अखिलेश यादव और मायावती (फाइल फोटो)
लोकसभा चुनाव 2019 के औपचारिक शंखनाद से पहले ही उत्तर प्रदेश की सियासत में हलचल तेज हो गई है. यूपी में सियासी बाजी अपने नाम करने के लिए बुआ-भतीजा यानी मायावती और अखिलेश यादव ने साथ आने का मन बना लिया है और उम्मीद की जा रही है कि शनिवार को सपा-बसपा गठबंधन को लेकर औपचारिक ऐलान हो सकता है. हालांकि, अभी तक यूपी में महागठबंधन की घोषणा हुई भी नहीं कि सीटों को लेकर सहयोगियों में खींचतान की खबरें आने लगी हैं. राष्ट्रीय लोकदल के सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, आरएलडी महागठबंधन का हिस्सा हो गया है, मगर अभी तक सीटों को लेकर सहमति नहीं बनी है. आरएलडी प्रमुख अजित सिंह ने कहा है कि उनकी पार्टी सपा-बसपा महागठबंधन का हिस्सा है, मगर अभी तक सीटों पर बात नहीं हुई है.
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अजित सिंह ने कहा कि कांग्रेस को लेकर सपा और बसपा फैसला करेगी कि उसे लोकसभा चुनाव के मद्देनदर गठबंधन में रखना है या नहीं. हालांकि, सूत्रों की मानें तो आरएलडी ने सपा-बसपा गठबंधन से 5 सीटों की मांग की है, जबकि सपा-बसपा गठबंधन आरएलडी को तीन सीटें देने को तैयार है. दरअसल, आरएलडी ने जिन पांच सीटों की मांग की है, वह हैं- हाथरस, कैराना, बागपत, मुज़फ़्फरनगर और कैराना. हालांकि, अभी तक सीटों पर पूरी तरह से सहमति नहीं बनी है.
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दरअसल, सीटों पर बातचीत को अंतिम रूप देने के लिए दो दिन पहले जयंत चौधरी अखिलेश यादव से मिलने लखनऊ गए थे. वहां अखिलेश यादव ने उन्हें सीटों को लेकर भरोसा दिलाया है. बहराहल, शनिवार को होने वाले अखिलेश यादव और मायावती के साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में जयंत चौधरी प्रेस कांफ्रेंस में नहीं जाएंगे. बता दें कि शनिवार को लखनऊ में ताज होटल में अखिलेश यादव और मायवती साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगी और महागठबंधन का औपचारिक ऐलान करेंगी.
वहीं खबर यह भी है कि मायावती और अखिलेश यादव के सपा-बसपा को लेकर औपचारिक ऐलान से पहले यूपी कांग्रेस की टीम भी दिल्ली में मैराथन बैठक करेगी और आगे की रणनीति पर चर्चा करेगी. कांग्रेस भी बसपा-सपा गठबंधन के मद्देनजर भविष्य की रणनीति पर चर्चा करेगी और इसमें राज बब्बर और पीएल पुनिया शामिल होंगे.
राजनीतिक गलियारों में ऐसी चर्चा है कि उत्तर प्रदेश की ये दोनों बड़ी पार्टियां यानी सपा-बसपा 37-37 लोकसभा सीटों पर साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगी. बता दें कि उत्तर प्रदेश में लोकसभा की कुल 80 सीटें हैं. यूपी की सियासी गलियाओं में चर्चा इस बात पर भी है कि बसपा-सपा गठबंधन में अमेठी और रायबरेली की सीटें छोड़ दी जाएंगी और वहां किसी भी उम्मीदवार को नहीं उतारा जाएगा. इसके बाद जो सीटें बच रही हैं उससे राष्ट्रीय लोकदल और अन्य छोटी पार्टियों के लिए छोड़ा जायेगा. यानी सपा और बसपा के बीच गठबंधन की बात सही साबित होती है तो इसका मतलब है कि कांग्रेस इस गठबंधन का हिस्सा नहीं होगी और यूपी की अन्य क्षेत्रीय पार्टियों को जोड़ने की सपा-बसपा पूरजोर कोशिश करेगी. इस तरह से देखा जाए तो सपा-बसपा का संगम होता है तो कांग्रेस बड़ा झटका तो होगा. साथ ही साथ बीजेपी के लिए भी किसी बड़े झटके से कम नहीं होगी.
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बता दें कि विधानसभा चुनाव में जहां बीजेपी को 39.6% वोट मिले तो सपा और बीएसपी को 22 फीसदी. दोनों के वोटों को मिला दें तो 44 फीसदी हो जाता है. कांग्रेस को मात्र 6 फीसदी ही वोट मिले थे. वहीं, बात करें लोकसभा चुनाव 2014 की तो बीजेपी को उत्तर प्रदेश में 42.6% वोट मिले थे. सपा को 22 फीसदी और बीएसपी को 20 फीसदी वोट मिले थे. बहरहाल, ऐसी खबरें हैं कि 15 जनवरी के बाद सीटों के बंटवारे को अंतिम रूप दिया जा सकता है.
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