Sabarimala Temple Case Live Updates: सबरीमाला मंदिर मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
नई दिल्ली: केरल के सबरीमाला मंदिर (Sabarimala Temple Case) में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश के मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ आज यानी शुक्रवार को फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत से अपने फैसले में सबरीमाला मंदिर में महिलाओं की एंट्री पर लगे बैन को हटा दिया. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब सबरीमाला मंदिर के दरवाजे सभी महिलाओं के लिए खोल दिये गये. फिलहाल 10 से 50 साल की उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं थी. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट को केरल के सबरीमाला मंदिर में 10-50 साल की उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर रोक को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाया है. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने आठ दिनों तक सुनवाई करने के उपरांत 1 अगस्त को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन और अन्य ने इस प्रथा को चुनौती दी है. उन्होंने यह कहते हुए कि यह प्रथा लैंगिक आधार पर भेदभाव करती है, इसे खत्म करने की मांग की थी. याचिकाकर्ताओं का यह भी कहना था कि यह संवैधानिक समानता के अधिकार में भेदभाव है. एसोसिएशन ने कहा था कि मंदिर में प्रवेश के लिए 41 दिन से ब्रहचर्य की शर्त नहीं लगाई जा सकती क्योंकि महिलाओं के लिए यह असंभव है.
LIVE updates on Sabarimala temple verdict on women entry:
- सबरीमाला पर फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट की वकील इंदिरा जय सिंह ने एनडीटीवी से कहा कि मासिक धर्म वाली महिलाओं से अस्पृश्यता जैसा ट्रीटमेंट होता था, जो अब खत्म हो गया है. सुप्रीम कोर्ट ने तय किया है कि फंडामेंटल राइट्स किसी के भी धार्मिक प्रथाओं और परंपरा से ज्यादा महत्वपूर्ण है. दूसरे धर्म में भी महिलाओं के साथ हो रहे भेदभाव के मामलों पर भी इसका असर होगा.
- दिल्ली महिला आयोगी की चेयरपर्सन स्वाति मालीवाल ने सबरीमाला मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया. उन्होंने कहा कि महिलाएं हर मामलों में पुरुषों के बराबर होती हैं और उन्हें सभी धार्मिक स्थानों में प्रवेश करने की अनुमति दी जानी चाहिए, चाहे वह मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा या चर्च क्यों न हो. ऐसा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का धन्यवाद.
- सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर फैसले में अपना पक्ष सुनाते हुए जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने कहा, याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाई गई शिकायतें सही नहीं हैं... समानता का अधिकार धार्मिक आज़ादी के अधिकार से ऊपर नहीं हो सकता.. जजों की निजी राय गैरज़रूरी है... संवैधानिक नैतिकता को आस्थाओं के निर्वाह की इजाज़त देनी चाहिए.
- सुप्रीम कोर्ट द्वारा सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दिए जाने पर ट्रावणकोर देवस्वॉम बोर्ड (TDB) के अध्यक्ष ए. पद्मकुमार ने कहा, "हम अन्य धार्मिक प्रमुखों से समर्थन हासिल करने के बाद पुनर्विचार याचिका दायर करेंगे..."
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जस्टिस इंदु मल्होत्रा - इस मुद्दे का दूर तक असर जाएगा. धार्मिक परंपराओं में कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए. अगर किसी को किसी धार्मिक प्रथा में भरोसा है तो उसका सम्मान हो. ये प्रथाएं संविधान से संरक्षित हैं. समानता के अधिकार को धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के साथ ही देखना चाहिए. कोर्ट का काम प्रथाओं को रद्द करना नहीं है.
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जस्टिस चंद्रचूड़- अनुच्छेद 25 के मुताबिक सब बराबर हैं. समाज में बदलाव दिखना जरूरी. वैयक्तिक गरिमा अलग चीज़ है. लेकिन समाज मे सबकी गरिमा का ख्याल रखना ज़रूरी. पहले महिलाओं पर पाबन्दी उनको कमज़ोर मानकर लगाई जा रही थी. सबरीमला मामले में ब्रह्मचर्य से डिगने की आड़ में 10-50 वर्ष की महिलाओं पर मन्दिर में आने पर पाबन्दी लगाई गई थी.
- जस्टिस चंद्रचूड़ : मासिक धर्म की आड़ लेकर लगाई गई पाबन्दी महिलाओं की गरिमा के खिलाफ. अयप्पा के श्रद्धालु कोई अलग वर्ग नहीं हैं. महिलाओं को मासिक धर्म के आधार पर सामाजिक तौर पर बाहर करना संविधान के खिलाफ है. ये कहना कि महिला 41 दिन का व्रत नहीं कर सकतीं ये स्टीरियोटाइप है.
