नियंत्रण है. इन मामलो में यह अप्रासंगिक है कि संबंधित राज्य सरकार ने अपनी सहमति दी है या नहीं.

संविधान और DPSE अधिनियम स्पष्ट रूप से सीबीआई को ऐसे मामले में जांच करने की शक्ति प्रदान करता है.सीबीआई सूची 1 (संघ सूची) में प्रविष्टियों से संबंधित सभी अपराधों की जांच करने की हकदार है. इसके अलावा, यह हमेशा बड़ी अदालतों के लिए चुनिंदा मामलों में ऐसी अनुमति देने के लिए खुला है जहां यह पाया जाता है कि राज्य पुलिस प्रभावी रूप से निष्पक्ष और सही जांच नहीं करेगी.

केंद्रीय सूची 1 में प्रविष्टियों से संबंधित विषय वस्तु की जांच करने का अधिकार केवल केंद्रीय एजेंसियों के पास है, न कि राज्य पुलिस को. केंद्र ने कहा कि अगर राज्य पुलिस सशस्त्र बलों, रेलवे, परमाणु ऊर्जा, रेलवे, उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क से संबंधित विषयों के संबंध में अपराधों की जांच नहीं कर सकती है, तो क्या राज्य यह तर्क दे सकता है कि केंद्रीय एजेंसियां ​​भी इसकी जांच नहीं कर सकती क्योंकि उस विशेष राज्य द्वारा सामान्य सहमति वापस ले ली गई है?
अन्यथा इसका परिणाम यह होगा कि एक शून्य मौजूद होगा जिसके तहत कोई भी प्राधिकरण नहीं होगा जो केंद्रीय अधिनियमों के तहत उन अपराधों की जांच कर सके.

इसलिए राज्य सरकार द्वारा सहमति वापस लेने से संबंधित अपराधों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. ऐसी कई जांच हैं जो केंद्र सरकार के कर्मचारियों के खिलाफ की जा रही हैं या ऐसे अपराधों की जांच करने के उद्देश्य हैं जहां एक से अधिक राज्यों पर अखिल भारतीय प्रभाव या प्रभाव है. यह हमेशा वांछनीय है और न्याय के व्यापक हित में केंद्रीय एजेंसी ऐसे मामलों में जांच करती है. केंद्र सरकार के कर्मचारी द्वारा किए गए अपराध या बहु-राज्य या अखिल भारतीय प्रभाव वाले अपराध की स्थिति में, केंद्रीय एजेंसी द्वारा की गई जांच संघीय ढांचे को नुकसान नहीं पहुंचाएगी या प्रभावित नहीं करेगी या राज्य का अधिकार नहीं छीनेगी 

यह समझ में नहीं आ रहा है कि राज्य सरकार ऐसी जांच के आड़े क्यों आई, जिसका ऐसे बहुराज्यीय/अखिल भारतीय अपराधों के दोषी लोगों को बचाने के लिए अपरिहार्य प्रभाव पड़ेगा. पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा केंद्र के खिलाफ दाखिल मूल वाद ( ऑरिजिनल सूट) पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की.  

ममता सरकार ने आरोप लगाया है कि पश्चिम बंगाल में  सहमति वापस लेने के बावजूद सीबीआई FIR दर्ज करके शासन के संघीय ढांचे का उल्लंघन कर रही है. ममता सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत राज्य द्वारा दायर मूल मुकदमे परजल्द सुनवाई की मांग भी की. 

वाद में राज्य की ओर से कहा गया है कि पश्चिम बंगाल में घटनाओं से संबंधित मामलों के पंजीकरण के लिए सीबीआई से सामान्य सहमति वापस लेने के  तीन साल बाद भी सीबीआई ने राज्य में हुई घटनाओं से संबंधित 12 मामले दर्ज किए हैं. ममता सरकार ने कहा है कि कानून और व्यवस्था और पुलिस को संवैधानिक रूप से राज्यों के विशेष अधिकार क्षेत्र में रखा गया है. सीबीआई द्वारा मामले दर्ज करना अवैध है. ये  केंद्र और राज्यों के बीच संवैधानिक रूप से वितरित शक्तियों का उल्लंघन है. पश्चिम बंगाल ने कहा कि उसने वर्ष 2018 में सामान्य सहमति वापस ले ली थी, लेकिन उसके बाद भी मामले दर्ज किए जा रहे हैं 

कोयला घोटाला मामले में TMC सांसद अभिषेक बनर्जी के खिलाफ की गई कार्रवाई से नाराज ममता बनर्जी सरकार ने केंद्र और उसकी जांच एजेंसियों पर मामले दर्ज करके देश के संघीय ढांचे का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष केंद्र-राज्य विवाद उठाया है. 

राज्य द्वारा बताए गए  12 सीबीआई मामलों में ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड खदानों से संबंधित कथित करोड़ों रुपये का कोयला चोरी घोटाला भी शामिल है. इसमें सीबीआई मामले के आधार पर ईडी ने PMLA के तहत मामला दर्ज किया था और टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी और उनकी पत्नी रुजीरा को तलब किया था.

हालांकि केंद्र सरकार के नियंत्रण वाले रेलवे क्षेत्र में कथित तौर पर हुए कोयला घोटाले के मामले में सीबीआई की FIR  की वैधता को लेकर पहले ही सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. बंगाल सरकार का कहना है कि जिन राज्यों ने DSPE अधिनियम की धारा 6 के तहत सामान्य सहमति वापस ले ली है,वहां सिर्फ संवैधानिक अदालतों के आदेश पर ही सीबीआई मामले दर्ज कर सकती है. राज्य सरकार ने 2 अगस्त 1989 को 16 नवंबर 2018 को दी गई सहमति को वापस ले लिया था.

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