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This Article is From Sep 12, 2021

अंधविश्वास, कठोरता से ऊपर होना चाहिए धर्म, स्वामी विवेकानंद के शब्दों पर ध्यान देने की जरूरत: CJI एन वी रमना

CJI ने कहा कि स्वामी विवेकानंद "दृढ़ता से मानते थे कि धर्म का असली सार सामान्य भलाई और सहिष्णुता है. धर्म अंधविश्वास और कठोरता से ऊपर होना चाहिए.

अंधविश्वास, कठोरता से ऊपर होना चाहिए धर्म, स्वामी विवेकानंद के शब्दों पर ध्यान देने की जरूरत: CJI एन वी रमना
युवाओं को जागरूक होने की जरूरत : सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एन वी रमना (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:

भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI)  एन वी रमना ने कहा कि धर्म को अंधविश्वास और कठोरता से ऊपर होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने यह बात विवेकानंद इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन एक्सीलेंस, हैदराबाद के 22वें स्थापना दिवस और स्वामी विवेकानंद के ऐतिहासिक शिकागो संबोधन की 128वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर कही. उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने अपने संबोधन में (1893 में शिकागो में "धर्म संसद" में) सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति के विचार का प्रचार किया. 

CJI ने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने समाज में राष्ट्रों और सभ्यताओं के लिए अर्थहीन और सांप्रदायिक संघर्षों से उत्पन्न खतरों का विश्लेषण किया. आज, समकालीन भारत में, स्वामी विवेकानंद द्वारा 1893 में बोले गए शब्दों पर ध्यान देने की अधिक आवश्यकता है. उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उपमहाद्वीप में हुए दर्दनाक मंथन से बहुत पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी, जिसके परिणामस्वरूप भारत का संविधान बना. उन्होंने धर्मनिरपेक्षता की वकालत की जैसे की वो पहले से सब जानते थे. उनका दृढ़ विश्वास था कि धर्म का असली सार सामान्य भलाई और सहिष्णुता है. 

सुप्रीम कोर्ट चीफ जस्टिस ने कहा कि स्वामी विवेकानंद "दृढ़ता से मानते थे कि धर्म का असली सार सामान्य भलाई और सहिष्णुता है. धर्म अंधविश्वास और कठोरता से ऊपर होना चाहिए. पुनरुत्थान भारत बनाने का सपना पूरा करने के लिए सामान्य भलाई और सहिष्णुता के सिद्धांतों के माध्यम से हमें आज के युवाओं में स्वामी जी के आदर्शों को स्थापित करना चाहिए. CJI ने कहा कि युवाओं को जागरूक होने की जरूरत है कि उनके कार्य राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया का एक हिस्सा हैं. उन्होंने युवा स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा निभाई गई भूमिका को भी याद किया और कहा, भारत के स्वतंत्रता संग्राम की कहानी उनके नामों के बिना अधूरी होगी. 

प्रधान न्यायाधीश ने इस बात पर प्रकाश डाला कि शिक्षा और जागरूकता सशक्तिकरण के प्रमुख घटक हैं और आज के युवाओं को अपने संघर्ष के दिनों से मिलने वाली पहुंच की तुलना की. उन्होंने कहा कि एक ग्रामीण पृष्ठभूमि से हूं. हमने खुद को शिक्षित करने के लिए संघर्ष किया. आज संसाधन आपकी उंगलियों पर उपलब्ध हैं. सूचना के प्रवाह में आसानी के साथ आधुनिक समाज की अति जागरूकता की अनुमति है. छात्र सामाजिक और राजनीतिक रूप से अधिक जागरूक हैं. आपको समाज और राज्य व्यवस्था के सामने आने वाली सामाजिक बुराइयों और समसामयिक मुद्दों के बारे में पता होना चाहिए. 

उन्होंने कहा कि अपनी दृष्टि का विस्तार करने और अपनी राय में विविधता लाने के लिए किताबें पढ़ें. उन्होंने युवाओं को शहरी स्थानों के भीतर मौजूद झुग्गी बस्तियों के बारे में जागरूक होने के लिए और गांवों का दौरा कर ग्रामीण जीवन के बारे में जागरूक होने के लिए का दौरा करने के लिए प्रोत्साहित किया. उन्होंने सलाह दी कि समाज में सार्थक बदलाव लाने और समाधान खोजने की मानसिकता के साथ यह सब जागरूकता भी होनी चाहिए.

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