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जस्टिस चंद्रचूड: क्या संविधान महिलाओं के लिए अपमानजनक बात को स्वीकार कर सकता है ? पूजा से इनकार करना महिला गरिमा से इनकार करना. महिलाओं को भगवान की रचना के छोटे बच्चे की तरह बर्ताव संविधान से आंख मिचौली. पहले के दिनों में प्रतिबिंध प्राकृतिक कारणों से था.
- चीफ जस्टिस ने कहा कि पूजा का अधिकार सभी श्रद्धालुओं को है. उन्होंने कहा कि सबरीमाला की पंरपरा को धर्रम का अभिन्न हिस्सा नहीं माना जा सकता.
-वहीं जस्टिस नरीमन में ने कहा कि मंदिर में महिलाओं को भी पूजा का समान अधिकार. ये मौलिक अधिकार है
- भारत में महिलाओं के अधिकार के लिए बड़ा दिन. सुप्रीम कोर्ट ने सभी महिलाओं के लिए सबरीमाला मंदिर के दरवाजे खोले. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सबरीमाला की परंपरा असंवैधानिक है.
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धर्म एक है गरिमा और पहचान. अयप्पा कुछ अलग नहीं हैं. जो नियम जैविक और शारीरिक प्रक्रिया पर बने हैं वो संवैधानिक टेस्ट पर पास नहीं हो सकते.
- कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर से बैन हटा लिया है.
-सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला- सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर सुप्रीम कोर्ट ने बैन हटाया. अब सभी महिलाएं मंदिर में प्रेवश कर सकेंगी.
- दोतरफा नजरिये से महिलाओं की गरीमा को ठेस- सुप्रीम कोर्ट
- पुरुष की प्रधानता वाले नियम बदले जाने चाहिए, जो नियम पितृसत्तात्मक हैं वो बदले जाने चाहिए- सुप्रीम कोर्ट
- जस्टिस इंदू अलग हैं. इसलिए ये बहुमत का जजमेंट है. 4:1 की बहुमत से आएगा फैसला
-चीफ जस्टिस अपने और जस्टिस खानविलकर के लिए पढ रहे हैं.
- हमारी संस्कृति में महिला का स्थान आदरणीय और ग्लोरीफाइड - सुप्रीम कोर्ट
- सुप्रीम कोर्ट में पढ़ा जा रहा है फैसला
- सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने कहा कि इस मामले में चार विचार हैं.
- अब से कुछ देर में आएगा सबरीमाला मामले पर फैसला
केरल सरकार ने भी मंदिर में सभी महिलाओं के प्रवेश की वकालत की है. याचिका का विरोध करने वालों ने दलील दी है कि सुप्रीम कोर्ट सैकड़ों साल पुरानी प्रथा और रीति रिवाज में दखल नहीं दे सकता. भगवान अयप्पा खुद ब्रहमचारी हैं और वे महिलाओं का प्रवेश नहीं चाहते.
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की पीठ ने एक अगस्त इस मामले में फैसला सुरक्षित रखा था. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए पूछा महिलाओं को उम्र के हिसाब प्रवेश देना संविधान के मुताबिक है? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आर्टिकल 25 सभी वर्गों के लिए बराबर है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा मंदिर हर वर्ग के लिए है किसी खास के लिए नहीं है. हर कोई मंदिर आ सकता है.
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान इतिहास पर नही चलता बल्कि ये ऑर्गेनिक और वाइब्रेंट है. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने टिप्पणी की कि देश में प्राइवेट मंदिर का कोई सिद्धांत नहीं है. मंदिर प्राइवेट संपत्ति नहीं है ये सावर्जनिक संपत्ति है, ऐसे में सावर्जनिक संपत्ति में अगर पुरुष को प्रवेश की इजाजत है तो फिर महिला को भी प्रवेश की इजाजत मिलनी चाहिए. एक बार मंदिर खुलता है तो उसमें कोई भी जा सकता है.
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने कहा संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत सब नागरिक किसी धर्म की प्रैक्टिस या प्रसार करने के लिए स्वतंत्र हैं. इसका मतलब ये है कि एक महिला के नाते आपका प्रार्थना करने का अधिकार किसी विधान के अधीन नहीं है. ये संवैधानिक अधिकार है.
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