यह ख़बर 25 जून, 2012 को प्रकाशित हुई थी

शिंदे ने ‘आदर्श’ के लिए देशमुख को जिम्मेदार ठहराया

खास बातें

  • शिंदे ने एक न्यायिक पैनल से कहा कि विलासराव देशमुख के मुख्यमंत्रित्व काल में सरकारी भूमि के आवंटन और हाउसिंग सोसायटी को अतिरिक्त एफएसआई की मंजूरी दी गई थी।
मुंबई:

आदर्श घोटाले से हाथ पीछे खींचने के प्रयास के तहत केंद्रीय ऊर्जा मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने सोमवार को एक न्यायिक पैनल से कहा कि विलासराव देशमुख के मुख्यमंत्रित्व काल में सरकारी भूमि के आवंटन और हाउसिंग सोसायटी को अतिरिक्त एफएसआई की मंजूरी दी गई थी।

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के तौर पर विवादास्पद सोसायटी से संबंधित फाइलों को शिंदे और देशमुख दोनों से संचालित किया था। शिंदे ने कहा, ‘‘मेरे मुख्यमंत्री बनने से पहले उक्त जमीन को आदर्श सोसायटी को आवंटित करने का फैसला हो चुका था। आदर्श के पक्ष में आशय पत्र 18 जनवरी 2003 की सुबह को जारी किया गया था और उस वक्त विलासराव देशमुख मुख्यमंत्री थे। यह मेरे निर्देश से जारी नहीं हुआ था और इसे कभी भी मेरे संज्ञान में नहीं लाया गया।’’

71 वर्षीय केंद्रीय मंत्री दो सदस्यीय जांच आयोग के समक्ष गवाही दे रहे थे जिसे राज्य सरकार ने आदर्श घोटाले की जांच के लिए गठित किया था। आयोग पहले ही निष्कर्ष पर पहुंच चुका है कि भूमि राज्य सरकार की थी न कि रक्षा मंत्रालय की। वह इस बात पर गौर कर रहा है कि सोसायटी को दिए गए विभिन्न मंजूरी के दौरान क्या किसी नियम का उल्लंघन हुआ। देशमुख पर जिम्मेदारी डालते हुए शिंदे ने कहा, ‘‘बेस्ट से सटे आदर्श में अतिरिक्त तल की जगह मेरे समय में मंजूर नहीं हुआ था। इसे मेरे कार्यकाल के बाद मंजूरी दी गई थी।’’

यह पूछने पर कि क्या 19 जुलाई 2004 को आशय पत्र जारी करने से पहले मालिकाना हक, जमीन का मूल्य और सदस्यों की योग्यता के बारे में पुष्टि की गई तो शिंदे ने कहा, ‘‘आदर्श फाइल को मैंने मंजूरी नहीं दी थी। आशय पत्र जारी करने से पहले 51 सदस्यों की योग्यता की पुष्टि के लिए मैंने कलेक्टर के पास भेजा और पुष्टि करने के बाद मेरे पास फाइल भेजने को कहा।’’ बहरहाल उन्होंने दावा किया कि आशय पत्र जारी करते हुए संबंधित विभाग उनके संज्ञान में यह बात नहीं लाया कि उक्त भूमि का मालिक कौन है।

उन्होंने कहा, ‘‘मुख्यमंत्री के लिए यह असंभव है कि वह हर फाइल को देखे। मुख्यमंत्री के सहयोग के लिए सचिव होते हैं जो सभी फाइलों को देखते हैं।’’ उन्होंने कहा कि सचिव जब जांच कर लेते हैं तो मुख्यमंत्री के दस्तखत के लिए सचिव का लिखा ‘‘ऑफ द रिकार्ड’’ नोट के साथ फाइल आता है।

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शिंदे ने कहा, ‘‘मुख्यमंत्री जब हस्ताक्षर कर देता है तो सचिव, प्रधान सचिव और उप सचिव बाद के सभी प्रशासनिक आदेश जारी करते हैं। यहां तक कि आशय पत्र एवं एलओए के नियम एवं शर्तों पर भी विभागीय स्तर पर निर्णय किया जाता है। अगर कोई विशेष बात होती है तभी इसे मुख्यमंत्री के संज्ञान में लाया जाता है।’’