वाशिंगटन:
तमाम अवरोधों को पार करते हुए एक बार फिर व्हाइट हाउस में चार साल के दूसरे कार्यकाल के लिए चुने गए बराक ओबामा बेहद दृढ़प्रतिज्ञ, विनम्र, करिश्माई वाक कौशल के धनी और सबको साथ लेकर चलने वाले राजनेता हैं और उनके इन्हीं गुणों की बदौलत अमेरिकियों ने दूसरी बार सत्ता की कमान एक बार फिर से उनके हाथों में सौंपी है।
राष्ट्रपति पद के चुनाव में अपने रिपब्लिकन प्रतिद्वंद्वी मिट रोमनी की ओर से कड़े मुकाबले को धराशायी करते हुए 51-वर्षीय ओबामा का पिछले चार साल का कार्यकाल एक प्रकार से कांटों का ताज रहा, जिस दौरान उन्हें बिगड़ती अर्थव्यवस्था से जूझना पड़ा।
नए कार्यकाल में उनकी विदेश नीति एशिया-प्रशांत क्षेत्र पर पहले की तरह ही केंद्रित रहेगी, जहां भारत को अमेरिकी रणनीति में महत्वपूर्ण धुरी के रूप में देखा जा रहा है। ओबामा भारत के साथ मजबूत संबंधों के पक्षधर रहे हैं, लेकिन घरेलू बाध्याताओं के कारण उन्हें अपने चुनाव प्रचार अभियान के दौरान नौकरियों को भारत में आउटसोर्स किए जाने के खिलाफ आवाज उठानी पड़ी।
अपने पहले ही कार्यकाल में भारत यात्रा पर जाने वाले ओबामा पहले अमेरिकी राष्ट्रपति थे और उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के मुद्दे को भी समर्थन दिया है। चुनाव परिणाम बताते हैं कि अमेरिका की गिरती अर्थव्यवस्था को संभालने के उनके तौर-तरीकों से असंतुष्ट रहने के बावजूद जनता उनके प्रति निष्ठावान बनी रही है और उनमें फिर से अपना भरोसा जताया है।
ओबामा ने हाल ही में सैंडी तूफान से तबाह हुए न्यूजर्सी के तटीय इलाकों का दौरा किया था और इस दौरान न्यूजर्सी के रिपब्लिकन गवर्नर भी उनके साथ थे। दोनों नेताओं ने अपनी-अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धताओं को दरकिनार करते हुए आपदा से निपटने के तौर तरीकों को लेकर एक-दूसरे की जी भरकर तारीफ की। आपदा से निपटने की उनकी शैली की जनता ने बड़ी सराहना की।
राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान से मात्र कुछ ही दिन पहले आई इस आपदा में 90 लोग मारे गए थे और देश की अर्थव्यवस्था को करीब 50 अरब डॉलर का नुकसान हुआ था। श्वेत अमेरिकी मां ऐन डनहैम और केन्या में पैदा हुए हॉर्वर्ड शिक्षित अर्थशास्त्री पिता के घर बराक का जन्म होनोलूलू के हवाई में बराक हुसैन ओबामा के रूप में हुआ था।
वह 4 नवंबर, 2008 को अमेरिका के 44वें राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित होने वाले पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने। उन्होंने इन चुनावों में अपने तत्कालीन रिपब्लिकन प्रतिद्वंद्वी जॉन मैक्केन को परास्त किया था और 20 जनवरी, 2009 को राष्ट्रपति पद की शपथ ली। अश्वेत मानवाधिकार नेता मार्टिन लूथर किंग द्वारा अमेरिकियों को 'समानता के सपने' को पूरा करने के लिए उठ खड़े होने का आह्वान किए जाने के ठीक 45 साल बाद ओबामा व्हाइट हाउस पहुंचे थे।
वर्ष 2009 में नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजे गए ओबामा 21 जनवरी, 2013 को दूसरे कार्यकाल के लिए राष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण करेंगे। हालांकि संविधान के तहत 20 जनवरी का दिन शपथ ग्रहण के लिए तय होता है, लेकिन उस दिन रविवार पड़ रहा है। जनादेश के बाद ओबामा के कंधों पर देश की अर्थव्यवस्था में जान फूंकने की जिम्मेदारी नए सिरे से आ गई है। कई दशकों के बाद अमेरिका में आई भीषण मंदी के बीच ओबामा के कार्यभार संभालने के बाद से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को काफी संघर्ष करना पड़ा है, जिसमें धीमी रोजगार वृद्धि दर और बेरोजगारी दर का आठ फीसदी से ऊपर बने रहना बड़े मुद्दे रहे हैं।
