नई दिल्ली:
प्रमोशन में आरक्षण के बिल की वकालत करने वालों का कहना है कि दलित अफ़सरों और कमर्चारियों के साथ हमेशा ही भेदभाव होता रहा है। सुदेश कुमारी अपने पति के साथ बीते तीन साल से राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग का चक्कर लगा रही हैं।
सेल में जूनियर ऑफिसर सुदेश 2008 में रिसेप्शनिस्ट के पद पर काम करती थीं। विभागीय परीक्षा पास करने पर भी प्रमोशन नहीं मिला जबकि सीटे खाली थीं। कहा गया कि वो इसके लायक नहीं। 2010 में दोबारा परीक्षा देने पर प्रमोशन तो मिला लेकिन एक साल का प्रोबेशनरी पीरियड और 6 महीने की ट्रेनिंग खत्म हो गई पर जूनियर मैनेजर का पोस्ट जो पिछले साल अक्टूबर में मिलना था आज तक नहीं मिला।
सुदेश कुमारी ने एनडीटीवी को बताया, 'मुझे अभी तक जूनियर मैनेजर नहीं बनाया गया जबकि मेरे से एक साल जूनियर को यह प्रमोशन दे दिया गया। अनुसूचित जाति आयोग में संयुक्त सचिव टी थीथन कहते हैं कि वह सेल की प्रमोशन नीति की समीक्षा करेंगे।
वहीं, सेन्ट्रल सेक्रेटेरिएट में बतौर अंडर सेक्रेटरी काम कर रहे एक अफसर ने एनडीटीवी को बताया कि दलित अधिकारियों के साथ भेदभाव डिपार्टमेंट में पर्सनल एंड ट्रेनिंग ही कर रहा है जो कर्मचारियों और अधिकारियों के लिए नियम−कानून बनाता है।
आयोग के पास साल में जाति के आधार पर भेदभाव के 20 हजार से 25 हजार तक शिकायतें आती हैं। आयोग के एक आंतरिक रिपोर्ट के मुताबिक भारत सरकार में 66 एडिशनल सेक्रेटरी के पद हैं और इनमें सिर्फ एक अधिकारी अनूसूचित जाति का है। 249 संयुक्त सचिव के पद हैं जिसमें सिर्फ 13 अनूसूचित जाति के हैं और 471 डायरेक्टर रैंक के पद हैं जिनमें सिर्फ 31 अनूसूचित जाति के हैं।
भेदभाव झेलने वाले हर कमर्चारी को न्याय दिलाने में आयोग सफल नहीं हो पाता। अनूसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष पीएल पुनिया कहते हैं, 'हमारे पास सिर्फ समन करने का अधिकार है, लेकिन हम सिर्फ सिफारिश कर सकते हैं। हम किसी दोषी के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकते। मैंने सरकार को लिखा है कि आयोग को कार्रवाई का अधिकार भी मिलना चाहिए। यानि दलित कर्मचारियों को जल्दी इंसाफ पाने के लिए अभी लंबा इंतज़ार करना पड़ेगा।'
सेल में जूनियर ऑफिसर सुदेश 2008 में रिसेप्शनिस्ट के पद पर काम करती थीं। विभागीय परीक्षा पास करने पर भी प्रमोशन नहीं मिला जबकि सीटे खाली थीं। कहा गया कि वो इसके लायक नहीं। 2010 में दोबारा परीक्षा देने पर प्रमोशन तो मिला लेकिन एक साल का प्रोबेशनरी पीरियड और 6 महीने की ट्रेनिंग खत्म हो गई पर जूनियर मैनेजर का पोस्ट जो पिछले साल अक्टूबर में मिलना था आज तक नहीं मिला।
सुदेश कुमारी ने एनडीटीवी को बताया, 'मुझे अभी तक जूनियर मैनेजर नहीं बनाया गया जबकि मेरे से एक साल जूनियर को यह प्रमोशन दे दिया गया। अनुसूचित जाति आयोग में संयुक्त सचिव टी थीथन कहते हैं कि वह सेल की प्रमोशन नीति की समीक्षा करेंगे।
वहीं, सेन्ट्रल सेक्रेटेरिएट में बतौर अंडर सेक्रेटरी काम कर रहे एक अफसर ने एनडीटीवी को बताया कि दलित अधिकारियों के साथ भेदभाव डिपार्टमेंट में पर्सनल एंड ट्रेनिंग ही कर रहा है जो कर्मचारियों और अधिकारियों के लिए नियम−कानून बनाता है।
आयोग के पास साल में जाति के आधार पर भेदभाव के 20 हजार से 25 हजार तक शिकायतें आती हैं। आयोग के एक आंतरिक रिपोर्ट के मुताबिक भारत सरकार में 66 एडिशनल सेक्रेटरी के पद हैं और इनमें सिर्फ एक अधिकारी अनूसूचित जाति का है। 249 संयुक्त सचिव के पद हैं जिसमें सिर्फ 13 अनूसूचित जाति के हैं और 471 डायरेक्टर रैंक के पद हैं जिनमें सिर्फ 31 अनूसूचित जाति के हैं।
भेदभाव झेलने वाले हर कमर्चारी को न्याय दिलाने में आयोग सफल नहीं हो पाता। अनूसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष पीएल पुनिया कहते हैं, 'हमारे पास सिर्फ समन करने का अधिकार है, लेकिन हम सिर्फ सिफारिश कर सकते हैं। हम किसी दोषी के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकते। मैंने सरकार को लिखा है कि आयोग को कार्रवाई का अधिकार भी मिलना चाहिए। यानि दलित कर्मचारियों को जल्दी इंसाफ पाने के लिए अभी लंबा इंतज़ार करना पड़ेगा।'
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