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This Article is From Jul 06, 2016

मालेगांव ब्लास्ट: हाईकोर्ट ने दो पुलिसकर्मियों को दी गिरफ्तारी से अंतरिम राहत

मालेगांव ब्लास्ट: हाईकोर्ट ने दो पुलिसकर्मियों को दी गिरफ्तारी से अंतरिम राहत
मालेगांव ब्लास्ट की फाइल फोटो
मुंबई: बंबई उच्च न्यायालय ने 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में एक गवाह की गुमशुदगी में संलिप्त होने के आरोपी दो पुलिसकर्मियों को गिरफ्तारी से अंतरिम राहत देते हुए उन्हें मध्य प्रदेश की उस अदालत का रूख करने को कहा जिसने उनके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किए थे।

इंदौर की एक मजिस्ट्रेट अदालत ने 30 मई 2016 को निरीक्षक रमेश मोरे और सेवानिवृत्त सहायक पुलिस आयुक्त राजेंद्र घुले के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किए थे जिसके बाद दोनों ने यहां के उच्च न्यायालय में अग्रिम जमानत याचिकाएं दायर की थीं।

तीन हफ्ते के लिए मिली राहत
सीबीआई ने मोरे और घुले पर इंदौर निवासी दिलीप पाटीदार की गुमशुदगी में संलिप्त होने का आरोप लगाया है। पाटीदार 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में एक गवाह है। न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे ने दोनों को तीन हफ्ते के लिए गिरफ्तारी से अंतरिम राहत दे दी। इस दौरान उन्हें इंदौर की अदालत जाना होगा और अपने खिलाफ जारी गैर जमानती वारंट रद्द करने की मांग करनी होगी।

मोरे और घुले की तरफ से पेश हुए वकील निरंजन मुंदरगी ने अदालत से कहा कि सीबीआई ने दोनों को आरोपित करने के लिए आवश्यक मंजूरी न होने का हवाला देते हुए 2014 में मामले में क्लोजर रिपोर्ट दायर की थी। हालांकि इंदौर की अदालत ने सीबीआई के दावे को नामंजूर करते हुए वारंट जारी कर दिए।

सीबीआई के वकील हितेन वेनेगांवकर ने कहा कि एजेंसी जमानत याचिकाओं का विरोध करती है। उच्च न्यायालय ने हालांकि सवाल किया कि सीबीआई पहले ही जब मामले में क्लोजर रिपोर्ट दायर कर चुकी है तब वह अब जमानत याचिकाओं का विरोध क्यों कर रही है।


2008 में गायब हुआ था मुख्य गवाह
महाराष्ट्र की एक एटीएस टीम ने मालेगांव बम विस्फोट के दो महीने बाद दस नवंबर, 2008 को पाटीदार को इंदौर से पकड़ा था। उसे कालाचौकी पुलिस थाने ले जाया गया जहां मोरे और घुले ने उससे पूछताछ शुरू की थी। दोनों तब एटीएस में थे। पाटीदार के एक घर में मालेगांव विस्फोट के मुख्य आरोपी रामजी कलसांगरा ने कुछ समय बिताया था। एटीएस को लगा कि पाटीदार की गवाही से कलसांगरा के खिलाफ मामले को मजबूती मिलेगी। कलसांगरा फरार है।

17 नवंबर, 2008 को पाटीदार के परिवार की आखिरी बार उससे बात हुई थी। उसने फोन पर अपनी पत्नी से कहा था कि उसकी जान को खतरा है और पुलिस हिरासत में उसे प्रताड़ित किया जा रहा है। मोरे और घुले ने कहा कि उन्होंने 21 नवंबर को कालाचौकी पुलिस थाने से पाटीदार को रिहा किया था ताकि वह कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज लेकर लौटे लेकिन वह फिर कभी नहीं लौटा।

इसके बाद पाटीदार के परिवार वालों ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का रूख किया जिसने पुलिस को जांच करने के निर्देश दिए। पुलिस ने अदालत से कहा कि पाटीदार कहीं छिपा हुआ है। इसके बाद उच्च अदालत ने सीबीआई को मामले की जांच सौंप दी।

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय को दी गई अपनी रिपोर्ट में सीबीआई ने मोरे और घुले पर आपराधिक साजिश, अपहरण, गलत तरीके से बंधक बनाने और सबूत से छेड़छाड़ एवं उसे नष्ट करने का आरोप लगाया। उत्तरी महाराष्ट्र के मालेगांव शहर में 29 सितंबर, 2008 को हुए दोहरे बम विस्फोट में सात लोग मारे गए थे।

(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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