मोहन भागवत ने हिंदुओं से एक होने की अपील की, कहा- जंगली कुत्ते अकेले शेर का शिकार कर सकते हैं

हजारों सालों से हिंदुओं के प्रताड़ित रहने पर अफसोस जाहिर करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने हिंदुओं से एक होने की अपील की...

मोहन भागवत ने हिंदुओं से एक होने की अपील की, कहा- जंगली कुत्ते अकेले शेर का शिकार कर सकते हैं

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत (फाइल फोटो)

शिकागो:

हजारों सालों से हिंदुओं के प्रताड़ित रहने पर अफसोस जाहिर करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने हिंदुओं से एक होने की अपील की और कहा कि ‘यदि कोई शेर अकेला होता है, तो जंगली कुत्ते भी उस पर हमला कर अपना शिकार बना सकते हैं.’ उन्होंने समुदाय के नेताओं से अपील की कि वे एकजुट हों और मानवता की बेहतरी के लिये काम करें. दूसरी विश्व हिंदू कांग्रेस (डब्ल्यूएचसी) में यहां शामिल 2500 प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए भागवत ने कहा कि हिंदुओं में अपना वर्चस्व कायम करने की कोई आकांक्षा नहीं है. उन्होंने कहा, ‘‘हिंदू समाज तभी समृद्ध होगा जब वह समाज के रूप में काम करेगा.’ 

हिंदुओं में अपना वर्चस्व कायम करने की कोई आकांक्षा नहीं है : मोहन भागवत

मोहन भागवत ने कहा, ‘हमारे काम के शुरुआती दिनों में जब हमारे कार्यकर्ता हिंदुओं को एकजुट करने को लेकर उनसे बातें करते थे तो वे कहते थे कि ‘शेर कभी झुंड में नहीं चलता’. लेकिन जंगल का राजा शेर या रॉयल बंगाल टाइगर भी अकेला रहे तो जंगली कुत्ते उस पर हमला कर अपना शिकार बना सकते हैं.’     हिंदू समाज में सबसे अधिक प्रतिभावान लोगों के होने का जिक्र करते हुए आरएसएस प्रमुख ने कहा, ‘हिंदुओं का एक साथ आना अपने आप में एक मुश्किल चीज है.’ उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म में कीड़े को भी नहीं मारा जाता है, बल्कि उस पर नियंत्रण किया जाता है. 

भागवत ने कहा, ‘हिंदू किसी का विरोध करने के लिए नहीं जीते. हम कीड़े-मकौड़ों को भी जीने देते हैं. ऐसे लोग हैं जो हमारा विरोध कर सकते हैं. आपको उन्हें नुकसान पहुंचाए बगैर उनसे निपटना होगा.’ उन्होंने कहा कि हिंदू वर्षों से प्रताड़ित हैं, क्योंकि वे हिंदू धर्म और आध्यात्म के बुनियादी सिद्धांतों पर अमल करना भूल गए हैं. सम्मेलन में हिस्सा ले रहे लोगों से भागवत ने अपील की कि वे सामूहिक रूप से काम करने के विचार को अमल में लाने के तौर-तरीके विकसित करें. भागवत ने कहा, ‘हमें एक होना होगा.’ उन्होंने कहा कि सारे लोगों को किसी एक ही संगठन में पंजीकृत होने की जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा, ‘यह सही पल है. हमने अपना अवरोहण रोक दिया है. हम इस पर मंथन कर रहे हैं उत्थान कैसे होगा.  हम कोई गुलाम या दबे-कुचले देश नहीं हैं. भारत के लोगों को हमारी प्राचीन बुद्धिमता की सख्त जरूरत है.’ 

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भागवत ने कहा कि आदर्शवाद की भावना अच्छी है, लेकिन वह ‘आधुनिकता विरोधी’ नहीं हैं और ‘भविष्य हितैषी’ हैं. इस संदर्भ में उन्होंने हिंदू महाकाव्य ‘महाभारत’ में युद्ध एवं राजनीति का जिक्र किया और कहा कि राजनीति किसी ध्यान सत्र की तरह नहीं हो सकती और इसे राजनीति ही होना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘पूरे विश्व को एक टीम के तौर पर लाने का महत्वपूर्ण मूल्य अपने अहं को नियंत्रित करना और सर्वसम्मति को स्वीकार करना सीखना है. शिकागो में 1893 में विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद के ऐतिहासिक भाषण की 125वीं वर्षगांठ की स्मृति में दूसरी विश्व हिंदू कांग्रेस का आयोजन किया गया है। यह सम्मेलन हिंदू सिद्धांत ‘सुमंत्रिते सुविक्रांते’ अर्थात ‘सामूहिक रूप से चिंतन करें, वीरतापूर्वक प्राप्त करें’ पर आधारित है. 

भागवत ने कहा, ‘‘समूची दुनिया को एक टीम के तौर पर बदलने की कुंजी नियंत्रित अहं और सर्वसम्मति को स्वीकार करना सीखना है. उदाहरण के लिये भगवान कृष्ण और युधिष्ठिर ने कभी एक दूसरे का खंडन नहीं किया.’ आरएसएस प्रमुख ने कहा, ‘‘साथ काम करने के लिये हमें सर्वसम्मति स्वीकार करनी होगी. हम साथ काम करने की स्थिति में हैं.’ उन्होंने सम्मेलन में शामिल लोगों से कहा कि वह सामूहिक रूप से काम करने के विचार को लागू करने के तरीके को लागू करने की कार्यप्रणाली विकसित करें और चर्चा करें. 

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विश्व हिंदू कांग्रेस के अध्यक्ष एस पी कोठारी ने कहा कि उन्हें और सम्मेलन में शामिल कई और लोगों को विभिन्न संगठनों और व्यक्तियों की तरफ से ऐसे अनुरोध और याचिकाएं मिलीं जिनमें उनसे सम्मेलन से अलग होने का अनुरोध किया गया क्योंकि डब्ल्यूएचसी या इसके कुछ संगठन ‘‘सामाजिक और धार्मिक रूप से विभाजक’’ हैं. कोठारी ने कहा, ‘‘मैं ऐसी मान्यता को सिरे से खारिज करता हूं.’ सम्मेलन में अपने संबोधन में अभिनेता अनुपम खेर ने कहा कि ‘हिंदुत्व’ जीवन का एक तरीका है और कोई हिंदू उनकी तरह के तौर-तरीकों को अपनाकर बनता है. उन्होंने कहा, ‘‘सहिष्णुता विवेकानंद के संदेश का मूल तत्व था. अपने ही देश में शरणार्थी की तरह रहने के बावजूद कश्मीरी पंडितों ने इस तरह से 28 वर्षों से सहिष्णुता दिखाई है जैसे कोई और नहीं दिखाता.’’.

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)


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