इससे पूर्व, नवंबर, 2010 के मध्यावधि चुनावों में डेमोक्रेटिक पार्टी को ऐतिहासिक नुकसान झेलना पड़ा था। अपने कंजरवेटिव एजेंडे को आगे बढ़ाने तथा राष्ट्रपति की योजनाओं में पलीता लगाने के लिए रिपब्लिकन अधिक दृढ़प्रतिज्ञ होकर सामने आ रहे थे। हालांकि विदेश नीति के मुद्दे पर ओबामा ने पाकिस्तान के ऐबटाबाद में अल-कायदा सरगना ओसामा बिन लादेन को मारने के लिए कमांडो दस्ता भेजकर, इराक में युद्ध को समाप्त कर और रूसी राष्ट्रपति दमित्री मेदवेदेव के साथ नई परमाणु हथियार संधि कर अपनी स्थिति को काफी मजबूत करने में सफलता हासिल की।
ओबामा ने अपना पहला कार्यकाल संभालने के पहले दिन से ही भारत के साथ अमेरिकी संबंधों के महत्व को समझा तथा जनवरी, 2009 में राष्ट्रपति पद की औपचारिक शपथ लेने से पहले ही तत्कालीन भारतीय राजदूत रोनेन सेन को खुद फोन कर मुंबई आतंकवादी हमलों पर संवेदना प्रकट की। इतना ही नहीं, उन्होंने यह प्रतिबद्धता भी जताई कि अमेरिका दोषियों को कानून के कठघरे में लाने के लिए हरसंभव सहायता उपलब्ध कराएगा।
उन्होंने राष्ट्रपति बनने के बाद सबसे पहले नवंबर, 2009 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपने सरकारी मेहमान के रूप में आमंत्रित किया और उनके सम्मान में पहला रात्रिभोज दिया। इसके एक साल बाद ही वह अपने पहले कार्यकाल के दौरान भारत यात्रा पर आने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बन गए, जिस दौरान उन्होंने न केवल 21वीं सदी में भारत-अमेरिका संबंधों को सर्वाधिक महत्वपूर्ण संबंध घोषित किया, बल्कि विश्व स्तर पर देश की बढ़ती महत्ता को मान्यता देते हुए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के दावे का समर्थन भी किया।
राष्ट्रपति पद के चुनाव में अपने रिपब्लिकन प्रतिद्वंद्वी मिट रोमनी की ओर से कड़े मुकाबले को धराशायी करते हुए 51-वर्षीय ओबामा का पिछले चार साल का कार्यकाल एक प्रकार से कांटों का ताज रहा, जिस दौरान उन्हें बिगड़ती अर्थव्यवस्था से जूझना पड़ा।
नए कार्यकाल में उनकी विदेश नीति एशिया-प्रशांत क्षेत्र पर पहले की तरह ही केंद्रित रहेगी, जहां भारत को अमेरिकी रणनीति में महत्वपूर्ण धुरी के रूप में देखा जा रहा है। ओबामा भारत के साथ मजबूत संबंधों के पक्षधर रहे हैं, लेकिन घरेलू बाध्याताओं के कारण उन्हें अपने चुनाव प्रचार अभियान के दौरान नौकरियों को भारत में आउटसोर्स किए जाने के खिलाफ आवाज उठानी पड़ी।
अपने पहले ही कार्यकाल में भारत यात्रा पर जाने वाले ओबामा पहले अमेरिकी राष्ट्रपति थे और उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के मुद्दे को भी समर्थन दिया है। चुनाव परिणाम बताते हैं कि अमेरिका की गिरती अर्थव्यवस्था को संभालने के उनके तौर-तरीकों से असंतुष्ट रहने के बावजूद जनता उनके प्रति निष्ठावान बनी रही है और उनमें फिर से अपना भरोसा जताया है।
ओबामा ने हाल ही में सैंडी तूफान से तबाह हुए न्यूजर्सी के तटीय इलाकों का दौरा किया था और इस दौरान न्यूजर्सी के रिपब्लिकन गवर्नर भी उनके साथ थे। दोनों नेताओं ने अपनी-अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धताओं को दरकिनार करते हुए आपदा से निपटने के तौर तरीकों को लेकर एक-दूसरे की जी भरकर तारीफ की। आपदा से निपटने की उनकी शैली की जनता ने बड़ी सराहना की।
राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान से मात्र कुछ ही दिन पहले आई इस आपदा में 90 लोग मारे गए थे और देश की अर्थव्यवस्था को करीब 50 अरब डॉलर का नुकसान हुआ था। श्वेत अमेरिकी मां ऐन डनहैम और केन्या में पैदा हुए हॉर्वर्ड शिक्षित अर्थशास्त्री पिता के घर बराक का जन्म होनोलूलू के हवाई में बराक हुसैन ओबामा के रूप में हुआ था।
वह 4 नवंबर, 2008 को अमेरिका के 44वें राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित होने वाले पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने। उन्होंने इन चुनावों में अपने तत्कालीन रिपब्लिकन प्रतिद्वंद्वी जॉन मैक्केन को परास्त किया था और 20 जनवरी, 2009 को राष्ट्रपति पद की शपथ ली। अश्वेत मानवाधिकार नेता मार्टिन लूथर किंग द्वारा अमेरिकियों को 'समानता के सपने' को पूरा करने के लिए उठ खड़े होने का आह्वान किए जाने के ठीक 45 साल बाद ओबामा व्हाइट हाउस पहुंचे थे।
वर्ष 2009 में नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजे गए ओबामा 21 जनवरी, 2013 को दूसरे कार्यकाल के लिए राष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण करेंगे। हालांकि संविधान के तहत 20 जनवरी का दिन शपथ ग्रहण के लिए तय होता है, लेकिन उस दिन रविवार पड़ रहा है। जनादेश के बाद ओबामा के कंधों पर देश की अर्थव्यवस्था में जान फूंकने की जिम्मेदारी नए सिरे से आ गई है। कई दशकों के बाद अमेरिका में आई भीषण मंदी के बीच ओबामा के कार्यभार संभालने के बाद से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को काफी संघर्ष करना पड़ा है, जिसमें धीमी रोजगार वृद्धि दर और बेरोजगारी दर का आठ फीसदी से ऊपर बने रहना बड़े मुद्दे रहे हैं।
इससे पूर्व, नवंबर, 2010 के मध्यावधि चुनावों में डेमोक्रेटिक पार्टी को ऐतिहासिक नुकसान झेलना पड़ा था। अपने कंजरवेटिव एजेंडे को आगे बढ़ाने तथा राष्ट्रपति की योजनाओं में पलीता लगाने के लिए रिपब्लिकन अधिक दृढ़प्रतिज्ञ होकर सामने आ रहे थे। हालांकि विदेश नीति के मुद्दे पर ओबामा ने पाकिस्तान के ऐबटाबाद में अल-कायदा सरगना ओसामा बिन लादेन को मारने के लिए कमांडो दस्ता भेजकर, इराक में युद्ध को समाप्त कर और रूसी राष्ट्रपति दमित्री मेदवेदेव के साथ नई परमाणु हथियार संधि कर अपनी स्थिति को काफी मजबूत करने में सफलता हासिल की।
ओबामा ने अपना पहला कार्यकाल संभालने के पहले दिन से ही भारत के साथ अमेरिकी संबंधों के महत्व को समझा तथा जनवरी, 2009 में राष्ट्रपति पद की औपचारिक शपथ लेने से पहले ही तत्कालीन भारतीय राजदूत रोनेन सेन को खुद फोन कर मुंबई आतंकवादी हमलों पर संवेदना प्रकट की। इतना ही नहीं, उन्होंने यह प्रतिबद्धता भी जताई कि अमेरिका दोषियों को कानून के कठघरे में लाने के लिए हरसंभव सहायता उपलब्ध कराएगा।
उन्होंने राष्ट्रपति बनने के बाद सबसे पहले नवंबर, 2009 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपने सरकारी मेहमान के रूप में आमंत्रित किया और उनके सम्मान में पहला रात्रिभोज दिया। इसके एक साल बाद ही वह अपने पहले कार्यकाल के दौरान भारत यात्रा पर आने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बन गए, जिस दौरान उन्होंने न केवल 21वीं सदी में भारत-अमेरिका संबंधों को सर्वाधिक महत्वपूर्ण संबंध घोषित किया, बल्कि विश्व स्तर पर देश की बढ़ती महत्ता को मान्यता देते हुए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के दावे का समर्थन भी किया।
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