प्रतीकात्मक फोटो
नई दिल्ली:
सरकार की एक महत्वपूर्ण योजना मनरेगा के मंगलवार को 10 साल पूरे हो जाएंगे, लेकिन मनरेगा को लेकर मौजूदा एनडीए सरकार ने जहां एक साल पहले आलोचना की थी वहीं अब सरकार की सोच में एक बड़ा बदलाव साफ नजर आ रहा है।
लोक सभा में पिछले साल 27 फरवरी को दिए एक अहम बयान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था, "मनरेगा आपसी विफलताओं का जीता जागता स्मारक है। आजादी के 60 साल बाद आपको लोगों को गड्ढे खोदने के लिए भेजना पड़ा। मैं गाजे-बाजे के साथ इस स्मारक काढोल पीटता रहूंगा।" लेकिन अब एक साल बाद महात्मा गांधी नरेगा योजना को लेकर सरकार की सोच में बदलाव दिख रहा है।
जिंदगी हुई आसान
रांची जिले के बुकी बुलेर गांव की शीलावती देवी को काम महात्मा गांधी नरेगा योजना के तहत मिला है। वे खुश हैं कि कुआं के निर्माण के बाद सिंचाई और पीने के पानी के लिए दर-दर भटकना नहीं पड़ेगा, जिंदगी आसान हो जाएगी। वह कहती हैं कि मनरेगा को लागू करने की प्रक्रिया में अहम बदलाव किए गए हैं जिससे काम मिलना आसान हो गया है और जिंदगी आसान हो गई है।
समय पर नहीं मिल रही मजदूरी
लेकिन चुनौतियां अब भी बरकरार हैं। मनरेगा में काम तो मिलने लगा है लेकिन इसके तहत मजदूरी करने वाले सैकड़ों लोगों को पैसे समय पर नहीं मिल रहे। रांची जिले की सावित्री कच्छप कहती हैं, "हम काम करा रहे हैं 3-4 हफ्ते से। अभी तक सिर्फ 4 दिन का 3-4 लेबर का ही पेमेन्ट मिला है।"
मनरेगा के पटरी पर लौटने का दावा
उधर ग्रामीण विकास मंत्रालय का दावा है कि 2015-16 में मनरेगा दोबारा पटरी पर लौटा है। पिछली दो तिमाही में औसतन जितना रोजगार मिला उतना पिछले पांच साल में नहीं मिला था। यह आंकड़े ऐसे वक्त पर जारी किए गए हैं जब मनरेगा को लेकर सरकार की मंशा पर विरोधी पार्टियां समय-समय पर सवाल उठाती रही हैं। आंकड़े यह भी बताते हैं कि ग्रामीण भारत में भूमिहीन गरीब लोगों की मनरेगा पर निर्भरता बढ़ती जा रही है।
अब कांग्रेस कह रही है कि एनडीए सरकार को मनरेगा का महत्व काफी देर से समझ में आया है। पार्टी प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने यह बात कही है। मंगलवार को मनरेगा के दस साल पूरे हो रहे हैं। पहले दस साल में सरकार इस पर कुल 3.13 लाख करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है।
लोक सभा में पिछले साल 27 फरवरी को दिए एक अहम बयान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था, "मनरेगा आपसी विफलताओं का जीता जागता स्मारक है। आजादी के 60 साल बाद आपको लोगों को गड्ढे खोदने के लिए भेजना पड़ा। मैं गाजे-बाजे के साथ इस स्मारक काढोल पीटता रहूंगा।" लेकिन अब एक साल बाद महात्मा गांधी नरेगा योजना को लेकर सरकार की सोच में बदलाव दिख रहा है।
जिंदगी हुई आसान
रांची जिले के बुकी बुलेर गांव की शीलावती देवी को काम महात्मा गांधी नरेगा योजना के तहत मिला है। वे खुश हैं कि कुआं के निर्माण के बाद सिंचाई और पीने के पानी के लिए दर-दर भटकना नहीं पड़ेगा, जिंदगी आसान हो जाएगी। वह कहती हैं कि मनरेगा को लागू करने की प्रक्रिया में अहम बदलाव किए गए हैं जिससे काम मिलना आसान हो गया है और जिंदगी आसान हो गई है।
समय पर नहीं मिल रही मजदूरी
लेकिन चुनौतियां अब भी बरकरार हैं। मनरेगा में काम तो मिलने लगा है लेकिन इसके तहत मजदूरी करने वाले सैकड़ों लोगों को पैसे समय पर नहीं मिल रहे। रांची जिले की सावित्री कच्छप कहती हैं, "हम काम करा रहे हैं 3-4 हफ्ते से। अभी तक सिर्फ 4 दिन का 3-4 लेबर का ही पेमेन्ट मिला है।"
मनरेगा के पटरी पर लौटने का दावा
उधर ग्रामीण विकास मंत्रालय का दावा है कि 2015-16 में मनरेगा दोबारा पटरी पर लौटा है। पिछली दो तिमाही में औसतन जितना रोजगार मिला उतना पिछले पांच साल में नहीं मिला था। यह आंकड़े ऐसे वक्त पर जारी किए गए हैं जब मनरेगा को लेकर सरकार की मंशा पर विरोधी पार्टियां समय-समय पर सवाल उठाती रही हैं। आंकड़े यह भी बताते हैं कि ग्रामीण भारत में भूमिहीन गरीब लोगों की मनरेगा पर निर्भरता बढ़ती जा रही है।
अब कांग्रेस कह रही है कि एनडीए सरकार को मनरेगा का महत्व काफी देर से समझ में आया है। पार्टी प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने यह बात कही है। मंगलवार को मनरेगा के दस साल पूरे हो रहे हैं। पहले दस साल में सरकार इस पर कुल 3.13 लाख करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है।
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