
NGT को लेकर सुप्रीम ने अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा है कि एनजीटी के पास स्वत: संज्ञान लेने की शक्ति है. पर्यावरण से संबंधित मुद्दों पर NGT संज्ञान लेकर कार्यवाही शुरू कर सकता है. तीन जजों की बेंच ने इस पर फैसला सुनाया. अदालत के अनुसार पत्रों, ज्ञापन और मीडिया रिपोर्टों के आधार पर पर्यावरण से संबंधित मुद्दों पर कार्यवाही शुरू कर सकता है. इससे पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को जानकारी देते हुए बताया था कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के पास स्वत: संज्ञान लेने की शक्तियां नहीं है हालांकि वह पर्यावरण संबंधी चिंताओं को उठाते हुए पत्र या संचार पर कार्रवाई कर सकता है. सुप्रीम कोर्ट महाराष्ट्र के एक मामले से जुड़ी याचिकाओं पर यह तय करने के लिए सुनवाई कर रहा था कि क्या NGT किसी मामले पर खुद से संज्ञान ले सकता है. जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने केंद्र के इस पक्ष पर एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्य भाटी से पूछा था कि अगर कोई पत्र या हलफनामा एनजीटी के पास आए तो भी क्या वह उस पर संज्ञान नहीं ले सकता. इस पर भाटी ने कहा कि पत्र या हलफनामा मिलने के बाद मामले पर संज्ञान लेना व उस पर सुनवाई करना NGT के प्रक्रियात्मक अधिकार हैं. इन पर सुनवाई कर उल्लंघन के कारणों का पता लगाने और मामले में शामिल पार्टियों को नियमों का पालन करने के लिए उचित व्यवस्था देने का पूरा अधिकार रखता है.
इस दौरान पीठ ने अमिक्स क्यूरी आनंद ग्रोवर समेत अन्य वकीलों की दलीलें भी सुनीं. पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की ओर से पेश भाटी ने पीठ को बताया था कि पर्यावरण नियमों के अनुपालन और इसकी निगरानी के उद्देश्य को लेकर NGT का गठन हुआ था. प्रक्रियात्मक पहलू ट्राइब्यूनल की शक्तियों व अधिकारों को बाधित नहीं कर सकते, लेकिन कानून में कहीं भी स्वतः संज्ञान लेने के अधिकार नहीं दिए गए हैं, हालांकि इसकी शक्तियां किसी सूरत में कम नहीं हैं. भाटी ने राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण कानून 2010 की धारा 19 (1) का उल्लेख करते हुए कहा कि NGT प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों पर काम करता है. इस धारा में स्पष्ट कहा गया है कि यह ट्राइब्यूनल सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 द्वारा निर्धारित प्रक्रिया से बाध्य नहीं होगा.
NGT ने महाराष्ट्र में एक अपशिष्ट प्रबंधन के मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए पर्यावरण नियमों के उल्लंघन पर नगर महापालिका के ऊपर 5 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था, जिसके बाद कई याचिकाएं दाखिल कर सवाल उठाया गया है कि क्या NGT स्वत: संज्ञान ले सकता है. सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि बॉम्बे हाईकोर्ट पहले ही इस मामले पर सुनवाई कर रहा है तो क्या ऐसे में NGT को स्वत: संज्ञान लेने का अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई में कहा था कि पर्यावरण और वन कानूनों का उल्लंघन केवल दो पक्षों के बीच विवाद नहीं है, बल्कि यह आम जनता को भी प्रभावित करता है. पर्यावरण से संबंधित कानूनी अधिकारों के प्रवर्तन सहित पर्यावरण संरक्षण, वनों के संरक्षण और अन्य प्राकृतिक संसाधनों से संबंधित मामलों के प्रभावी और शीघ्र निपटारे के लिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम (एनजीटी), 2010 के तहत अधिकरण की स्थापना की गई है.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं