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This Article is From Apr 06, 2012

तहलका-एनडीटीवी स्टिंग : पुलिस के मुताबिक पीड़ित ही जिम्मेदार रेप के लिए

नई दिल्ली: आज आप तक हम पहुंचा रहे हैं एक ऐसा खुलासा जिसके बारे में हम अक्सर बात तो करते रहे हैं लेकिन साफ-साफ इसे देखना सुनना फिर भी चौंकाने वाला है।

बलात्कार एक ऐसा जुर्म है जिसकी शिकार हुई महिला को हमारा समाज हमारा तंत्र दोषी से ज्यादा दोषी महसूस करा देता है। कानून हैं, पहले से बेहतर कानून हैं लेकिन जो इस कानून को लागू करते हैं वे पुलिसवाले क्या सोचते हैं बलात्कार जैसे संगीन जुर्म को लेकर...।

मर्द तो मर्द महिला पुलिस अधिकारी भी बलात्कार के लिए बलात्कारी से ज्यादा पीड़ित लड़की या महिला को ही जिम्मेदार मानती है। सारे सवाल लड़कियों पर ही उठे बात चाहे उसके कपड़ों की हो या व्यवहार की या यहां तक कि परिवार की भी। बदकिस्मती से ये हाल राजधानी और उससे सटे इलाकों की पुलिस का है। इसी बीमार सोच के मारे 30 पुलिसवालों का खुलासा किया है तहलका और एनडीटीवी ने।

पिछले दिनों गुड़गांव के एक पब में एक 28 साल की कामकाजी लड़की को 6 लोगों ने जबरन उठा लिया और उसके साथ गैंगरेप हुआ। कानूनी तौर पर तो पुलिस बलात्कारियों की तलाश कर रही है लेकिन हकीकत में वह लड़की की निजी जिंदगी में गलतियां तलाश रही है। यह कहते हुए कि पब की कमर्चारी नहीं थी बल्कि ग्राहकों को वहां लाने का काम करती थी।

उसी तरह डीएलएफ फेज 2 के एसएचओ जानशेर सिंह बलात्कार के आरोपियों को 'बच्चे' बताते हैं और कहते हैं कि उम्र की बड़ी लड़की ने ही उन्हें बहकाया।

ज्यादातर पुलिसवालों का मानना है कि बलात्कार अब ब्लैकमेलिंग का हथियार बन चुका है। 17 से ज्यादा अफसरों का मानना है कि यह सबकुछ पैसे के लिए होता है।

मुश्किल से एक महीना पहले नोएडा पुलिस की जोरदार फजीहत हुई जब उसने एक बलात्कार पीड़ित नाबालिग लड़की की पहचान उजागर कर दी जो चलती कार में गैंगरेप का शिकार हुई थी। इस मामले में नोएडा के एसपी सिटी ने पीड़ित लड़की पर ही सवाल उठाए थे लेकिन अब तो हद हो गई जब पुलिस वाले कह रहे हैं कि अगर कोई लड़की 10 लड़कों के साथ कार में बैठती है तो वह मासूम नहीं हो सकती है? उसे पता है कि लड़कों के साथ शराब पीने का अंजाम क्या होगा?

बलात्कार को लेकर बीमार सोच रखने वाले पुलिसवालों का मानना है कि रेप को लेकर सौ में से 99 मामले झूठे होते हैं सिर्फ एक से दो फीसदी केस ही सही होते हैं। अब इसे पुलिसवालों का अहसान मानें या फिर उनकी बीमारी ये फैसला आप बेहतर कर सकते हैं...।

कैमरे के सामने या पब्लिक के सामने दिल्ली पुलिस महिलाओं की सुरक्षा को लेकर चाहे कितने भी बड़े दावे करे लेकिन ऑफ द रिकार्ड उनकी सोच क्या है अगर यह पता चल जाए तो लोगों का पुलिस से यकीन खत्म हो जाएगा। सोचिए! दिल्ली पुलिस का एक अफसर खुलेआम कह रहा है कि कोई बलात्कार बिना लड़की के उकसावे के नहीं होता।

लड़कियों या महिलाओं की ड्रेस क्या होनी चाहिए इसे लेकर बहस होती रही है वक्त-वक्त पर समाज के ठेकेदार इसे लेकर बयान जारी करते रहे हैं। पुलिस के बड़े अफसर महिलाओं के पहनावे को लेकर टीका-टिप्पणी करते रहे हैं। उन लोगों ने बयान बाद में भले ही वापस ले लिया हो लेकिन एक आम पुलिसवाला जिससे आम लोगों का वास्ता पड़ता है वह पूरी मुस्तैदी से यही मानता है कि लड़कियों की ड्रेस पुरुषों को रेप के लिए उकसाने का काम करती है।

राजधानी और उससे लगे इलाकों में रोजी-रोटी के लिए आने वाली नॉर्थ-र्ईस्ट और दूसरे इलाकों की महिलाओं को लेकर पुलिस का मानना है कि वे यहां कमाई के लिए आती हैं लेकिन जब पैसे कम पड़ते हैं तो वे बलात्कार का आरोप लगाती हैं।

अगर पुलिसिया सोच की मानें तो रेप की घटनाओं के लिए वे अपनी नाकामी को कहीं से जिम्मेदार नहीं मानती जिम्मेदारी का ठीकरा कभी लड़की के कपड़े और लाइफ स्टाइल पर फोड़ती है तो कभी घरवालों और घर के माहौल पर।

क्या बलात्कार की शिकायत करना कारोबारी सोच का नतीजा है...। कम से कम गुड़गांव पुलिस तो यही मानती है जिसकी पिछले दिनों खासी छिछालेदर भी हो चुकी है। गुड़गांव पुलिस के अफसरों का मानना है कि बदनामी की परवाह किए बगैर वही लोग शिकायत करते हैं जिन्हें इसमें अपना फायदा नज़र आता है।

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