सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग कानून निरस्त किए जाने को लेकर अपनी असहजता दर्शाते हुए सरकार ने गुरुवार को दो टूक शब्दों में उच्चतम न्यायालय से कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित कोलेजियम प्रणाली को पुनर्जीवित करने हेतु न्यायपालिका द्वारा विवेचना और विचार के लिए वह प्रक्रिया के पत्रक का मसौदा तैयार नहीं करेगी।
उच्चतर न्यायपालिका में नियुक्तियों से संबंधित कोलेजियम प्रणाली में सुधार के बारे में सुझावों पर दिन भर की सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति जेएस खेहड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अपना आदेश सुरक्षित रख लिया। संविधान पीठ ने स्पष्ट किया कि कोलेजियम प्रणाली के जरिए न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया को अधर में नहीं रखा जाएगा।
अटार्नी जनरल ने सरकार की ओर से असमर्थता जताई
शीर्ष अदालत ने कल अटार्नी जनरल से कहा था कि प्रकिया के पत्रक का मसौदा तैयार करे। अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने गुरुवार को सुनवाई शुरू होते ही ऐसा करने के प्रति सरकार की और अपनी असमर्थता व्यक्त की। अटार्नी जनरल ने कहा, ‘न्यायपालिका द्वारा विवेचना के लिए प्रक्रिया के पत्रक का मसौदा तैयार करना संभव नहीं है।’ रोहतगी ने यह भी स्पष्ट किया कि प्रक्रिया का पत्रक तैयार करना ‘कार्यपालिका का काम है जिसे प्रधान न्यायाधीश से परामर्श करके किया जाना चाहिए और न्यायालय को इसके विवारण को लेकर चिंता नहीं करनी चाहिए।’ अटार्नी जनरल ने कहा, ‘शीर्ष अदालत को प्रक्रिया के पत्रक की विवेचना करने की जरूरत नहीं है या इसे तैयार करने में खुद को शामिल नहीं करना चाहिए। यह डिक्री पर अमल करने जैसा ही सरकार का काम है। सरकार के लिए न्यायिक समीक्षा और विचार हेतु प्रक्रिया के पत्रक का मसौदा तैयार करना संभव नहीं है।’ उन्होंने कहा, ‘हम न्यायिक मंत्रणा के लिए कोई मसौदा पेश नहीं कर सकते। इस बारे में या तो हम फैसला करेंगे या फिर आप कीजिए। संविधान में प्रक्रिया के पत्रक का मसौदा तैयार करने की कोई प्रक्रिया नहीं है। हम इसे जारी नहीं कर सकते।’
कल सहमत थे, आज असहमति कैसे?
फैसलों को लागू करने की सरकार की कार्य प्रणाली का जिक्र करते हुए अटार्नी जनरल ने सुझाव दिया कि पीठ निर्देश पारित कर सकती है जिनका प्रधान न्यायाधीश के परामर्श से कार्यपालिका पालन करेगी। रोहतगी द्वारा गुरुवार को प्रक्रिया के पत्रक का मसौदा तैयार करने में असमर्थता व्यक्त करते ही संविधान पीठ ने सवाल किया कि कल वह इसे तैयार करने के लिए क्यों सहमत हो गए थे।
संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर, न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर, न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ और न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल शामिल हैं। संविधान पीठ ने सवाल किया, ‘आज इस रुख में बदलाव क्यों? आपने ही कल कहा था कि आप एक प्रस्ताव का मसौदा तैयार करेंगे और अब इसमें बदलाव क्यों?’ इस पर रोहतगी ने कहा, ‘यह विचार हमारी ओर से नहीं आया था। वास्तव में आपने ही कल उठने से पहले चर्चा करने का सुझाव दिया था कि किस तरह के बदलावों की अनुमति दी जा सकती है। निश्चित ही मुझे निर्देश लेना होगा और सरकार से यही निर्देश मिला है जिससे मैं आपको अवगत करा रहा हूं।’ उन्होंने यह भी आशंका व्यक्त की कि क्या यह कवायद नौ न्यायाधीशों की पीठ के फैसले की वजह से अस्तित्व में आई कोलेजियम प्रणाली के पहले वाली रूपरेखा की पूरक होगी या उसका स्थान लेगी।
यदि सरकार ही अंतिम रूप देगी तो फिर प्रधान न्यायाधीश की भूमिका खत्म
संविधान पीठ के सदस्यों ने इस पर कहा, ‘न्यायालय के अधिकारी के रूप में आपने कल हमारे सुझाव पर सहमति दी थी और यही वजह है कि हम इस अनुमान के आधार पर आगे बढ़े।’ इस पर रोहतगी ने कहा कि 'हमारे लिए न्यायिक विचार हेतु मसौदा पेश करना संभव नहीं है। यह या तो हम करेंगे या आप कोलेजियम के लिए सचिवालय के गठन, नियुक्ति का आधार निर्धारित करने और शिकायतों से निबटने के बारे में अपना फैसला सुना दीजिए और हम इस पर अमल करेंगे या इसका पालन करेंगे। यदि सरकार ही इसे अंतिम रूप देगी तो फिर प्रधान न्यायाधीश की भूमिका खत्म हो जाती है।’
