कृषि कानून (Farm Laws) के विरोध में जंतर-मंतर पर धरने की इजाजत की मांग वाली याचिका पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में सुनवाई हुई. कोर्ट ने किसानों के सड़कों पर आंदोलन (Farmers Protest) को लेकर नाराजगी जताई. न्यायालय ने कहा कि आपको विरोध करने का अधिकार है, लेकिन आप दूसरों की संपत्ति को नष्ट नहीं कर सकते. एक तरफ तो आपने पूरे शहर का गला घोंट दिया और अब अदालत से शहर में धरने की मांग कर रहे हैं. लोगों के भी अधिकार हैं. क्या आप न्यायिक व्यवस्था का विरोध कर रहे हैं? आप हाइवे जाम करते हैं और फिर कहते हैं कि विरोध शांतिपूर्ण है.
जंतर-मंतर पर धरने की इजाजत की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि क्या शहर के लोग अपना बिजनेस बंद कर दें? क्या लोग शहर में धरने से खुश होंगे? शीर्ष न्यायालय ने कहा कि आप सुरक्षाकर्मियों को भी परेशान कर रहे हैं. नागरिकों का भी आने जाने का अधिकार है. एक बार आपने अपना मन बना लिया कोर्ट जाना है, तो विरोध की क्या जरूरत है?
जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने याचिकाकर्ता की प्रति सरकार को देने को लिए कहा है. मामले में अगली सुनवाई 4 अक्टूबर को होगी.
सुप्रीम कोर्ट ने जंतर मंतर पर धरने की इजाजत मांगने वाले संगठन किसान महापंचायत से हलफनामा मांगा कि वो उस विरोध का हिस्सा नहीं हैं जिसमें हाइवे जाम किए जा रहे हैं.
किसानों के वकील अजय चौधरी ने शीर्ष अदालत में कहा कि हमने हाइवे ब्लॉक नहीं किया है, पुलिस ने हमें वहां हिरासत में लिया है. किसान महापंचायत ने याचिका में दिल्ली के जंतर मंतर पर सत्याग्रह की इजाजत मांगी है. इसमें 200 किसानों के अनिश्चितकालीन सत्याग्रह की अनुमति देने के लिए केंद्र, LG और दिल्ली पुलिस को आदेश देने की मांग की गई है.
राजस्थान के किसानों के समूह "किसान महापंचायत" ने कहा है कि उसे भी जंतर मंतर पर सत्याग्रह की अनुमति दी जाए जैसा कि संयुक्त किसान मोर्चा को अनुमति दी गई थी. वकील अजय चौधरी के माध्यम से दायर रिट याचिका में संगठन को जंतर मंतर पर कम से कम 200 किसान प्रदर्शनकारियों को शांतिपूर्ण और अहिंसक सत्याग्रह आयोजित करने की अनुमति मांगी गई है. साथ ही कहा गया है कि उन्हें जंतर मंतर की ओर जाने से ना रोका जाए.
किसान महापंचायत ने अपनी याचिका में कहा है कि महापंचायत को निर्धारित स्थान पर शांतिपूर्ण, निहत्थे और अहिंसक सत्याग्रह से वंचित करने में दिल्ली पुलिस की "भेदभावपूर्ण, मनमानी और अनुचित कार्रवाई" स्थापित बुनियादी लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन है. भारत के संविधान के तहत मौलिक अधिकारों का हनन है.
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