नई दिल्ली:
दागी लोगों को पार्टी में शामिल करने और टिकट देने के लिए भाजपा की परोक्ष आलोचना करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कहा है कि एक-एक सीट पर जीत का गणित बिठाने के लिए मूल्यों को ताक पर रखकर ऐसे लोगों से समझौते किए जा रहे हैं, जो अपने कुकृत्यों से लोकतंत्र और जनहित की मर्यादाओं को पलीता लगाते रहे हैं।
संघ के मुखपत्र पांचजन्य के ताजा अंक के संपादकीय में कहा गया है, ‘राजनीतिक कुसंस्कृति ने लगभग सभी दलों को अपनी चपेट में ले लिया है। आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर उत्तर प्रदेश में यह नजारा कुछ ज्यादा ही जोर पकड रहा है। सत्ता की लालसा में अवसरवाद की सारी हदें पार की जा रही हैं।’
संघ ने भाजपा का नाम लिए बिना कहा, ‘जो दल अपने चाल, चरित्र और चेहरे के लिए जनता के बी़च मिसाल बनने चाहिए, उनका स्खलन लोकतंत्र के लिए तो गंभीर चिन्ता का विषय है ही, संविधान की लोक कल्याणकारी राज्य की संकल्पना पर भी गहरी चोट है क्योंकि बिना राजनीतिक शुचिता के सुशासन स्थापित नहीं किया जा सकता।’ संपादकीय में कहा गया कि ऐसे लोगों से समझौते हो रहे हैं जो अपने कुकृत्यों से लोकतंत्र और जनहित की मर्यादाओं को पलीता लगाते रहे हैं। इनका एक पार्टी छोड दूसरी में जाना और ऐसे दागी व्यक्तियों को बिना शर्म-संकोच के लिए अपना लिया जाना माना राजनीतिक चलन हो गया है।
मुखपत्र में कहा गया है कि जो नेता और दल मूल्य आधारित राजनीति की बजाय चुनावी गणित, वोट और सत्ता की राजनीति करेंगे, वे सुशासन के संवाहक नहीं बन सकते। चुनाव में जीत से आगे सोचते हुए अपवित्र राजनीतिक गठजोड़ से परहेज करते हुए जनहित और राजनीतिक शुचिता की चिन्ता किए जाने से ही देश का यह कलुषित राजनीतिक परिदृश्य बदला जा सकता है।
संघ के मुखपत्र पांचजन्य के ताजा अंक के संपादकीय में कहा गया है, ‘राजनीतिक कुसंस्कृति ने लगभग सभी दलों को अपनी चपेट में ले लिया है। आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर उत्तर प्रदेश में यह नजारा कुछ ज्यादा ही जोर पकड रहा है। सत्ता की लालसा में अवसरवाद की सारी हदें पार की जा रही हैं।’
संघ ने भाजपा का नाम लिए बिना कहा, ‘जो दल अपने चाल, चरित्र और चेहरे के लिए जनता के बी़च मिसाल बनने चाहिए, उनका स्खलन लोकतंत्र के लिए तो गंभीर चिन्ता का विषय है ही, संविधान की लोक कल्याणकारी राज्य की संकल्पना पर भी गहरी चोट है क्योंकि बिना राजनीतिक शुचिता के सुशासन स्थापित नहीं किया जा सकता।’ संपादकीय में कहा गया कि ऐसे लोगों से समझौते हो रहे हैं जो अपने कुकृत्यों से लोकतंत्र और जनहित की मर्यादाओं को पलीता लगाते रहे हैं। इनका एक पार्टी छोड दूसरी में जाना और ऐसे दागी व्यक्तियों को बिना शर्म-संकोच के लिए अपना लिया जाना माना राजनीतिक चलन हो गया है।
मुखपत्र में कहा गया है कि जो नेता और दल मूल्य आधारित राजनीति की बजाय चुनावी गणित, वोट और सत्ता की राजनीति करेंगे, वे सुशासन के संवाहक नहीं बन सकते। चुनाव में जीत से आगे सोचते हुए अपवित्र राजनीतिक गठजोड़ से परहेज करते हुए जनहित और राजनीतिक शुचिता की चिन्ता किए जाने से ही देश का यह कलुषित राजनीतिक परिदृश्य बदला जा सकता है।