उच्चतर न्यायपालिका में नियुक्तियों से संबंधित कोलेजियम प्रणाली में सुधार के बारे में सुझावों पर दिन भर की सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति जेएस खेहड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अपना आदेश सुरक्षित रख लिया। संविधान पीठ ने स्पष्ट किया कि कोलेजियम प्रणाली के जरिए न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया को अधर में नहीं रखा जाएगा।
अटार्नी जनरल ने सरकार की ओर से असमर्थता जताई
शीर्ष अदालत ने कल अटार्नी जनरल से कहा था कि प्रकिया के पत्रक का मसौदा तैयार करे। अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने गुरुवार को सुनवाई शुरू होते ही ऐसा करने के प्रति सरकार की और अपनी असमर्थता व्यक्त की। अटार्नी जनरल ने कहा, ‘न्यायपालिका द्वारा विवेचना के लिए प्रक्रिया के पत्रक का मसौदा तैयार करना संभव नहीं है।’ रोहतगी ने यह भी स्पष्ट किया कि प्रक्रिया का पत्रक तैयार करना ‘कार्यपालिका का काम है जिसे प्रधान न्यायाधीश से परामर्श करके किया जाना चाहिए और न्यायालय को इसके विवारण को लेकर चिंता नहीं करनी चाहिए।’ अटार्नी जनरल ने कहा, ‘शीर्ष अदालत को प्रक्रिया के पत्रक की विवेचना करने की जरूरत नहीं है या इसे तैयार करने में खुद को शामिल नहीं करना चाहिए। यह डिक्री पर अमल करने जैसा ही सरकार का काम है। सरकार के लिए न्यायिक समीक्षा और विचार हेतु प्रक्रिया के पत्रक का मसौदा तैयार करना संभव नहीं है।’ उन्होंने कहा, ‘हम न्यायिक मंत्रणा के लिए कोई मसौदा पेश नहीं कर सकते। इस बारे में या तो हम फैसला करेंगे या फिर आप कीजिए। संविधान में प्रक्रिया के पत्रक का मसौदा तैयार करने की कोई प्रक्रिया नहीं है। हम इसे जारी नहीं कर सकते।’
कल सहमत थे, आज असहमति कैसे?
फैसलों को लागू करने की सरकार की कार्य प्रणाली का जिक्र करते हुए अटार्नी जनरल ने सुझाव दिया कि पीठ निर्देश पारित कर सकती है जिनका प्रधान न्यायाधीश के परामर्श से कार्यपालिका पालन करेगी। रोहतगी द्वारा गुरुवार को प्रक्रिया के पत्रक का मसौदा तैयार करने में असमर्थता व्यक्त करते ही संविधान पीठ ने सवाल किया कि कल वह इसे तैयार करने के लिए क्यों सहमत हो गए थे।
संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर, न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर, न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ और न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल शामिल हैं। संविधान पीठ ने सवाल किया, ‘आज इस रुख में बदलाव क्यों? आपने ही कल कहा था कि आप एक प्रस्ताव का मसौदा तैयार करेंगे और अब इसमें बदलाव क्यों?’ इस पर रोहतगी ने कहा, ‘यह विचार हमारी ओर से नहीं आया था। वास्तव में आपने ही कल उठने से पहले चर्चा करने का सुझाव दिया था कि किस तरह के बदलावों की अनुमति दी जा सकती है। निश्चित ही मुझे निर्देश लेना होगा और सरकार से यही निर्देश मिला है जिससे मैं आपको अवगत करा रहा हूं।’ उन्होंने यह भी आशंका व्यक्त की कि क्या यह कवायद नौ न्यायाधीशों की पीठ के फैसले की वजह से अस्तित्व में आई कोलेजियम प्रणाली के पहले वाली रूपरेखा की पूरक होगी या उसका स्थान लेगी।
यदि सरकार ही अंतिम रूप देगी तो फिर प्रधान न्यायाधीश की भूमिका खत्म
संविधान पीठ के सदस्यों ने इस पर कहा, ‘न्यायालय के अधिकारी के रूप में आपने कल हमारे सुझाव पर सहमति दी थी और यही वजह है कि हम इस अनुमान के आधार पर आगे बढ़े।’ इस पर रोहतगी ने कहा कि 'हमारे लिए न्यायिक विचार हेतु मसौदा पेश करना संभव नहीं है। यह या तो हम करेंगे या आप कोलेजियम के लिए सचिवालय के गठन, नियुक्ति का आधार निर्धारित करने और शिकायतों से निबटने के बारे में अपना फैसला सुना दीजिए और हम इस पर अमल करेंगे या इसका पालन करेंगे। यदि सरकार ही इसे अंतिम रूप देगी तो फिर प्रधान न्यायाधीश की भूमिका खत्म हो जाती है।’
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं