देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यन के मुताबिक अमीर किसानों पर कर लगाने में क्या हर्ज है?
नई दिल्ली:
क्या वित्त मंत्री अरुण जेटली को पता है कि किसानों पर टैक्स लगाने के काफी अहम नीतिगत सवाल पर देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यन की क्या राय है? या फिर क्या किसानों पर टैक्स लगाने के मामले में देश के वित्त मंत्री और देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार के बीच कोई मतभेद है? मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यन के ताज़ा बयान से ये सवाल नए सिरे से पैदा हो रहा है. दिल्ली में सीआईआई के एक कार्यक्रम में अरविंद सुब्रह्मण्यन ने अमीर किसानों पर टैक्स लगाने का समर्थन किया. सुब्रह्मण्यन का कहना है, अमीर किसानों पर टैक्स में क्या हर्ज है?
वित्त मंत्रालय में जेटली की टीम के एक अहम सदस्य अरविंद सुब्रह्मण्यन का ये बयान ऐसे समय आया है, जब वित्त मंत्री अरुण जेटली को ये सफ़ाई देते हुए 48 घंटे भी नहीं हुए थे कि खेती की आय पर टैक्स लगाने का सरकार का कोई इरादा नहीं है.
वित्त मंत्री ने बुधवार को बयान जारी कर कहा था, "मैंने नीति आयोग की रिपोर्ट में "कृषि आय पर आयकर" नामक पैराग्राफ पढ़ा है. इस विषय में किसी भी भ्रम को दूर करने के लिए मैं स्पष्ट रूप से यह कहता हूं कि केंद्र सरकार की कृषि आय पर कर लगाने की कोई योजना नहीं है. शक्तियों के संवैधानिक आवंटन के अनुसार केंद्र सरकार के पास कृषि आय पर कर लगाने का अधिकार नहीं है."
वित्त मंत्री के स्पष्टीकरण के सिर्फ दो दिन बाद मुख्य आर्थिक सलाहकार का ये बयान कई सवाल खड़े करता है ...पिछले एक ही हफ्ते में सरकार के दो अहम सलाहकारों का बयान कृषि क्षेत्र में आय पर टैक्स लगाने जैसे राजनीतिक तौर पर संवेदनशील मुद्दे पर बड़ी बहस छिड़ गई है.
दरअसल मंगलवार को नीति आयोग के सदस्य बिबेक देबराय ने कहा था कि टैक्स बेस बढ़ाने के लिए कृषि क्षेत्र में टैक्स लगाना एक रास्ता हो सकता है. देबराय ने कहा था, "देश में टैक्स बेस बढ़ाने का एक विकल्प कृषि क्षेत्र में एक सीमित आय से अधिक कमाने वालों पर टैक्स लगाना है. हालांकि बुधवार को नीति आयोग ने बयान जारी कर कहा था कि कृषि आय पर टैक्स लगाने को लेकर जो बयान बिबेक देबराय ने दिया था यो उनकी निजी राय थी. ये आयोग की राय नहीं है. लेकिन क्या ये अच्छी राजनीति बनाम ख़राब अर्थनीति मामला है?
वित्त मंत्रालय में जेटली की टीम के एक अहम सदस्य अरविंद सुब्रह्मण्यन का ये बयान ऐसे समय आया है, जब वित्त मंत्री अरुण जेटली को ये सफ़ाई देते हुए 48 घंटे भी नहीं हुए थे कि खेती की आय पर टैक्स लगाने का सरकार का कोई इरादा नहीं है.
वित्त मंत्री ने बुधवार को बयान जारी कर कहा था, "मैंने नीति आयोग की रिपोर्ट में "कृषि आय पर आयकर" नामक पैराग्राफ पढ़ा है. इस विषय में किसी भी भ्रम को दूर करने के लिए मैं स्पष्ट रूप से यह कहता हूं कि केंद्र सरकार की कृषि आय पर कर लगाने की कोई योजना नहीं है. शक्तियों के संवैधानिक आवंटन के अनुसार केंद्र सरकार के पास कृषि आय पर कर लगाने का अधिकार नहीं है."
वित्त मंत्री के स्पष्टीकरण के सिर्फ दो दिन बाद मुख्य आर्थिक सलाहकार का ये बयान कई सवाल खड़े करता है ...पिछले एक ही हफ्ते में सरकार के दो अहम सलाहकारों का बयान कृषि क्षेत्र में आय पर टैक्स लगाने जैसे राजनीतिक तौर पर संवेदनशील मुद्दे पर बड़ी बहस छिड़ गई है.
दरअसल मंगलवार को नीति आयोग के सदस्य बिबेक देबराय ने कहा था कि टैक्स बेस बढ़ाने के लिए कृषि क्षेत्र में टैक्स लगाना एक रास्ता हो सकता है. देबराय ने कहा था, "देश में टैक्स बेस बढ़ाने का एक विकल्प कृषि क्षेत्र में एक सीमित आय से अधिक कमाने वालों पर टैक्स लगाना है. हालांकि बुधवार को नीति आयोग ने बयान जारी कर कहा था कि कृषि आय पर टैक्स लगाने को लेकर जो बयान बिबेक देबराय ने दिया था यो उनकी निजी राय थी. ये आयोग की राय नहीं है. लेकिन क्या ये अच्छी राजनीति बनाम ख़राब अर्थनीति मामला है?
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