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This Article is From Feb 21, 2022

Prayagraj Assembly Seats: 20 साल पहले जिसने BJP को दी थी इलाहाबाद में करारी शिकस्त, उसी पर कमल खिलाने की दोहरी जिम्मेदारी

2017 में इलाहाबाद की 12 विधानसभा सीटों में से आठ पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी. एक सीट पर बीजेपी की सहयोगी अपना दल ने कब्जा जमाया था. दो सीट बसपा और एक सीट सपा के पास थी. बीजेपी ने इस बार ज्यादातर पुराने विधायकों पर ही दांव लगाया है. प्रयागराज में 27 फरवरी को मतदान होना है.

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Prayagraj Assembly Seats: 20 साल पहले जिसने BJP को दी थी इलाहाबाद में करारी शिकस्त, उसी पर कमल खिलाने की दोहरी जिम्मेदारी
2017 में इलाहाबाद की 12 विधानसभा सीटों में से आठ पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
प्रयागराज:

आजादी के बाद से ही इलाहाबाद और अब प्रयागराज देश की राजनीति का बड़ा केंद्र रहा है. देश और प्रदेश की राजनीति को भी इलाहाबाद प्रभावित करता रहा है. संगम नगरी प्रयागराज में व‍िधानसभा की 12 सीटें हैं. पिछले चुनाव यानी 2017 में यहां 12 विधानसभा सीटों में से 9 विधानसभा सीटों पर भाजपा और उसके सहयोगी दलों ने जीत दर्ज की थी. शहर की तीनों सीट तो बीजेपी की झोली में गई थी लेकिन अतीक अहमद का गढ़ रहे इस शहर के पश्चिमी हिस्से में बीजेपी का परचम लहराना बड़ी बात थी. इस बार प्रयागराज शहर की तीनों सीटों पर राजनीतिक माहौल गर्म है.

इलाहाबाद की सड़कों पर जगह-जगह लाल रंग के बोर्ड पर साइकिल के लिए लिखा स्लोगन, "साइकिल का है यही कमाल, तन मन धन तीनों खुशहाल", समाजवादी पार्टी के चुनाव प्रचार का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह स्मार्ट सिटी के तहत सेहतमंद जीवन के लिए बताई गई साइकिल की महत्ता है. शहर में जगह-जगह साइकिल स्टैंड भी बने हैं लेकिन राजनीति की साइकिल इलाहाबाद शहर की एक सीट पर बमुश्किल ही कभी चल पाई लेकिन इस बार समाजवादी पार्टी यहां भी जीत का परचम लहराने का दावा कर रही है.

इलाहाबाद शहर उत्तरी विधानसभा सीट से सपा के प्रत्याशी संदीप यादव ने कहा कि यह क्षेत्र पढ़े-लिखे लोगों का है और मैं भी संघर्ष करके आया हूं. उन्होंने कहा, "मैं मेरिट के आधार पर चुनाव लड़ना चाहता हूं." उन्होंने कहा कि इलाहाबाद गंगा यमुना साहित्य और सियासत की नगरी है और इस बार  इलाहाबाद की धरती पर समाजवादी परचम लहराने जा रहा है. यहां का जनसैलाब देखकर आप इसका अंदाजा लगा सकते हैं.

दरअसल, जिस सीट पर समाजवादी पार्टी जीत का दावा दावा कर रही है, वहां इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के छात्र और हाई कोर्ट के वकील बड़ी निर्णायक भूमिका अदा करते हैं. यह सीट 1991 से 2002 तक बीजेपी के पास थी. 2007 और 2012 में यह कांग्रेस की झोली में चली गई लेकिन 2017 में फिर यह बीजेपी के पास आ गई. इस बार इस सीट पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधी लड़ाई है. लिहाजा दोनों दलों के प्रत्याशी भी अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हैं.

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भाजपा प्रत्याशी हर्ष बाजपेयी शहर के विकास की बात कर रहे हैं तो कांग्रेस प्रत्याशी अनुग्रह नारायण सिंह उनसे हिसाब-किताब मांग रहे हैं. कांग्रेस प्रत्याशी का आरोप है कि बीजेपी ने जो वादे किए वो पूरे नहीं किए. उन्होंने कहा कि उनकी सरकार आई तो पांच साल में 20 लाख युवाओं को रोजगार देगी.

