रमजान का पाक महीना नरेला क्वारेंटीन सेंटर में कई लोगों के लिए सूना रहा क्योंकि तबलीग़ी जमात के ज़्यादातर कार्यकर्ता जो यहां हैं वो अपने परिवारों से दूर हैं वापस जाने की कोई राह अभी दिख नहीं रही. लेकिन जब ये तबलीगी जमात के सदस्य इफ्तार के लिए शाम को इकट्ठा होते हैं, तो वे अपनी जान बचाने के लिए न केवल अल्लाह को बल्कि सफ़ेद कोट वाले फ़रिश्तों को भी याद करते हैं और उनका शुक्रिया अदा करते हैं. 42 वर्षीय मोहम्मद गौस ने एनडीटीवी को फोन पर बताया, “डॉक्टर मेरे लिए फरिश्ता की तरह हैं. हर दिन जब मैं नमाज के लिए घुटने टेकता हूं तो मैं उन सभी डॉक्टरों को याद करता हूं जो बिना किसी पक्षपात के एक महीने तक मेरी देखभाल करते थे जब मुझे एम्स झज्जर में भर्ती कराया गया था.''
उनके अनुसार डॉक्टरों और नर्सों के इलाज और प्यार ने उन्हें पूरी तरह से ठीक होने में मदद की. तमिलनाडु के रहने वाले गौस ने कहा, “जब मैं झज्जर पहुंचा तो मैं डर गया क्योंकि तबलीग को दिल्ली में कोरोना फैलाने के लिए दोषी ठहराया जा रहा था. लेकिन सभी मेडिकल स्टाफ ने मुझे यक़ीन दिलाया और बिना किसी भेदभाव के उन्होंने मेरी देखभाल की.” दिल्ली में अब उन्हें दो महीने हो चले हैं और अब वो अपने गांव जाना चाहते हैं. "अब जब मैं ठीक हूं तो मैं वापस जाना चाहता हूं लेकिन मुझे पता नहीं है कि मुझे कब अनुमति दी जाएगी." गौस अकेले नहीं हैं. तबलीगी जमात के लगभग 800 लोग नरेला क्वारेंटीन सेंटर में हैं और अपने घर वापस जाना चाहते हैं, लेकिन लॉकडाउन के कारण फंस गए हैं.
एक वरिष्ठ स्तर के एक अधिकारी ने एनडीटीवी को बताया, “इनमें से ज़्यादातर लोग तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के हैं. लॉकडाउन के कारण कोई इंटर डिस्ट्रिक्ट मूवमेंट हो नहीं रही इसीलिए वापस नहीं जा सकते.'' उनके अनुसार अब ट्रेनें शुरू हो गई हैं, लेकिन यह अब तमिलनाडु और आंध्र सरकार पर निर्भर करता है कि वो कितनी जल्दी उन्हें वापस जाने की अनुमति देंगे.
अब्दुल रशीद पेशे से एक दर्जी हैं और असम के निवासी हैं. वह भी पिछले एक महीने से नरेला क्वारेंटीन सेंटर में फंसे हुए हैं. वे बताते हैं, “मैं 1 मार्च को मर्कज आया था और 30 दिनों के लिए वहां था. मेरे समूह के साथ अप्रैल में हम अस्पताल में शिफ्ट हुए थे. मेरा टेस्ट नेगेटिव था लेकिन मेरे ग्रुप के अन्य लोगों का टेस्ट पॉजिटिव आया था." उनके अनुसार झज्जर के एम्स में एक महीने के लिए 35 लोगों के पूरे समूह का इलाज किया गया था. उन सभी की नेगेटिव रिपोर्ट के बाद उन्हें नरेला भेज दिया गया. "मैं अपने परिवार को याद करता हूं और उनके साथ रहना चाहता हूं. उम्मीद है कि हम ईद एक साथ मना पाएंगे." रशीद द्वारका क्वारेंटीन केंद्र में है.
अमरावती के रहने वाले अरशद अहमद ने COVID-19 महामारी से लड़ने के लिए सरकार द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों का पालन करने के लिए साथी नागरिकों से सकारात्मक आग्रह किया. अब अहमद ने कई अन्य लोगों के साथ मिलकर अन्य COVID-19 रोगियों के इलाज के लिए प्लाज्मा दान करने की स्वेच्छा से काम किया है.
तबलीगी जमात के सदस्यों द्वारा डॉक्टरों और नर्सों के साथ दुर्व्यवहार किए जाने की घटनाओं पर अहमद ने कहा कि जमात सदस्यों ने गलतफहमी में गलत व्यवहार किया कि उन्हें निशाना बनाया जा रहा है. 26 मार्च को निज़ामुद्दीन मरकज़ में शामिल हुए अहमद की 31 मार्च को टेस्ट रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी, जिसके बाद उन्हें करोनावायरस के इलाज के लिए हरियाणा के झज्जर भेजा गया था. मार्च में निज़ामुद्दीन मर्कज से लगभग 3000 भारतीय और 800 विदेशी तबलीगी जमात सदस्यों को निकाला गया था.
गृह मंत्रालय के डेटा के अनुसार उनमें से 1080 की रिपोर्ट पॉजिटिव आई. जिनमें लक्षण दिख रहे थे उन लोगों क्वारेंटीन सेंटरों में भेजा गया था. आंकड़ों के अनुसार उनमें से 150 का इलाज एम्स में, 80 जीटीबी में, 30 डीडीयू में, 200 एलएनजेपी में और 130 राजीव गांधी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में किया गया. रविवार को, सशस्त्र बलों ने कोरोना योद्धाओं के सम्मान में फ्लाईपास्ट, फूलों की वर्षा, बैंड और लिट-अप युद्धपोतों के साथ पिच किया था.
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