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This Article is From Jul 27, 2017

संविधान पीठ का सरकार से सवाल- क्या आधार डेटा को प्रोटेक्ट करने के लिए कोई मजबूत मैकेनिज्म है?

राइट टू प्राइवेसी के मामले में सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों की संविधान पीठ कर रही सुनवाई

संविधान पीठ का सरकार से सवाल- क्या आधार डेटा को प्रोटेक्ट करने के लिए कोई मजबूत मैकेनिज्म है?
प्रतीकात्मक फोटो.
नई दिल्ली: राइट टू प्राइवेसी के मामले में नौ जजों की संविधान पीठ ने केंद्र सरकार से पूछा कि क्या आधार के डेटा को प्रोटेक्ट करने के लिए कोई मजबूत मैकेनिज्म है?  

बेंच में शामिल जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने सुनवाई के दौरान कहा कि विचार करने की बात यह है कि मेरे टेलीफोन या ईमेल को सर्विस प्रोवाइडरों के साथ शेयर क्यों किया जाए? मेरे टेलीफोन पर कॉल आती हैं तो विज्ञापन भी आते हैं. तो मेरा मोबाइल नंबर सर्विस प्रोवाइडरों से क्यों शेयर किया जाना चाहिए? क्या केंद्र सरकार के पास डेटा प्रोटेक्ट करने के लिए ठोस सिस्टम है? सरकार के पास डेटा को संरक्षित करने लिए ठोस मैकेनिज्म होना चाहिए. हम जानते हैं कि सरकार कल्याणकारी योजनाओं के लिए आधार डेटा इकट्ठा कर रही है लेकिन यह भी सुनिश्चित हो कि डेटा सुरक्षित रहे.

एएसजी तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि ये डेटा पूरी तरह प्रोटेक्टेड है और अगली सुनवाई में वे बताएंगे.

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वहीं गैर बीजेपी राज्यों के सुप्रीम कोर्ट आने के बाद अब महाराष्ट्र की बीजेपी सरकार भी सुप्रीम कोर्ट पहुंची है और केंद्र सरकार का समर्थन किया है. राज्य सरकार ने कोर्ट में कहा कि प्राइवेसी एक मौलिक अधिकार नहीं है बल्कि एक धारणा है. प्राइवेसी की व्याख्या नहीं की जा सकती. यह कोई अलग से अधिकार नहीं है.

VIDEO : प्राइवेसी मौलिक अधिकार है या नहीं..

सरकार ने कहा कि याचिकाकर्ता कह रहे हैं कि 40 साल से सुप्रीम कोर्ट मान रहा है कि प्राइवेसी मौलिक अधिकार है. लेकिन 1975 के एक जजमेंट में कहा गया कि अगर मान लिया जाए कि प्राइवेसी मौलिक अधिकार है. यानि याचिकाकर्ताओं की यह दलील गलत है कि सुप्रीम कोर्ट मानता रहा है कि प्राइवेसी मौलिक अधिकार है. मामले में अगली सुनवाई एक अगस्त को होगी.

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