जीएम सरसों के खिलाफ किसानों और सामाजिक संगठनों ने सड़कों पर उतकर विरोध करना शुरू कर दिया है
जेनेटिक मोडिफाइड यानी जीएम सरसों को भले ही सरकार की एक्सपर्ट कमेटी ने पिछले हफ्ते मंज़ूरी दे दी हो लेकिन, अभी इसके खेतों में उगाए जाने और बाज़ार में आने की संभावना कम ही है. सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बुधवार को जीएम सरसों को लेकर दिल्ली में पर्यावरण मंत्रालय के सामने विरोध-प्रदर्शन किया और मंत्री अनिल दवे से मुलाकात कर अपनी नाराजगी दर्ज कराई.
जीएम सरसों का विरोध करने वाले कई तख्तियां और बैनर अपने हाथों में लिए हुए थे. इनमें ग्रीनपीस, सरसों सत्याग्रह जैसे संगठनों के साथ देश के कई हिस्सों से आए किसान भी शामिल थे. इसके अलावा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ा संगठन भारतीय किसान संघ के सदस्यों ने भी इसमें हिस्सा लिया. संघ का विरोध सरकार पर दबाव बढ़ा रहा है.
भारतीय किसान संघ के अखिल भारतीय महामंत्री बद्री नारायण चौधरी ने कहा, "सरकार किसी की भी हो अगर किसान विरोधी, देश विरोधी और राष्ट्र विरोधी कदम है तो भारतीय किसान संघ हमेशा विरोध करेगा. यहां ऐसा ही हो रहा है. वैज्ञानिकों के नाम पर सरकार को बरगलाया जा रहा है और किसानों को आवाज़ उठानी पड़ रही है. अगर ये आवाज नहीं सुनेंगे तो किसानों को सड़कों पर आना पड़ेगा."
जीएम सरसों को दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर जैनिटिक मैनुपुलेशन एंड क्रॉप प्लांट्स ने विकसित किया है. जीएम सरसों को कई साल के शोध के बाद डीयू के पूर्व वीसी डॉ दीपक पेंटल की अगुवाई में एक टीम ने विकसित किया है. अगर जीएम सरसों को मंजूरी मिली तो भारत के खेतों में उगाई जाने वाली ये पहली खाद्य फसल होगी. जीएम फसलों से जुड़े मामलों को देखने वाली सरकार की एक्सपर्ट कमेटी (GEAC) ने इसे मंजूरी दे दी है.
मेटी की एक सदस्य और पर्यावरण मंत्रालय में सचिव अमिता प्रसाद कह चुकी हैं कि कमेटी (GEAC) ने अपना काम किया है. बैठक में सभी लोगों की शंकाओं पर विचार किया गया. कृषि पर नीति आयोग की पॉलिसी और खेती में टेक्नोलॉजी को बढ़ावा देने की नीति के तहत ये हरी झंडी दी गई है.
उधर, सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बुधवार को पर्यावरण मंत्री अनिल दवे से भी मुलाकात की और कहा कि एक्सपर्ट कमेटी ने जल्दबाज़ी में जीएम सरसों को हरी झंडी दी है. बैठक के बाद मंत्री अनिल दवे ने मीडिया से बात नहीं की लेकिन सूत्रों ने एनडीटीवी इंडिया को बताया कि सरकार एक्सपर्ट कमेटी की हरी झंड़ी मिलने के बाद भी जल्दी में नहीं है.
सरसों सत्याग्रह से जुड़ी कविता कुरुगंटी ने पर्यावरण मंत्री से मिलने के बाद कहा, "हमने मंत्री जी को अपनी चिंताएं बताई हैं. हम सरकार की एक्सपर्ट कमेटी के लोगों को बहस की खुली चुनौती देते हैं. ये सरसों सेहत के लिए और किसानों के लिए एक बड़ा खतरा है."
कुरुगंटी के साथ जीएम सरसों का विरोध कर रहे अर्थशास्त्री डॉ. राजेंद्र शास्त्री कहते हैं, "दुनियाभर में 6 बड़ी कंपनियां एग्रो कैमिकल पर कब्ज़ा किए हुए हैं और अब उनमें आपस में मर्जर हो रहे हैं. अब 6 की जगह तीन कंपनियां रहेंगी. ये जो दुनिया में चंद कंपनियां पूरी अर्थव्यवस्था पर क़ब्ज़ा करें ये किसी के हित में नहीं है."
