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This Article is From Sep 06, 2019

UAPA में संशोधन का परीक्षण करेगा सुप्रीम कोर्ट, केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर मांगा जवाब

गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम कानून में हाल ही में हुए संशोधन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की.

UAPA में संशोधन का परीक्षण करेगा सुप्रीम कोर्ट, केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर मांगा जवाब
UAPA में संशोधन का परीक्षण करेगा सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:

गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम कानून में हाल ही में हुए संशोधन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की. याचिका में कानून में संशोधन को चुनौती दी गई है. याचिका में मांग की गई है कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के खिलाफ है. बता दें कि संसद से पास किए गए कानून के अनुसार केन्द्र सरकार किसी भी व्यक्ति को आतंकवादी की श्रेणी में डाली सकती है. फिर वह चाहे किसी समूह के साथ जुड़ा हो या नहीं.

दिल्ली के रहने वाले सजल अवस्थी ने याचिका दाखिल करते हुए कहा है कि यह UAPA 2019 संविधान में दिए गये मूलभूत अधिकारों के खिलाफ है. इसके अलावा एक NGO एसोसिएशन ऑफ प्रोटेक्टेशन ऑफ सिविल राइटस ने भी इसे चुनौती दी है.

UAPA कानून में संशोधन को सुप्रीम कोर्ट में दी गयी चुनौती, 'संशोधन संविधान के खिलाफ'

क्या है UAPA संशोधन?
UAPA को वर्ष 1967 में 'भारत की अखंडता तथा संप्रभुता की रक्षा' के उद्देश्य से पेश किया गया था, और इसके तहत किसी शख्स पर 'आतंकवादी अथवा गैरकानूनी गतिविधियों' में लिप्तता का संदेह होने पर किसी वारंट के बिना भी तलाशी या गिरफ्तारी की जा सकती है. इन छापों के दौरान अधिकारी किसी भी सामग्री को ज़ब्त कर सकते हैं. आरोपी को ज़मानत की अर्ज़ी देने का अधिकार नहीं होता, और पुलिस को चार्जशीट दायर करने के लिए 90 के स्थान पर 180 दिन का समय दिया जाता है. इसी साल जून माह में भी पांच अन्य कार्यकर्ताओं को इसी कानून के तहत गिरफ्तार किया गया था.

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क्या है विवाद?
इस कानून का एक विवादास्पद हिस्सा यह है कि जिस भी संगठन को सरकार'गैरकानूनी संगठन, आतंकवादी गुट या आतंकवादी संगठन' मानती है, उसके सदस्यों को गिरफ्तार किया जा सकता है. वकील प्रशांत भूषण ने ट्विटर पर बताया था कि मंगलवार को गिरफ्तार किए गए पांच लोगों में से मुंबई में बसे अरुण फरेरा को साल 2007 में भी (जब कांग्रेस-नीत सरकार सत्तासीन थी) गिरफ्तार किया गया था, और 'शहरी माओवादी' बताया गया था. अरुण फरेरा को बाद में सभी मामलों में बरी कर दिया गया था, लेकिन उन्हें पांच साल जेल में काटने पड़े थे.

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