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This Article is From Apr 20, 2016

उत्तराखंड संकट : हाई कोर्ट ने कहा, 'लोगों से गलती हो सकती है, चाहे वह राष्ट्रपति हों या न्यायाधीश'

उत्तराखंड संकट : हाई कोर्ट ने कहा, 'लोगों से गलती हो सकती है, चाहे वह राष्ट्रपति हों या न्यायाधीश'
देहरादून: उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने को लेकर सुनवाई कर रही जजों की बेंच ने बुधवार को कहा, 'राष्ट्रपति भी गलती कर सकते हैं'। इस मामले पर लगातार सुनवाई के बीच उत्तराखंड हाई कोर्ट के जजों ने यह भी कहा है कि केंद्र द्वारा राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाकर राज्यपाल के माध्यम से दिल्ली से शासन करने का निर्णय संदेहास्पद लगता है।

चीफ जस्टिस ने कहा- सबकुछ समीक्षा के दायरे में
उत्तराखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस का कहना है कि राष्ट्रपति से भी गलती हो सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि वह राष्ट्रपति के विवेक पर शक नहीं कर रहे हैं, लेकिन सबकुछ कोर्ट की समीक्षा के दायरे में हैं।

केंद्र सरकार के इस तर्क पर कि राष्ट्रपति ने अपने ‘‘राजनैतिक विवेक ’’ के तहत संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत यह निर्णय किया, मुख्य न्यायाधीश के एम जोसफ और न्यायमूर्ति वी के बिष्ट की पीठ ने कहा, ‘‘लोगों से गलती हो सकती है, चाहे वह राष्ट्रपति हों या न्यायाधीश।’’

कोर्ट ने कहा, ‘‘राष्ट्रपति के समक्ष रखे गए तथ्यों के आधार पर किए गए उनके निर्णय की न्यायिक समीक्षा हो सकती है।’’ केंद्र के यह कहने पर कि राष्ट्रपति के समक्ष रखे गए तथ्यों पर बनी उनकी समझ कोर्ट से अलग हो सकती है, तब कोर्ट ने यह टिप्पणी की।

केंद्र ने यह बात पीठ के यह कहने पर कही कि उत्तराखंड के हालत के बारे में राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति को भेजी गई रिपोर्ट से ‘‘हमने यह समझा कि हर चीज 28 मार्च को विधानसभा में शक्ति परीक्षण की तरफ जा रही थी।’’

रिपोर्ट में मत विभाजन का जिक्र नहीं
सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्यपाल ने राष्ट्रपति को भेजी गई अपनी रिपोर्ट में इस बात का जिक्र नहीं किया कि 35 विधायकों ने मत विभाजन की मांग की है। कोर्ट ने कहा, ‘‘राज्यपाल को व्यक्तिगत तौर पर संतुष्ट होना चाहिए। उन्होंने 35 विधायकों द्वारा विधानसभा में मत विभाजन की मांग किए जाने के बारे में अपनी व्यक्तिगत राय का उल्लेख नहीं किया।’’

कोर्ट ने कहा कि उनकी रिपोर्ट में यह नहीं कहा गया है कि कांग्रेस के 9 बागी विधायकों ने भी मत विभाजन की मांग की थी। इसने यह भी कहा कि ‘‘ऐसी सामग्री की निहायत कमी थी जिससे राज्यपाल को शंका हो’’ कि राष्ट्रपति शासन लगाने की जरूरत है।

कोर्ट ने कहा, ...यह शंका पैदा करता है
कोर्ट ने पूछा, ‘‘तो  राज्यपाल की रिपोर्ट से भारत सरकार को कैसे तसल्ली हुई कि 35 खिलाफ में हैं?’’ पीठ ने कहा, ‘‘19 मार्च को राष्ट्रपति को भेजे गए राज्यपाल के पत्र में इस बात का जिक्र नहीं है कि 35 विधायकों ने मत विभाजन की मांग की। इस बात का जिक्र नहीं होना शंका पैदा करता है। यह निहायत महत्वपूर्ण है।’’ इस पर केंद्र ने कहा कि 19 मार्च को राज्यपाल के पास पूरा ब्योरा नहीं था।

पीठ बर्खास्त किए गए मुख्यमंत्री हरीश रावत की याचिका और उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन को चुनौती देने वाली संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या इन आरोपों पर कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत कांग्रेस के 9 बागी विधायकों पर ‘‘निशाना साध रहे थे’’, यह अनुच्छेद 356 लगाने का आधार हो सकता है।

कैबिनेट नोट को गोपनीय क्यों रखा
कोर्ट ने कहा कि बागी विधायकों के बारे में ‘‘चिंता’’ ‘‘पूरी तरह अप्रासंगिक और अस्वीकार्य’’ है। कोर्ट ने यह भी पूछा कि राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने से संबंधित कैबिनेट नोट को ‘‘गोपनीय क्यों रखा गया है’’ और इस पर कोर्ट में चर्चा क्यों नहीं हो सकती या इसे याचिकाकर्ता (रावत) को क्यों नहीं दिया जा सकता।

खंडपीठ ने मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान भी बार-बार कहा कि खरीद-फरोख्त और भ्रष्टाचार के आरोपों के बावजूद बहुमत परीक्षण का एकमात्र संवैधानिक रास्ता विधानसभा में शक्ति परीक्षण है ‘‘जिसे अब भी आपको करना है’’।
(इनपुट एजेंसी से भी)

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