प्रियंका गांधी (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
प्रियंका गांधी ने मंगलवार को कांग्रेस महासचिव और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के प्रभारी गुलाम नबी आजाद से मुलाकात की। प्रियंका की आजाद से मुलाकात के बाद उत्तर प्रदेश में साल 2017 में होने जा रहे विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी में उनकी भूमिका को लेकर अटकलें तेज हो गई हैं।
पार्टी सूत्रों ने बताया कि आजाद के आवास पर प्रियंका की उनसे मुलाकात करीब एक घंटे तक चली। समझा जाता है कि उन्होंने राज्य में अगले साल विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी में प्रियंका की भूमिका को लेकर चर्चा की।
खबरों के अनुसार, प्रियंका कांग्रेस के लिए सक्रिय और बड़ी भूमिका निभा सकती हैं और शायद वह उत्तरप्रदेश में पार्टी की शीर्ष प्रचारक भी होंगी। प्रियंका की भूमिका के बारे में कांग्रेस ने अभी चुप्पी साध रखी है, लेकिन पार्टी के कई नेता चाहते हैं कि प्रियंका बड़ी भूमिका निभाएं और पूरे राज्य में पार्टी के लिए प्रचार करें।
रायबरेली और अमेठी में ही प्रचार करती रही हैं अब तक
अब तक प्रियंका अपनी मां और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली व अपने भाई एवं कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र अमेठी में प्रचार करती रही हैं। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की चुनावी रणनीति को लेकर पिछले कुछ दिनों में आजाद की सोनिया और राहुल के साथ मुलाकातें हो चुकी हैं। आजाद चाहते हैं कि प्रियंका बड़ी भूमिका निभाते हुए पूरे राज्य में प्रचार करें।
कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में पार्टी की मदद करने के लिए चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर को जिम्मेदारी सौंपी है। बताया जाता है कि किशोर ने राज्य में पार्टी का नेतृत्व करने के लिए प्रियंका के नाम का सुझाव दिया है।
शीला दीक्षित को भी महत्वपूर्ण भूमिका देने की तैयारी
ऐसी भी खबरें हैं कि कांग्रेस की वरिष्ठ नेता शीला दीक्षित को राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य में सक्रिय भूमिका दी जा सकती है। सूत्रों का कहना है कि पार्टी की राज्य इकाई के अध्यक्ष निर्मल खत्री की जगह दूसरा अध्यक्ष चुना जा सकता है।
उत्तर प्रदेश में प्रियंका को शीर्ष चुनाव प्रचारक बनाए जाने को लेकर कांग्रेस में अलग-अलग राय है। कुछ लोगों का मानना है कि प्रियंका को एक राज्य के चुनाव पर ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए और अगले लोकसभा चुनाव में पूरे देश में पार्टी के लिए प्रचार करना चाहिए।
कांग्रेस उत्तर प्रदेश में पिछले 26 साल से भी अधिक समय से राजनीतिक बनवास में है। इस दौरान राज्य में 'मंडल' और 'मंदिर' का मुद्दा तो उभरा ही, साथ ही सपा और बसपा जैसे क्षेत्रीय दल भी मजबूत हुए।
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
पार्टी सूत्रों ने बताया कि आजाद के आवास पर प्रियंका की उनसे मुलाकात करीब एक घंटे तक चली। समझा जाता है कि उन्होंने राज्य में अगले साल विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी में प्रियंका की भूमिका को लेकर चर्चा की।
खबरों के अनुसार, प्रियंका कांग्रेस के लिए सक्रिय और बड़ी भूमिका निभा सकती हैं और शायद वह उत्तरप्रदेश में पार्टी की शीर्ष प्रचारक भी होंगी। प्रियंका की भूमिका के बारे में कांग्रेस ने अभी चुप्पी साध रखी है, लेकिन पार्टी के कई नेता चाहते हैं कि प्रियंका बड़ी भूमिका निभाएं और पूरे राज्य में पार्टी के लिए प्रचार करें।
रायबरेली और अमेठी में ही प्रचार करती रही हैं अब तक
अब तक प्रियंका अपनी मां और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली व अपने भाई एवं कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र अमेठी में प्रचार करती रही हैं। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की चुनावी रणनीति को लेकर पिछले कुछ दिनों में आजाद की सोनिया और राहुल के साथ मुलाकातें हो चुकी हैं। आजाद चाहते हैं कि प्रियंका बड़ी भूमिका निभाते हुए पूरे राज्य में प्रचार करें।
कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में पार्टी की मदद करने के लिए चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर को जिम्मेदारी सौंपी है। बताया जाता है कि किशोर ने राज्य में पार्टी का नेतृत्व करने के लिए प्रियंका के नाम का सुझाव दिया है।
शीला दीक्षित को भी महत्वपूर्ण भूमिका देने की तैयारी
ऐसी भी खबरें हैं कि कांग्रेस की वरिष्ठ नेता शीला दीक्षित को राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य में सक्रिय भूमिका दी जा सकती है। सूत्रों का कहना है कि पार्टी की राज्य इकाई के अध्यक्ष निर्मल खत्री की जगह दूसरा अध्यक्ष चुना जा सकता है।
उत्तर प्रदेश में प्रियंका को शीर्ष चुनाव प्रचारक बनाए जाने को लेकर कांग्रेस में अलग-अलग राय है। कुछ लोगों का मानना है कि प्रियंका को एक राज्य के चुनाव पर ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए और अगले लोकसभा चुनाव में पूरे देश में पार्टी के लिए प्रचार करना चाहिए।
कांग्रेस उत्तर प्रदेश में पिछले 26 साल से भी अधिक समय से राजनीतिक बनवास में है। इस दौरान राज्य में 'मंडल' और 'मंदिर' का मुद्दा तो उभरा ही, साथ ही सपा और बसपा जैसे क्षेत्रीय दल भी मजबूत हुए।
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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