प्रयागराज की दक्षिणी शहर सीट पुराने इलाहाबाद का दिल है. यह आजादी के बाद से सोशलिस्ट पार्टियों का गढ़ था, जहां से छुन्नन गुरू चुनाव जीतते रहे. हालांकि, सन 1989 से 2002 तक लगातार 5 बार बीजेपी के केशरीनाथ त्रिपाठी जीतते रहे लेकिन 2007 में बसपा के नंद गोपाल नंदी ने उन्हें शिकस्त दे दी. फिर पांच साल बाद 2012 में नंद गोपाल नंदी समाजवादी पार्टी से हार गए और सपा का पहली बार यहां परचम लहराया. 2017 में नंदी ने पार्टी बदलते हुए फिर इस सीट को बतौर बीजेपी प्रत्याशी अपने कब्जे में कर लिया और 2022 में एक बार फिर से वह चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे हैं. वहीं सपा ने भाजपा से आए बड़े कारोबारी रईस चंद्र शुक्ल को अपना उम्मीदवार बनाया है और इस किले को तोड़ने की कोशिश कर रही है लेकिन नंदी अपनी जीत के प्रति आश्वस्त हैं.

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नन्द गोपाल नंदी कहते हैं कि प्रयागराज की शहर दक्षिणी सीट मेरे लिए परिवार की तरह है. नंदी कहते हैं, "शहर दक्षिणी में 87963 घर हैं और 87963 घरों में 73130 घर में मेरा संपर्क है."

इलाहाबाद की तीसरी सीट शहर पश्चिमी बीजेपी का कभी गढ़ नहीं रहा लेकिन 2017 में सिद्धार्थ नाथ सिंह ने वहां अपना परचम लहराया. उससे पहले 1989 से 2002 तक लगातार 5 बार अतीक अहमद के कब्जे में ये सीट रही है. यह उनका गढ़ रहा है. 2004 के लोकसभा चुनाव में जब अतीक अहमद सांसद चुने गए तो उप चुनाव में ये सीट बहुजन समाज पार्टी के राजू पाल के पास चली गई. राजू पाल की 2005 में हत्या हो गई फिर अतीक के भाई अशरफ चुनाव जीते लेकिन 2007 और 2012 में राजू पाल की पत्नी पूजा पाल जीतीं.

हाल के दिनों में अतीक अहमद का वर्चस्व कुछ कमजोर हुआ तो 2017 में बीजेपी ने पहली बार यहां से परचम लहराया. सिद्धार्थ नाथ सिंह फिर से यहां से चुनाव मैदान में हैं और चुनावी मुद्दा अतीक ही हैं. सिद्धार्थ नाथ सिंह को घेरने के लिए सपा ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की छात्र नेता रिचा सिंह को फिर से मैदान में उतारा है. 2017 के चुनाव में सिद्धार्थ नाथ सिंह और रिचा सिंह के बीच 25,336 वोट का ही अंतर था. बीजेपी को 43 फीसदी तो सपा को 30 फीसदी वोट मिले थे. 

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बीजेपी प्रत्याशी और योगी सरकार में मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह कहते हैं कि सभी 403 विधानसभाओं में जहां-जहां अवैध कब्जे हुए थे, वहां बुल्डोजर चला है. वह बुल्डोजर के बहाने अतीक अहमद पर निशाना साध रहे हैं. इसके जवाब में सपा प्रत्याशी रिचा सिंह कहती हैं कि अतीक अहमद का नाम बार-बार  इसलिए लाया जा रहा है क्योंकि सिद्धार्थ नाथ की सोच अब माफिया की सोच हो चुकी है. इसीलिए अगर वह अपने शब्दों में माफिया शब्द ना लाएं तो इसके बिना उनकी बात ही पूरी नहीं होती है. रिचा सिंह ने कहा कि सिद्धार्थ नाथ सिंह शार्ट अटेंडेंट स्टूडेंट है और शार्ट अटेंडेंट स्टूडेंट को एग्जाम में बैठने की परमिशन नहीं होती.

2017 में इलाहाबाद की 12 विधानसभा सीटों में से आठ पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी. एक सीट पर बीजेपी की सहयोगी अपना दल ने कब्जा जमाया था. दो सीट बसपा और एक सीट सपा के पास थी. बीजेपी ने इस बार ज्यादातर पुराने विधायकों पर ही दांव लगाया है. प्रयागराज में 27 फरवरी को मतदान होना है.
 

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