सुप्रीम कोर्ट ने वन्नियार आरक्षण कानून को असंवैधानिक करार दिया है और मद्रास हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रखा है. तमिलनाडु में वन्नियार समुदाय को OBC में 10.5% आंतरिक आरक्षण के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि हमारा मत है कि वन्नियार को दूसरों की तुलना में एक अलग समूह के रूप में मानने का कोई आधार नहीं है. ये आरक्षण संविधान के अनुच्छेद 14,15 और 16 के तहत समानता के अधिकार; धर्म, जाति, वर्ण, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव; सार्वजनिक रोजगार के मामलों में अवसर की समानता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. जस्टिस एल नागेश्वर रॉव की बेंच ने फैसले में कहा कि जाति आंतरिक आरक्षण का आधार हो सकती है. लेकिन यह एकमात्र आधार नहीं हो सकती.
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सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के 1 नवंबर, 2021 के फैसले को बरकरार रखा है. जिसमें तत्कालीन AIADMK के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा दिए गए वन्नियार समुदाय के लिए 10.5% आंतरिक आरक्षण को रद्द किया था. पिछली अन्नाद्रमुक के नेतृत्व वाली सरकार ने अप्रैल में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले आदर्श आचार संहिता लागू होने से पहले फरवरी में वन्नियार आरक्षण अधिनियम पारित किया था.
सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि हाईकोर्ट का फैसला कानून में गलत था और राज्य विधायिका को एक समुदाय को मुख्यधारा में लाने के लिए कोटा प्रदान करने का अधिकार है. पट्टाली मक्कल काची पार्टी के संस्थापक एस रामदास ने प्रस्तुत किया था कि राज्य विधायिका द्वारा सर्वसम्मति से पारित एक कानून संवैधानिकता का आनंद लेता है .
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