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This Article is From May 16, 2016

निरंकारी बाबा हरदेव सिंह का पार्थिव शरीर दिल्ली आया, अंतिम संस्कार 18 मई को

निरंकारी बाबा हरदेव सिंह का पार्थिव शरीर दिल्ली आया, अंतिम संस्कार 18 मई को
बाबा हरदेव सिंह का पार्थिव शरीर दिल्ली लाया गया
नई दिल्ली: कनाडा में 13 मई को सड़क हादसे में निधन के बाद निरंकारी समुदाय के प्रमुख बाबा हरदेव सिंह का पार्थिव शरीर सोमवार की सुबह दिल्ली के नार्थ कैंपस की निरंकारी कॉलोनी पहुंचा। परिवार के लोगों की रस्म अदायगी के बाद पार्थिव शरीर को बुराड़ी के ग्राउंड नंबर 8 पर अगले दो दिनों तक रखा जाएगा। वहां उनके अनुयायी अंतिम दर्शन करने के साथ श्रद्धांजलि दे पाएंगे।

दो दिन तक अंतिम दर्शन
बाबा हरदेव सिंह का अंतिम संस्कार निगमबोध घाट पर 18 मई को किया जाएगा। दूरदराज से हजारों की तादाद में आ रहे अनुयायियों के मद्देनजर अगले दो दिनों यानी 16 और 17 मई को चौबीसों घंटे दर्शन की व्यवस्था की गई है। 18 मई को सुबह 8 बजे बुराड़ी ग्राउंड से निगमबोध घाट के लिए बाबा हरदेव सिंह की अंतिम यात्रा निकलेगी और फिर अंतिम संस्कार होगा।

श्रद्धांजलि समारोह 18 मई को
18 मई को दोपहर 3 बजे से लेकर शाम 7 बजे तक बुराड़ी के ग्राउंड नंबर 2 पर श्रद्धांजलि समारोह का आयोजन किया जाएगा। 62 साल के बाबा हरदेव सिंह के साथ सड़क हादसे में उनके दामाद अवनीत सेतिया का भी निधन हो गया। पिता गुरबचन सिंह की हत्या के बाद 1980 में हरदेव सिंह निरंकारी समुदाय के प्रमुख बने थे।
 

अनुयायियों के लिए 'बाबा भोला'
दुनिया भर में बाबा हरदेव के एक करोड़ से ज्यादा अनुयायी हैं। उन्हें ‘बाबा भोला’ के नाम से भी जाना जाता था। बाबा हरदेव सिंह को वर्ष 1980 में संत निरंकारी मिशन के तत्कालीन प्रमुख तथा उनके पिता गुरबचन सिंह की हत्या के बाद मिशन प्रमुख बनाया गया था, जिसके बाद से वह 'सतगुरु' की उपाधि धारण करने लगे। 23 फरवरी, 1954 को दिल्ली में बाबा हरदेव सिंह का जन्म हुआ था और इस वक्त दुनिया भर में इनके एक करोड़ से ज़्यादा भक्त बताए जाते हैं। संत निरंकारी मिशन की दुनिया भर के 27 देशों में लगभग 100 शाखाएं हैं, तथा इनका मुख्यालय दिल्ली में है।

बाबा हरदेव सिंह की प्राथमिक शिक्षा रोजरी पब्लिक स्कूल में हुई थी जिसे वर्तमान में दिल्ली के संत निरंकारी कॉलोनी के नाम से जाना जाता है। पिता सतगुरु गुरबचन सिंह की हत्या के बाद बाबा हरदेव सिंह ने निरंकारी मिशन की गद्दी संभाली थी। उनके पिता की हत्या उग्रवादियों ने कर दी थी। पिता की असामयिक मृत्यु के बाद 26 साल की छोटी उम्र में उन्हें गुरु गद्दी सौंप दी गई।

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