विश्व पुस्तक मेले में लगा पश्चिम बंगाल का स्टाल।
नई दिल्ली:
दिल्ली के प्रगति मैदान में नौ दिनों तक चला 24 वां विश्व पुस्तक मेला रविवार को खत्म हो गया। मेले के आयोजक राष्ट्रीय पुस्तक न्यास (एनबीटी) ने रिकॉर्ड कामयाबी का दावा किया। मेले के आयोजक का दावा है कि पुस्तक प्रेमियों की संख्या में इस साल लगभग 25 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। न्यास के अध्यक्ष बलदेव भाई शर्मा ने NDTV इंडिया से कहा कि पढ़ने का शौक रखने वालों का दौर फिर से लौट रहा है। हालांकि इस मेले में उर्दू प्रेमियों को मायूसी का सामना करना पड़ा क्योकि देश में लगभग 14 उर्दू अकादमी हैं, जिनमें उर्दू विकास के नाम पर सिर्फ दिल्ली और वेस्ट बंगाल उर्दू अकादमी ही नजर आई।
चीन से पुस्तकें आईं, यूपी-बिहार से नहीं आईं
उत्तर प्रदेश और बिहार राज्य में उर्दू को दूसरी सरकारी भाषा का दर्ज भी प्राप्त है। वहां उर्दू की तरक्की के नाम पर उन लोगों को उर्दू अकादमी का चेयरमैन बनाया जाता है जो उर्दू जगत में बड़ा नाम होते हैं। वह उर्दू का सहारा लेकर सियासी फायदा उठाने में अव्वल रहे हैं। लेकिन एशिया के इस सबसे बड़े पुस्तक मेले में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में उन्होंने कोई रुचि नहीं दिखाई। चीन के लोग अपनी भाषा और साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिए इस मेले में चले आए, लेकिन देश की दो उर्दू अकादमियों को छोड़कर अन्य ने इसमें कोई रुचि नहीं ली।
उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी
उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार उर्दू से लगाव की बात करती है। उर्दू की तरक्की के लिए उर्दू अकादमी का गठन भी किया है। उसका चेयरमैन मशहूर शायर नवाज़ देवबंदी को बनाया गया है, लेकिन उनकी कयादत में उर्दू अकादमी ने उत्तर प्रदेश के बाहर लगने वाले किताबी मेले में राज्य की उर्दू अकादमी का प्रतिनिधित्व करने में नाकाम रही। नवम्बर 2015 में दिल्ली में राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद द्वारा जामिया मिल्लिया इस्लामिया में 9 दिन तक चले 18वें राष्ट्रीय उर्दू पुस्तक मेले में अकादमी का स्टाल तो लगा लेकिन किताबें ही वहां नहीं पहुंचीं। हैरत तो तब हुई जब पिछले दिनों दिल्ली के प्रगति मैदान में नौ दिनों तक चले 24 वें विश्व पुस्तक मेले में स्टाल ही नहीं लगा। अकादमी के सचिव सय्यद रिज़वान ने एनडीटीवी से कहा कि 'राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद द्वारा आयोजित मेले में हमारे बंडल प्राइवेट ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट की गलती से कहीं और चले गए थे, जिसकी वजह से स्टाल लगा रहने के बावजूद किताबें वहां नहीं पहुंचीं। हमने ट्रांसपोर्ट पर हर्जाने का दावा भी किया है।' विश्व पुस्तक मेला में अकादमी के न पहुंचने का कारण आयोजक द्वारा सूचना देर से देने को वजह बताने से भी वे नहीं हिचके।
बिहार उर्दू अकादमी
बिहार में उर्दू दूसरी सरकारी भाषा है और यहां बिहार उर्दू अकादमी भी अपना काम कर रही है। सरकारी सौतेलेपन की वजह से वह सिर्फ पटना तक ही महदूद रही है। यही वजह है कि दिल्ली में राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद द्वारा जामिया मिल्लिया इस्लामिया में 9 दिन तक चले राष्ट्रीय उर्दू पुस्तक मेले और विश्व पुस्तक मेले में स्टाल ही नहीं लगे। इससे साफ पता चलता है कि बिहार में उर्दू की तरक्की के लिए किस तरह से कोशिश की जा रही है।
चीन से पुस्तकें आईं, यूपी-बिहार से नहीं आईं
उत्तर प्रदेश और बिहार राज्य में उर्दू को दूसरी सरकारी भाषा का दर्ज भी प्राप्त है। वहां उर्दू की तरक्की के नाम पर उन लोगों को उर्दू अकादमी का चेयरमैन बनाया जाता है जो उर्दू जगत में बड़ा नाम होते हैं। वह उर्दू का सहारा लेकर सियासी फायदा उठाने में अव्वल रहे हैं। लेकिन एशिया के इस सबसे बड़े पुस्तक मेले में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में उन्होंने कोई रुचि नहीं दिखाई। चीन के लोग अपनी भाषा और साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिए इस मेले में चले आए, लेकिन देश की दो उर्दू अकादमियों को छोड़कर अन्य ने इसमें कोई रुचि नहीं ली।
विश्व पुस्तक मेले में लगा उर्दू अकादमी, दिल्ली का स्टाल।
उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी
उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार उर्दू से लगाव की बात करती है। उर्दू की तरक्की के लिए उर्दू अकादमी का गठन भी किया है। उसका चेयरमैन मशहूर शायर नवाज़ देवबंदी को बनाया गया है, लेकिन उनकी कयादत में उर्दू अकादमी ने उत्तर प्रदेश के बाहर लगने वाले किताबी मेले में राज्य की उर्दू अकादमी का प्रतिनिधित्व करने में नाकाम रही। नवम्बर 2015 में दिल्ली में राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद द्वारा जामिया मिल्लिया इस्लामिया में 9 दिन तक चले 18वें राष्ट्रीय उर्दू पुस्तक मेले में अकादमी का स्टाल तो लगा लेकिन किताबें ही वहां नहीं पहुंचीं। हैरत तो तब हुई जब पिछले दिनों दिल्ली के प्रगति मैदान में नौ दिनों तक चले 24 वें विश्व पुस्तक मेले में स्टाल ही नहीं लगा। अकादमी के सचिव सय्यद रिज़वान ने एनडीटीवी से कहा कि 'राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद द्वारा आयोजित मेले में हमारे बंडल प्राइवेट ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट की गलती से कहीं और चले गए थे, जिसकी वजह से स्टाल लगा रहने के बावजूद किताबें वहां नहीं पहुंचीं। हमने ट्रांसपोर्ट पर हर्जाने का दावा भी किया है।' विश्व पुस्तक मेला में अकादमी के न पहुंचने का कारण आयोजक द्वारा सूचना देर से देने को वजह बताने से भी वे नहीं हिचके।
बिहार उर्दू अकादमी
बिहार में उर्दू दूसरी सरकारी भाषा है और यहां बिहार उर्दू अकादमी भी अपना काम कर रही है। सरकारी सौतेलेपन की वजह से वह सिर्फ पटना तक ही महदूद रही है। यही वजह है कि दिल्ली में राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद द्वारा जामिया मिल्लिया इस्लामिया में 9 दिन तक चले राष्ट्रीय उर्दू पुस्तक मेले और विश्व पुस्तक मेले में स्टाल ही नहीं लगे। इससे साफ पता चलता है कि बिहार में उर्दू की तरक्की के लिए किस तरह से कोशिश की जा रही है।
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