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This Article is From Oct 31, 2015

संगीतज्ञ जुबिन मेहता ने कहा, लेखकों की आवाज दबाकर सांस्कृतिक तानाशाह न बने सरकार

संगीतज्ञ जुबिन मेहता ने कहा, लेखकों की आवाज दबाकर सांस्कृतिक तानाशाह न बने सरकार
जुबीन मेहता (फाइल फोटो)
नई दिल्ली: देश में ‘असहिष्णुता के बढ़ते माहौल’ के मुद्दे पर लेखकों और अन्य का समर्थन करते हुए संगीतकार जुबिन मेहता ने शनिवार को कहा कि सरकार को उनकी आवाज दबानी नहीं चाहिए क्योंकि ऐसा करने से ‘सांस्कृतिक तानाशाही’ बढ़ेगी।

अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतंत्रता हो
रोली प्रकाशन द्वारा 2008 में प्रकाशित अपनी आत्मकथा ‘द स्कोर ऑफ माई लाइफ’ के पेपरबैक संस्करण को लांच करने के बाद उन्होंने कहा, ‘हमारे लेखक, हमारे फिल्म कलाकार अपनी बात कहते हैं। हमें उनकी आवाज नहीं दबानी चाहिए। अन्यथा हम तानाशाह हो जाएंगे, सांस्कृतिक तानाशाह और यह अस्वीकार्य है।’ मुंबई में जन्मे 79 वर्षीय संगीतज्ञ ने लेखकों और फिल्म निर्माताओं के लिए स्वतंत्रता की पूर्ण अभिव्यक्ति का इजहार करते हुए कहा कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में यह होना चाहिए।

जुबिन मेहता ने कहा, ‘अगर वे अपने विचार के बारे में लिखते हैं, तो सरकार को उन्हें नहीं दबाना चाहिए। अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिए। हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं।’ उन्होंने उम्मीद जताई कि सरकार ‘उन्हें चर्चा के लिए आमंत्रित करेगी और उनसे बात करेगी।’ भारत में 15 करोड़ से ज्यादा मुस्लिमों के बारे में बात करते हुए मेहता ने कहा, ‘मुस्लिमों को अकेले नहीं छोड़ना चाहिए। जब मस्जिद ढहाई जाती हैं और गिरिजाघर जलाए जाते हैं तो सरकार को कड़े शब्दों में बात करनी चाहिए।’ उन्होंने पाकिस्तान के साथ ज्यादा सांस्कृतिक और खेल संबंधों का पक्ष लिया जबकि शिवसेना के विरोध के बाद मुंबई में गजल गायक गुलाम अली का कार्यक्रम रद्द होने पर दुख जताया।

रवैया कश्मीरी अलगाववादियों से अलग कैसे...
यह पूछने पर कि क्या मुंबई की घटना से वह आश्चर्यचकित हैं, उन्होंने कहा, ‘बिल्कुल। यह ऐसा ही है जैसा कश्मीरी अलगाववादी हमें नहीं करने देना चाहते। अंतर क्या है?’ जुबिन ने 2013 में श्रीनगर के शालीमार गार्डन में आर्केस्ट्रा का आयोजन किया था, जिसका विरोध अलगाववादियों और समाज के लोगों ने किया और इसे कश्मीर में शांति की तस्वीर पेश करने का प्रयास बताया। मेहता ने कहा कि वह कश्मीर में फिर से परफॉर्म करना चाहेंगे।

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