वैसे जीएम फसलों से जुड़े मामलों की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में भी चल रही है और इस मामले में बनी संसदीय समिति भी कह चुकी है कि वह अभी मामले को देख रही है और हरी झंडी से पहले सरकार इंतज़ार करे. इससे पहले एक और जीएम फसल बीटी बैंगन को 2010 में सरकार की एक्सपर्ट कमेटी (GEAC) ने हरी झंडी दी थी लेकिन तब उस वक्त के पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने बीटी बैंगन पर रोक लगा दी थी. अब सवाल ये है कि जीएम सरसों को अनुमति मिलेगी या यह भी बीटी बैंगन की राह पर चलेगा.
जीएम सरसों का विरोध करने वाले कई तख्तियां और बैनर अपने हाथों में लिए हुए थे. इनमें ग्रीनपीस, सरसों सत्याग्रह जैसे संगठनों के साथ देश के कई हिस्सों से आए किसान भी शामिल थे. इसके अलावा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ा संगठन भारतीय किसान संघ के सदस्यों ने भी इसमें हिस्सा लिया. संघ का विरोध सरकार पर दबाव बढ़ा रहा है.
भारतीय किसान संघ के अखिल भारतीय महामंत्री बद्री नारायण चौधरी ने कहा, "सरकार किसी की भी हो अगर किसान विरोधी, देश विरोधी और राष्ट्र विरोधी कदम है तो भारतीय किसान संघ हमेशा विरोध करेगा. यहां ऐसा ही हो रहा है. वैज्ञानिकों के नाम पर सरकार को बरगलाया जा रहा है और किसानों को आवाज़ उठानी पड़ रही है. अगर ये आवाज नहीं सुनेंगे तो किसानों को सड़कों पर आना पड़ेगा."
जीएम सरसों को दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर जैनिटिक मैनुपुलेशन एंड क्रॉप प्लांट्स ने विकसित किया है. जीएम सरसों को कई साल के शोध के बाद डीयू के पूर्व वीसी डॉ दीपक पेंटल की अगुवाई में एक टीम ने विकसित किया है. अगर जीएम सरसों को मंजूरी मिली तो भारत के खेतों में उगाई जाने वाली ये पहली खाद्य फसल होगी. जीएम फसलों से जुड़े मामलों को देखने वाली सरकार की एक्सपर्ट कमेटी (GEAC) ने इसे मंजूरी दे दी है.
मेटी की एक सदस्य और पर्यावरण मंत्रालय में सचिव अमिता प्रसाद कह चुकी हैं कि कमेटी (GEAC) ने अपना काम किया है. बैठक में सभी लोगों की शंकाओं पर विचार किया गया. कृषि पर नीति आयोग की पॉलिसी और खेती में टेक्नोलॉजी को बढ़ावा देने की नीति के तहत ये हरी झंडी दी गई है.
उधर, सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बुधवार को पर्यावरण मंत्री अनिल दवे से भी मुलाकात की और कहा कि एक्सपर्ट कमेटी ने जल्दबाज़ी में जीएम सरसों को हरी झंडी दी है. बैठक के बाद मंत्री अनिल दवे ने मीडिया से बात नहीं की लेकिन सूत्रों ने एनडीटीवी इंडिया को बताया कि सरकार एक्सपर्ट कमेटी की हरी झंड़ी मिलने के बाद भी जल्दी में नहीं है.
सरसों सत्याग्रह से जुड़ी कविता कुरुगंटी ने पर्यावरण मंत्री से मिलने के बाद कहा, "हमने मंत्री जी को अपनी चिंताएं बताई हैं. हम सरकार की एक्सपर्ट कमेटी के लोगों को बहस की खुली चुनौती देते हैं. ये सरसों सेहत के लिए और किसानों के लिए एक बड़ा खतरा है."
कुरुगंटी के साथ जीएम सरसों का विरोध कर रहे अर्थशास्त्री डॉ. राजेंद्र शास्त्री कहते हैं, "दुनियाभर में 6 बड़ी कंपनियां एग्रो कैमिकल पर कब्ज़ा किए हुए हैं और अब उनमें आपस में मर्जर हो रहे हैं. अब 6 की जगह तीन कंपनियां रहेंगी. ये जो दुनिया में चंद कंपनियां पूरी अर्थव्यवस्था पर क़ब्ज़ा करें ये किसी के हित में नहीं है."
वैसे जीएम फसलों से जुड़े मामलों की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में भी चल रही है और इस मामले में बनी संसदीय समिति भी कह चुकी है कि वह अभी मामले को देख रही है और हरी झंडी से पहले सरकार इंतज़ार करे. इससे पहले एक और जीएम फसल बीटी बैंगन को 2010 में सरकार की एक्सपर्ट कमेटी (GEAC) ने हरी झंडी दी थी लेकिन तब उस वक्त के पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने बीटी बैंगन पर रोक लगा दी थी. अब सवाल ये है कि जीएम सरसों को अनुमति मिलेगी या यह भी बीटी बैंगन की राह पर चलेगा.
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