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This Article is From Aug 24, 2021

सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार को OBC क्रीमी लेयर को फिर से परिभाषित करने के लिए कहा

मामला हरियाणा राज्य द्वारा जारी एक अधिसूचना की वैधता से संबंधित था और राज्य सरकार ने अधिसूचित किया था कि 6,00,000 रुपये तक की वार्षिक आय वाले व्यक्तियों को ओबीसी श्रेणी में और क्रीमी लेयर के ऊपर गैर-क्रीमी लेयर होना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार को OBC क्रीमी लेयर को फिर से परिभाषित करने के लिए कहा
कोर्ट ने राज्य को 3 महीने की अवधि के भीतर एक नई अधिसूचना जारी करने का निर्देश दिया है.
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि राज्यों को सिर्फ आर्थिक आधार पर अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में 'क्रीमी लेयर' बनाने का अधिकार नहीं है. अदालत ने कहा है कि आर्थिक, सामाजिक और अन्य आधारों पर क्रीमी लेयर बनाई जा सकताी है. यह कहते हुए अदालत ने हरियाणा सरकार को क्रीमी लेयर को फिर से परिभाषित करने के लिए कहा है. जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस अनिरुद्ध बोस से अपने फैसले में यह कहते हुए 17 अगस्त, 2016 की अधिसूचना को खारिज कर दिया कि इसमें सिर्फ आर्थिक आधार पर क्रीमी लेयर निर्धारित की गई थी. अदालत ने कहा है कि यह अधिसूचना, इंद्रा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले के खिलाफ है.

सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने हरियाणा (Haryana) में दाखिलों और सेवाओं में OBC गैर क्रीमी लेयर में उपवर्गीकरण करने के 2017 के नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया है.  कोर्ट ने राज्य को 3 महीने की अवधि के भीतर एक नई अधिसूचना जारी करने का निर्देश दिया है. हालांकि, अदालत ने 17 अगस्त, 2016 और 2018 की अधिसूचनाओं के आधार पर राज्य सेवाओं में दाखिलों और नियुक्तियों को बाधित नहीं करने का भी निर्देश दिया है. दरअसल, हरियाणा  ने 17 अगस्त, 2016 की अधिसूचना जारी की थी. इसमें 3,00,000/- रुपये (तीन लाख रुपये) तक की आय वाले वर्ग के व्यक्तियों को गैर- क्रीमी लेयर के भीतर दाखिलों और सेवाओं के मामले में वरीयता दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक बैच में फैसला सुनाया है. 

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मामला हरियाणा राज्य द्वारा जारी एक अधिसूचना की वैधता से संबंधित था और राज्य सरकार ने अधिसूचित किया था कि 6,00,000 रुपये तक की वार्षिक आय वाले व्यक्तियों को ओबीसी श्रेणी में और क्रीमी लेयर के ऊपर गैर-क्रीमी लेयर होना चाहिए. फिर 2018 के नोटिफिकेशन में मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के मामले में रुपये तीन लाख) तक की वार्षिक आय वाले वर्ग के व्यक्तियों को गैर- क्रीमी लेयर के भीतर वरीयता दी गई है. पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने 7 अगस्त, 2018 को दिए अपने फैसले में गैर-क्रीमी लेयर सेगमेंट के भीतर एक उप-वर्गीकरण करने वाली सरकारी अधिसूचना को 3 लाख रुपये से कम की वार्षिक आय और 3 -6 लाख रुपये के भीतर वार्षिक आय को असंवैधानिक करार दिया.

उच्च न्यायालय ने माना खा कि केवल आर्थिक मानदंडों पर ट गैर-क्रीमी लेयर  के भीतर उप-वर्गीकरण को सही ठहराने के लिए कोई डेटा नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि राज्यों को सिर्फ आर्थिक आधार पर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) मे 'क्रीमी लेयर' बनाने का अधिकार नहीं है. अदालत ने कहा है कि आर्थिक, सामाजिक और अन्य आधारों पर क्रीमी लेयर बनाया जा सकता है.  यह कहते हुए अदालत ने हरियाणा सरकार को क्रीमी लेयर को फिर से परिभाषित करने के लिए कहा है. जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस अनिरुद्ध बोस से अपने फैसले में यह कहते हुए 17 अगस्त, 2016 की अधिसूचना को खारिज कर दिया कि इसमें सिर्फ आर्थिक आधार पर क्रीमी लेयर निर्धारित किया गया था.  अदालत ने कहा है कि यह अधिसूचना, इंद्रा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले के खिलाफ है. 

इंद्रा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक, सामाजिक और अन्य आधारों पर क्रीमी लेयर बनाने के लिए कहा था. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि इंद्रा साहनी मामले में तय किए गए मांडदंडों के बावजूद हरियाणा सरकार ने 2016 की अधिसूचना में सिर्फ आर्थिक आधार पर क्रीमी लेयर को परिभाषित किया. अदालत ने कहा है कि ऐसा कर हरियाणा राज्य ने भारी गलती की है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सिर्फ इस आधार पर ही 2016 की अधिसूचना को खारिज किया जा सकता है. अदालत ने राज्य सरकार को तीन महीने के भीतर इंद्रा शाहने मामले में तय किए गए सिद्धांतों और 2016 के अधिनियम की धारा-5(2) के मानदंडों के आधार पर क्रीमी लेयर को परिभाषित करने के लिए कहा है.

दरअसल, हरियाणा सरकार की 2016 की अधिसूचना में ओबीसी में सालाना छह लाख से अधिक आय वाले लोगों को क्रीमी लेयर करार दिया गया था और उन्हें आरक्षण के लाभ से दूर कर दिया गया था. इसके अलावा नॉन क्रीमी लेयर में भी उप वर्गीकरण किया गया था.  इसके तहत तीन लाख से कम आय वालों का एक समूह बनाया गया था और दूसरा समूह तीन से छह लाख के बीच वाले लोगों का.  इस अधिसूचना के तहत तीन लाख तक की आय वाले वर्ग के व्यक्तियों को वरीयता दी गई थी. इसके तहत नौकरियों और शैक्षणिक संस्थाओं में होने वाले दाखिलों में सबसे पहले तीन लाख से कम आय वाले लोगों को आरक्षण का लाभ मिलेगा बाकी बचा कोटा तीन से छह लाख रुपए आय वाले लोगों को मिलेगा.

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सिर्फ आर्थिक आधार पर तय किए आरक्षण का बचाव करते हुए हरियाणा सरकार की दलील थी कि अधिसूचना जारी करने में इंद्रा साहनी के फैसले का पालन किया गया था. राज्य सरकार की यह भी दलील थी कि अधिसूचना जारी करने से पहले जिलेवार कमिश्नरों के द्वारा ओबीसी वर्ग के लोगों में सामाजिक व आर्थिक पिछड़ेपन का सर्वेक्षण कर आंकड़े जुटाए गए थे.

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