यह ख़बर 24 अप्रैल, 2011 को प्रकाशित हुई थी

कोई नहीं पहुंच सका साईं बाबा की प्रसिद्धि तक

खास बातें

  • भारत में अनेक आध्यात्मिक संत हुए हैं, लेकिन माना जाता है कि सत्य साईं बाबा के नाम और प्रसिद्धि की बराबरी शायद ही कोई कर सके।
हैदराबाद:

आम आदमी से लेकर राष्ट्रपति तक उनके भक्तों में शामिल रहे हैं, लेकिन पुट्टपर्थी के सत्य साईं बाबा के आध्यात्मिक प्रभाव के साथ ही उनसे विवाद भी जुड़े रहे हैं। भारत में अनेक आध्यात्मिक संत हुए हैं, लेकिन माना जाता है कि सत्य साईं बाबा के नाम और प्रसिद्धि की बराबरी शायद ही कोई कर सके। सत्य साईं बाबा का असर पूरी दुनिया में फैला हुआ है और भारत के अलावा विदेश में भी उनके लाखों भक्त हैं। बाबा के नामचीन भक्तों में प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री समेत आला दर्जे के नेता, फिल्मी सितारे, उद्योगपति और खिलाड़ी शामिल रहे हैं। आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में पुट्टपर्थी गांव में एक सामान्य परिवार में 23 नवंबर, 1926 को जन्मे सत्यनारायण राजू ने शिरडी के साईबाबा के पुनर्जन्म की धारणा के साथ ही सत्य साईबाबा के रूप में पूरी दुनिया में ख्याति अर्जित की। आंध्र प्रदेश का छोटा सा गांव पुट्टपर्थी अंतरराष्ट्रीय नक्शे पर छा गया और इसकी वजह है कि बाबा के आध्यात्मिक स्थल प्रशांति निलयम में दिन रात विदेशी भक्त आते जाते रहे हैं। इस कस्बे में एक विशेष हवाई अड्डे पर दुनिया के अनेक हिस्सों से बाबा के भक्तों के चार्टर्ड विमान उतरते रहे हैं। प्रारंभिक जीवन में सत्यनारायण राजू को असामान्य प्रतिभा वाले परोपकारी बालक की संज्ञा दी गई। नाटक, संगीत, नृत्य और लेखन प्रतिभा वाले इस बालक ने अनेक कविताएं और नाटक लिखे। गायक के रूप में भी उनकी पहचान बनी और उनके भजनों की अनेक सीडी आईं। सत्यनारायण राजू ने 20 अक्टूबर, 1940 को 14 साल की उम्र में खुद को शिरडी वाले साईं बाबा का अवतार कहा। जब भी वह शिरडी साईं बाबा की बात करते थे, तो उन्हें अपना पूर्व शरीर कहते थे। सत्य साईं बाबा अपने चमत्कारों के लिए भी प्रसिद्ध रहे और वह हवा में से अनेक चीजें प्रकट कर देते थे और इसके चलते उनके आलोचक उनके खिलाफ प्रचार करते रहे। सत्य साईं बाबा के आश्रम में कथित स्कैंडलों की भी खबरें सामने आईं। उनके खिलाफ यौन व्यवहार संबंधी सवाल भी खड़े होते रहे, लेकिन उन्होंने व उनके भक्तों ने इसे उनके विरोधियों की साजिश कहकर खारिज किया। उनके करीबी सहयोगियों ने ही 6 जून, 1993 को कथित तौर पर उन्हें जान से मारने की भी कोशिश की। 'प्रशांति निलयम' में बाबा के कक्ष में उनके छह शिष्यों की इसमें मौत हो गई। ये सभी बाबा के करीबी लोगों में से थे, जिनमें उनके निजी सहयोगी राधा कृष्ण मेनन भी शामिल थे। इस पूरे मामले की सचाई रहस्य में ही रही। सत्य साईं बाबा के अनुयायियों ने 1944 में पुट्टपर्थी में एक छोटा मंदिर बनवाया और 1950 में एक विशाल आश्रम बनाया गया, जो प्रशांति निलयम के तौर पर उनका स्थाई केंद्र बन गया। बाबा ने आध्यात्मिक उपदेशों के साथ ही सामाजिक क्षेत्र में भी अनेक सेवा कार्य किए। जिनकी शुरुआत पुट्टपर्थी में एक छोटे से अस्पताल के निर्माण के साथ हुई, जो अब 220 बिस्तर वाले सुपर स्पेशलिटी सत्य साईं इंस्टीट्यूट ऑफ हायर मेडिकल साइंसेस का रूप ले चुका है। इसके अलावा बेंगलुरु के बाहरी इलाके में 333 बिस्तर वाला एक और सुपर स्पेशलिटी अस्पताल एसएसआईएचएमएस खोला गया। यहां बाबा का ग्रीष्मकालीन केंद्र वृंदावन है। सत्य साईं सेंट्रल ट्रस्ट इन सभी सामाजिक सेवा गतिविधियों को देखता है और पुट्टपर्थी में सत्य साईं विश्वविद्यालय भी संचालित करता है। इसके अलावा यह ट्रस्ट अलग-अलग प्रदेशों में अनेक स्कूलों और डिस्पेंसरियों का भी संचालन करता है। सत्य साईं सेंट्रल ट्रस्ट ने आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में बड़ी जल आपूर्ति परियोजनाओं पर भी काम किया है। सत्य साईं सेवा संगठन के स्वयंसेवक आंध्र प्रदेश ही नहीं, बल्कि देश के अन्य हिस्सों में प्राकृतिक आपदाओं के वक्त राहत व पुनर्वास कार्यों में भी आगे से आगे सेवाकार्य करते देखे जा सकते हैं। सत्य साईं बाबा ने भारत में तीन मंदिर भी स्थापित किए, जिनमें मुंबई में धर्मक्षेत्र, हैदराबाद में शिवम और चेन्नई में सुंदरम हैं। इनके अलावा दुनियाभर के 114 देशों में सत्य साईं केंद्र स्थित हैं। सत्य साईं बाबा ने 1957 में उत्तर भारत के मंदिरों का भ्रमण किया और अपनी एक मात्र विदेश यात्रा पर 1968 में युगांडा गए। सत्य साईं बाबा ने 1963 में चार बार गंभीर हृदयाघात का सामना किया था। वर्ष 2005 से ही बाबा व्हीलचेयर पर थे और खराब स्वास्थ्य के कारण बहुत कम ही सार्वजनिक कार्यक्रमों में आते थे। वर्ष 2006 में बाबा को कूल्हे में फ्रैक्चर हो गया, जब लोहे के स्टूल पर खड़े एक विद्यार्थी के फिसलने से वह और स्टूल दोनों ही बाबा पर गिर गए। वह अपने भक्तों को कार से या पोर्ट चेयर से दर्शन देते थे।


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