यह ख़बर 21 जून, 2012 को प्रकाशित हुई थी

राष्ट्रपति चुनाव : आखिरकार बंट ही गया एनडीए

खास बातें

  • बीजेपी ने जैसे ही पीए संगमा की उम्मीदवारी का समर्थन किया वैसे ही जेडीयू ने प्रणब मुखर्जी का साथ देने की बात की। हालांकि दोनों पार्टियां यह जताने की कोशिश करती रहीं कि इससे एनडीए की सेहत पर असर नहीं पड़ेगा।
नई दिल्ली से हिमांशु शेखर:

राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी ने आखिरकार एनडीए को बांट दिया है। यह बात गुरुवार को साफ हो गई। बीजेपी ने जैसे ही पीए संगमा की उम्मीदवारी का समर्थन किया वैसे ही जेडीयू ने प्रणब मुखर्जी का साथ देने की बात की। हालांकि दोनों पार्टियां यह जताने की कोशिश करती रहीं कि इससे एनडीए की सेहत पर असर नहीं पड़ेगा।
 
मतभेद कितने गंभीर थे इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि राष्ट्रपति चुनाव पर एनडीए की पिछले 48 घंटे में कोई बैठक नहीं हो सकी। अपने उम्मीदवार के इकतरफ़ा ऐलान के लिए आई बीजेपी ने माना कि एनडीए में इस मसले पर आम राय नहीं बन सकी है लेकिन दावा भी किया कि कहा कि इसके बावजूद एनडीए एक बना रहेगा।
 
बीजेपी की प्रेस कॉन्फ्रेंस ख़त्म हुई तब जेडीयू की शुरू हो गई। बड़ी दुविधा के साथ शरद यादव ने प्रणब मुखर्जी के समर्थन की बात की। उन्होंने कहा यूपीए का जो प्रत्याशी है हम उसका समर्थन करेंगे लेकिन हम कांग्रेस के खिलाफ हमेशा रहे हैं और आगे भी रहेंगे।

शरद यादव ने दलील दी कि पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के नाम पर एनडीए में सहमति बन रही थी और शिवसेना भी कलाम का समर्थन देने के लिए तैयार थी लेकिन कलाम जब चुनाव मैदान से हट गये तब जेडी−यू के पास प्रणब का समर्थन करने के अलावा कोई दूसरा बेहतर विकल्प नहीं था।
 
वैसे शरद यादव भी यही समझाते रहे कि राष्ट्रपति पर पहले भी एनडीए अलग रहा है और इस बार के मतभेद के बावजूद बाकी मुद्दों पर गठजोड़ बना रहेगा। लेकिन शरद यादव ये नहीं समझा पाए कि संगमा को लेकर बीजेपी के साथ खड़े होने में उनके लिए क्या मुश्किल थी। जाहिर है बिहार से जेडीयू का दबाव उनपर भारी पड़ा।

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