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This Article is From Feb 11, 2021

Exclusive : ऋषिगंगा नदी को मलबे ने रोका, झील की शक्ल में इकट्ठा हो रहा है पानी, जल्द कदम उठाने की जरूरत

Uttarakhand Glacier Disaster: गढ़वाल यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट औफ़ रुरल टैक्नौलजी के असिस्टेट प्रोफेसर और जियोलोजिस्ट डॉक्‍टर नरेश राणा हादसे की वजह के अध्ययन के लिए मौके पर पहुंचे और ऋषिगंगा नदी में झील की जानकारी प्रशासन तक पहुंचाई.

Glacier Burst in Chamoli: जियोलोजिस्ट डॉक्‍टर नरेश राणा हादसे की वजह के अध्ययन के लिए मौके पर पहुंचे

नई दिल्ली:

Uttarakhand avalanche tragedy: उत्तराखंड के चमोली ज़िले में ऋषिगंगा नदी से हुई तबाही (Uttarakhand tragedy) के बाद राहत और बचाव का काम जारी है. इस बीच ये ख़बर आई है कि ऋषिगंगा नदी अब भी उस जगह पर रुकी हुई हैं जहां ऋषिगंगा नदी और रौंठीगाड़ नदी का संगम होता है. सात फरवरी की सुबह 5600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित रौंठी पीक से भारी हिमस्खलन हुआ जिसने अपने साथ भारी चट्टानी मलबा रौंठीगाड़ नदी में डाल दिया... इस नदी से होते हुए ये मलबा नीचे ऋषिगंगा नदी में मिला जिससे नीचे के इलाकों में तबाही मची और दो पावर प्रोजेक्ट नेस्तनाबूद हो गए. अब चिंता की बात ये है कि जिस जगह पर ऋषिगंगा और रौंठीगाड़ नदी का संगम होता है वहां रौंठीगाड़ में आए भारी मलबे ने ऋषिगंगा नदी का पानी रोक दिया है. 7 फरवरी से ये पानी रुका हुआ है जिससे ऋषिगंगा नदी एक झील में तब्दील हो रही है. 

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गढ़वाल यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट औफ़ रुरल टैक्नौलजी के असिस्टेट प्रोफेसर और जियोलोजिस्ट डॉक्‍टर नरेश राणा हादसे की वजह के अध्ययन के लिए मौके पर पहुंचे और ऋषिगंगा नदी में झील की जानकारी प्रशासन तक पहुंचाई. नरेश राणा ने वह मलबा दिखाया जिसने ऋषिगंगा नदी का पानी संगम के पास रोका हुआ है. मलबे के पीछे हरे रंग का पानी दिख रहा है जो झील का एक सिरा है. डॉ. राणा आगे बढ़कर इस झील की लंबाई जानने की कोशिश करेंगे. ये इलाका बहुत ही दुर्गम है इसलिए यहां पैदल आगे बढ़ना काफ़ी दुष्कर काम है. जाने-माने भूगर्भशास्त्री डॉ नवीन जुयाल के मुताबिक, इस झील के पानी को नियंत्रित तरीके से निकाला जाना ज़रूरी है ताकि मलबे पर पानी का दबाव कम हो सके. उनके मुताबिक ऐसा जल्दी से जल्दी किया जाना चाहिए क्योंकि ऋषिगंगा नदी में पीछे से सात ग्लेशियरों का पानी जमा हो रहा है. 

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गढ़वाल विश्वविद्यालय में भूगर्भ विभाग के प्रमुख प्रो. वाई पी सुंद्रियाल के मुताबिक, झील बनने की जानकारी स्थानीय प्रशासन को तुरंत दे दी गई है. प्रोफेसर सुद्रियाल का कहना है कि अब झील बनने की जानकारी मिल गई है इसलिए पैनिक करने की ज़रूरत नहीं है. उम्मीद करनी चाहिए कि प्रशासन जल्द ही इस झील के पानी को नियंत्रित तरीके से निकालने की शुरुआत कर देगा. प्रो. वाईपी सुंद्रियाल और डॉ नवीन जुयाल के मुताबिक, वैज्ञानिक अध्ययन बार-बार ये चेतावनी दे रहे है कि उच्च हिमालय में बांध या अन्य बड़े निर्माण करना ख़तरनाक साबित होगा. उच्च हिमालय में भारी मात्रा में ग्लेशियरों द्वारा छोड़ा गया मलबा है जिसे मोरैन या हिमोढ़ कहते हैं और हिमस्खलन, भूस्खलन या भारी बारिश जैसी स्थिति में ये नदियों के रास्ते नीचे आता है और रास्‍ते में पड़ने वाले बड़े निर्माणों को तो नुक़सान पहुंचाता ही है, भारी जनहानि भी करता है. पिछले कुछ सालों में आई बड़ी त्रासदियां इसकी गवाह हैं.

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