नई दिल्ली:
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने आरोप लगाया है कि मनमोहन सिंह ने मंत्रिपरिषद् गठित करने के प्रधानमंत्री के विशेषाधिकार का पहले सोनिया गांधी और अब उनके बेटे राहुल गांधी के आगे समर्पण कर दिया है।
संघ ने कहा, ‘‘मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनने तक, कैबिनेट के सहयोगियों को चुनना प्रधानमंत्री का विशेषाधिकार हुआ करता था। उन्होंने इस विशेषाधिकार का ना केवल सोनिया गांधी के आगे समर्पण कर दिया बल्कि उनके बेटे के आगे भी।’’
प्रधानमंत्री की ओर से रविवार को मंत्रिपरिषद में किए गए बड़े फेरबदल के अवसर पर संघ के मुखपत्र ऑर्गेनाइज़र के ताजा अंक के संपादकीय में कहा गया है कि राहुल गांधी को मंत्रिमंडल में लिए जाने या नहीं लिए जाने की खूब अटकलें लगाई जा रही थीं। अंत में कहा गया कि राहुल कैबिनेट में शामिल नहीं होंगे और केवल अनुभवी परामर्शदाता की भूमिका निभाएंगे।
इसी क्रम में संघ ने कटाक्ष किया, ‘‘सवाल यह है कि क्या राहुल इतने बड़े हो गए हैं कि एक अनुभवी परामर्शदाता की भूमिका निभा सकें?’’ संपादकीय में यह आरोप भी लगाया गया कि कैबिनेट में फेरबदल के सिलसिले में प्रधानमंत्री को ना केवल स्वतंत्र रूप से फैसला नहीं लेने दिया जाता है, बल्कि इस सिलसिले में उन्हें राष्ट्रपति से भी अकेले नहीं मिलने दिया जाता है।
इसमें कहा गया, ‘‘हद तो यह है कि प्रधानमंत्री खुद राष्ट्रपति से नहीं मिल सकते हैं। सोनिया उनके साथ जाती हैं। लोकतांत्रिक भारत के दो शीर्ष संवैधानिक व्यक्ति एक विदेशी मूल के व्यक्ति और बिना संवैधानिक अधिकारों और जिसकी जनता तथा देश के प्रति कोई जवाबदेही नहीं है, उसके हस्तक्षेप के बिना आपस में मिल नहीं सकते हैं।’’
कैबिनेट फेरबदल को ‘दिखावटी’ बताते हुए संघ ने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री ने एक बार फिर अपनी स्थिति को कमतर किया और देश की जनता की आकांक्षाओं पर खरे नहीं उतरे।’’
संघ ने कहा, ‘‘मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनने तक, कैबिनेट के सहयोगियों को चुनना प्रधानमंत्री का विशेषाधिकार हुआ करता था। उन्होंने इस विशेषाधिकार का ना केवल सोनिया गांधी के आगे समर्पण कर दिया बल्कि उनके बेटे के आगे भी।’’
प्रधानमंत्री की ओर से रविवार को मंत्रिपरिषद में किए गए बड़े फेरबदल के अवसर पर संघ के मुखपत्र ऑर्गेनाइज़र के ताजा अंक के संपादकीय में कहा गया है कि राहुल गांधी को मंत्रिमंडल में लिए जाने या नहीं लिए जाने की खूब अटकलें लगाई जा रही थीं। अंत में कहा गया कि राहुल कैबिनेट में शामिल नहीं होंगे और केवल अनुभवी परामर्शदाता की भूमिका निभाएंगे।
इसी क्रम में संघ ने कटाक्ष किया, ‘‘सवाल यह है कि क्या राहुल इतने बड़े हो गए हैं कि एक अनुभवी परामर्शदाता की भूमिका निभा सकें?’’ संपादकीय में यह आरोप भी लगाया गया कि कैबिनेट में फेरबदल के सिलसिले में प्रधानमंत्री को ना केवल स्वतंत्र रूप से फैसला नहीं लेने दिया जाता है, बल्कि इस सिलसिले में उन्हें राष्ट्रपति से भी अकेले नहीं मिलने दिया जाता है।
इसमें कहा गया, ‘‘हद तो यह है कि प्रधानमंत्री खुद राष्ट्रपति से नहीं मिल सकते हैं। सोनिया उनके साथ जाती हैं। लोकतांत्रिक भारत के दो शीर्ष संवैधानिक व्यक्ति एक विदेशी मूल के व्यक्ति और बिना संवैधानिक अधिकारों और जिसकी जनता तथा देश के प्रति कोई जवाबदेही नहीं है, उसके हस्तक्षेप के बिना आपस में मिल नहीं सकते हैं।’’
कैबिनेट फेरबदल को ‘दिखावटी’ बताते हुए संघ ने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री ने एक बार फिर अपनी स्थिति को कमतर किया और देश की जनता की आकांक्षाओं पर खरे नहीं उतरे।’’
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