नई दिल्ली:
उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को गुजरात की निचली अदालत से कहा कि अहमदाबाद में 2002 के दंगों के दौरान गुलबर्ग हाउसिंग सोसायटी प्रकरण में विशेष जांच दल की मामला बंद करने संबंधी रिपोर्ट पर अंतिम आदेश नहीं सुनाए।
न्यायमूर्ति डीके जैन, न्यायमूर्ति पी सदाशिवम और न्यायमूर्ति आफताब आलम की खंडपीठ ने कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी की विधवा जाकिया जाफरी की याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा, ‘‘मामला बंद करने की रिपोर्ट पर अंतिम आदेश नहीं सुनाया जाएगा।’’ न्यायाधीशों ने इसके साथ ही इस मामले में गुजरात सरकार से जवाब मांगा है।
अहमदाबाद की अदालत ने गत वर्ष 27 नवंबर को विशेष जांच दल की मामला बंद करने संबंधी रिपोर्ट स्वीकार कर ली थी। जांच दल ने यह रिपोर्ट 13 मार्च 2012 को दायर की थी।
गोधरा कांड के बाद गुजरात में हुए दंगों के नौ मामलों में न्यायालय की मदद के लिए नियुक्त वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने संबंधित एक घटनाक्रम में कहा कि वह मुख्य गवाहों को ‘अन्यत्र’ रखने और उन्हें लगातार सुरक्षा प्रदान करने के लिए एक अर्जी दाखिल कर रहे हैं।
इस बीच, न्यायाधीशों ने इन दंगों की जांच के लिए गठित न्यायमूर्ति जीटी नानावती आयोग द्वारा विशेष जांच दल के सदस्यों को तलब करने और शीर्ष अदालत के स्पष्ट आदेश के बावजूद उसकी रिपोर्ट मांगने पर अचरज व्यक्त किया है। न्यायाधीशों ने कहा कि न्यायालय पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि जांच दल की रिपोर्ट सिर्फ उसके ही सामने पेश की जाएगी। इस आयोग का गठन राज्य सरकार ने किया था।
न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘हमारा पहले का आदेश अस्पष्ट नहीं है। वास्तव में हमने विशेष जांच दल से कहा था कि वह कोई जानकारी नहीं देगा।।’’ न्यायालय ने जाकिया जाफरी को दस्तावेज मुहैया कराने से संबंधित मामले में 12 सितंबर, 2011 को यह आदेश दिया था।
न्यायालय ने केन्द्रीय जांच ब्यूरो के पूर्व निदेशक आरके राघवन की अध्यक्षता वाले विशेष जांच दल को अपनी अंतिम रिपोर्ट स्थानीय अदालत को भेजने का निर्देश दिया था। जांच दल ने ही गुलबर्ग हाउसिंग सोसायटी सहित गुजरात दंगों के कई मामलों की जांच की थी।
विशेष जांच दल के सदस्य वरिष्ठ पुलिस अधिकारी एके मल्होत्रा से विशेष रूप से गुलबर्ग हाउसिंग सोसायटी कांड की जांच करने का आग्रह किया गया था। उन्होंने अपनी रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में शीर्ष अदालत में दायर की थी।
जाकिया जाफरी ने एके मल्होत्रा द्वारा दाखिल रिपोर्ट सहित इस मामले की जांच से संबंधित दस्तावेज मुहैया कराने से निचली अदालत के इनकार करने पर शीर्ष अदालत में विशेष अनुमति याचिका दायर कर रखी है। वह विशेष जांच दल की मामला बंद करने संबंधी रिपोर्ट पर विरोध याचिका दायर करने के लिए ये दस्तावेज चाहती हैं।
उनका तर्क है कि जांच से संबंधित दस्तावेज नहीं मिलने के कारण वह जांच दल की रिपोर्ट पर विरोध याचिका दायर नहीं कर पा रही हैं।
अहमदाबाद स्थित गुलबर्ग हाउसिंग सोसायटी में 28 फरवरी, 2002 को हुए काण्ड में उग्र भीड़ ने पूर्व सांसद एहसान जाफरी सहित 69 व्यक्तियों की हत्या कर दी थी। अहमदाबाद की अदालत ने 16 जुलाई, 2012 को जाकिया जाफरी को ये दस्तावेज मुहैया कराने से इनकार कर दिया था।
जाकिया की वकील कामिनी जायसवाल का कहना था कि यह मामला बंद करने के बारे में 27 नवंबर के आदेश और दस्तावेज मुहैया नहीं कराना पीड़ित के विरोध याचिका दायर करने के अधिकार में बाधक बन रहा है। निचली अदालत ने कहा था कि जाकिया जाफरी समय बीत जाने के कारण विशेष जांच दल की रिपोर्ट के खिलाफ विरोध याचिका दायर करने का अधिकार गंवा चुकी है। अदालत का कहना था कि पर्याप्त समय देने के बावजूद उन्होंने विरोध याचिका दायर नहीं की है। इस रिपोर्ट में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को क्लीन चिट दी गयी थी।
अदालत ने कहा था कि जाकिया जाफरी विशेष जांच दल की रिपोर्ट के खिलाफ मौखिक रूप से अपना विरोध दर्ज करा सकती हैं।
विशेष जांच दल ने मार्च 2012 में गुलबर्ग सोसायटी प्रकरण में अपनी अंतिम रिपोर्ट शीर्ष अदालत को सौंपी थी। विशेष जांच दल ने रिपोर्ट की एक प्रति जाकिया जाफरी को भी दी थी ताकि वह दो महीने के निर्धारित समय के भीतर विरोध याचिका दायर कर सकें लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया था।
न्यायमूर्ति डीके जैन, न्यायमूर्ति पी सदाशिवम और न्यायमूर्ति आफताब आलम की खंडपीठ ने कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी की विधवा जाकिया जाफरी की याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा, ‘‘मामला बंद करने की रिपोर्ट पर अंतिम आदेश नहीं सुनाया जाएगा।’’ न्यायाधीशों ने इसके साथ ही इस मामले में गुजरात सरकार से जवाब मांगा है।
अहमदाबाद की अदालत ने गत वर्ष 27 नवंबर को विशेष जांच दल की मामला बंद करने संबंधी रिपोर्ट स्वीकार कर ली थी। जांच दल ने यह रिपोर्ट 13 मार्च 2012 को दायर की थी।
गोधरा कांड के बाद गुजरात में हुए दंगों के नौ मामलों में न्यायालय की मदद के लिए नियुक्त वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने संबंधित एक घटनाक्रम में कहा कि वह मुख्य गवाहों को ‘अन्यत्र’ रखने और उन्हें लगातार सुरक्षा प्रदान करने के लिए एक अर्जी दाखिल कर रहे हैं।
इस बीच, न्यायाधीशों ने इन दंगों की जांच के लिए गठित न्यायमूर्ति जीटी नानावती आयोग द्वारा विशेष जांच दल के सदस्यों को तलब करने और शीर्ष अदालत के स्पष्ट आदेश के बावजूद उसकी रिपोर्ट मांगने पर अचरज व्यक्त किया है। न्यायाधीशों ने कहा कि न्यायालय पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि जांच दल की रिपोर्ट सिर्फ उसके ही सामने पेश की जाएगी। इस आयोग का गठन राज्य सरकार ने किया था।
न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘हमारा पहले का आदेश अस्पष्ट नहीं है। वास्तव में हमने विशेष जांच दल से कहा था कि वह कोई जानकारी नहीं देगा।।’’ न्यायालय ने जाकिया जाफरी को दस्तावेज मुहैया कराने से संबंधित मामले में 12 सितंबर, 2011 को यह आदेश दिया था।
न्यायालय ने केन्द्रीय जांच ब्यूरो के पूर्व निदेशक आरके राघवन की अध्यक्षता वाले विशेष जांच दल को अपनी अंतिम रिपोर्ट स्थानीय अदालत को भेजने का निर्देश दिया था। जांच दल ने ही गुलबर्ग हाउसिंग सोसायटी सहित गुजरात दंगों के कई मामलों की जांच की थी।
विशेष जांच दल के सदस्य वरिष्ठ पुलिस अधिकारी एके मल्होत्रा से विशेष रूप से गुलबर्ग हाउसिंग सोसायटी कांड की जांच करने का आग्रह किया गया था। उन्होंने अपनी रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में शीर्ष अदालत में दायर की थी।
जाकिया जाफरी ने एके मल्होत्रा द्वारा दाखिल रिपोर्ट सहित इस मामले की जांच से संबंधित दस्तावेज मुहैया कराने से निचली अदालत के इनकार करने पर शीर्ष अदालत में विशेष अनुमति याचिका दायर कर रखी है। वह विशेष जांच दल की मामला बंद करने संबंधी रिपोर्ट पर विरोध याचिका दायर करने के लिए ये दस्तावेज चाहती हैं।
उनका तर्क है कि जांच से संबंधित दस्तावेज नहीं मिलने के कारण वह जांच दल की रिपोर्ट पर विरोध याचिका दायर नहीं कर पा रही हैं।
अहमदाबाद स्थित गुलबर्ग हाउसिंग सोसायटी में 28 फरवरी, 2002 को हुए काण्ड में उग्र भीड़ ने पूर्व सांसद एहसान जाफरी सहित 69 व्यक्तियों की हत्या कर दी थी। अहमदाबाद की अदालत ने 16 जुलाई, 2012 को जाकिया जाफरी को ये दस्तावेज मुहैया कराने से इनकार कर दिया था।
जाकिया की वकील कामिनी जायसवाल का कहना था कि यह मामला बंद करने के बारे में 27 नवंबर के आदेश और दस्तावेज मुहैया नहीं कराना पीड़ित के विरोध याचिका दायर करने के अधिकार में बाधक बन रहा है। निचली अदालत ने कहा था कि जाकिया जाफरी समय बीत जाने के कारण विशेष जांच दल की रिपोर्ट के खिलाफ विरोध याचिका दायर करने का अधिकार गंवा चुकी है। अदालत का कहना था कि पर्याप्त समय देने के बावजूद उन्होंने विरोध याचिका दायर नहीं की है। इस रिपोर्ट में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को क्लीन चिट दी गयी थी।
अदालत ने कहा था कि जाकिया जाफरी विशेष जांच दल की रिपोर्ट के खिलाफ मौखिक रूप से अपना विरोध दर्ज करा सकती हैं।
विशेष जांच दल ने मार्च 2012 में गुलबर्ग सोसायटी प्रकरण में अपनी अंतिम रिपोर्ट शीर्ष अदालत को सौंपी थी। विशेष जांच दल ने रिपोर्ट की एक प्रति जाकिया जाफरी को भी दी थी ताकि वह दो महीने के निर्धारित समय के भीतर विरोध याचिका दायर कर सकें लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया था।
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