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This Article is From Jan 16, 2020

CAA में इन शरणार्थियों को नागरिकता नहीं, रिजर्वेशन और जमीन का हक चाहिए

उत्तर प्रदेश के रामपुर में बसे 8000 हिंदू शरणार्थियों के नाम सरकार को भेजे गए, उन्होंने कहा- उनके पास वोटर आईडी, आधार, सब कुछ है

रामपुर के मानपुर ओझा गांव में करीब 8000 हिंदू शरणार्थी बसे हैं जो कि बांग्लादेश से यहां आए थे.

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रामपुर के मानपुर ओझा गांव में एक छोटा सा बंगाल बसता है
बंटवारे के बाद कई सालों तक पूर्वी पाकिस्तान के शरणार्थी आकर बसे
रामपुर के नवाब ने हिंदू शरणार्थियों को यहां बसाया था
लखनऊ:

नागरिकता संशोधन कानून आने के बाद नागरिकता देने के लिए रामपुर में बसे जिन 8000 हिंदू शरणार्थियों के नाम सरकार को भेजे गए हैं वे कहते हैं कि उन्हें नागरिकता की कोई समस्या नहीं है क्योंकि उनके पास वोटर आईडी, आधार,  सब कुछ है. लेकिन उन्हें आरक्षण नहीं मिलता, वह दिया जाए और पट्टे पर मिली 5 एकड़ जमीन उनके नाम लिखी जाए. रामपुर के मानपुर ओझा गांव में एक छोटा सा बंगाल बसता है. बंटवारे के बाद से सालों तक यहां पूर्वी पाकिस्तान से शरणार्थी आकर बसते रहे. अब उनकी तादाद करीब 8000 है.

द्विजवर बैरागी का परिवार यहां 1960 में आकर  बसा. वे अपने बेटे के साथ परचून की दुकान करते हैं. वे चाहते हैं कि जैसे भारतीय लोगों को आरक्षण मिलता है, उन्हें भी दिया जाए. द्विजवर बैरागी कहते हैं कि ''हम लोग हैं तो हिंदू, लेकिन हम शेड्यूल कास्ट में आते हैं. नामो शूद्र शेड्यूल कॉस्ट में आते हैं. हमें पूर्वी बंगाल में नामो शूद्र जाति का दर्जा मिला है. यहां हमने काफी प्रयास किया, कर भी रहा हूं, लेकिन हमें अभी उसका दर्जा नहीं मिला है.''

उज्ज्वल मंडल बंटवारे से पहले पैदा हुए थे. बाद में पूर्वी पाकिस्तान और फिर बांग्लादेश बना. वे भी शरणार्थियों के रिजर्वेशन के लिए संघर्ष कर रहे हैं. उज्ज्वल कुमार मंडल कहते हैं कि ''प्राब्लम यह है कि बांग्ला भाषा, हिन्दी भाषा और प्रांतीय भाषाओं में थोड़ा फर्क होता है और जाति में भी फर्क होता है, जाति के नाम में. जैसे कोई यहां नाई है तो उसको यहां नाई बोलते हैं, तो हमारे यहां नाई नहीं बोलते. हमारे यहां उसको प्रमानिक बोलते हैं, शील बोलते हैं. तो यहां का बच्चा अगर अपनी जाति को शील लिखता है तो वो नाई नहीं माना जाएगा. क्यों...क्योंकि वो नाई नहीं लिख रहा है.''

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देश के बंटवारे के वक्त पाकिस्तान से ट्रेन से रामपुर स्टेशन पहुंचे हिंदू शरणार्थियों ने जब देखा कि यहां नवाबों की हुकूमत है और ज्यादातर लोग मुसलमान…तो वे फिर यहां से वापस जाने लगे. रामपुर के नवाब को पता चलने पर वे हिंदू शरणार्थियों को समझाकर लाए और यहां बसाया. बाद में भी सरकार ने उन्हें पांच एकड़ खेत का पट्टा और 500 रुपये बैल खरीदने को दिए. अब वे चाहते हैं कि जमीन की उनकी रिजिस्ट्री कर दी जाए.

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द्विजवर बैरागी ने कहा कि ''हम लोगों को जो जमीन दी गई है उस पर हम लोग खेतीबाड़ी कर सकते हैं. लेकिन उस जमीन पर हमें अधिकार नहीं है कि उस जमीन की हम बिक्री करें, कुछ मकान बनाएं. कुछ करें तो उसका हमारे पास कोई राईट नहीं है.''

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सरकार ने जब जिलाधिकारियों से हिंदू शरणार्थियों की सूची मांगी तो रामपुर से भी फौरन ही 8000 की लिस्ट भेज दी गई, लेकिन अभी उनकी जांच बाकी है.

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रामपुर के डीएम आंजनेय कुमार ने कहा कि ''57 से लेकर 71 के बीच जो परिवार यहां पर आए थे उनका लेखाजोखा यहां पर था. फॉर्मल अभी वेरिफिकेशन नहीं हुआ है. फॉर्मल सर्वे नहीं हुआ है लेकिन जो रॉ डेटा था, भेज दिया है. और उसमें यह कहना मुश्किल है कि कौन उसमें से नागरिकता की श्रेणी में आते हैं, कौन नहीं आते हैं. यह तय करना शासन का काम है.''

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