एशियन चैंपियनशिप में गोल्‍ड, विक्रम अवार्ड भी मिला लेकिन खो-खो खिलाड़ी जूही को नहीं मिली सरकारी नौकरी..

जूही झा (Juhi Jha) जब मध्यप्रदेश (Madhya pradesh) के सर्वोच्च खेल सम्मान विक्रम अवॉर्ड (Vikram Award) से सम्मानित हुई तो परिवार के पास इंदौर से भोपाल आने के लिये ट्रेन में रिजर्वेशन करवाने के पैसे नहीं थे. ऐसे में वे जनरल डिब्बे में आईं, अवॉर्ड लिया और चली गईं.

एशियन चैंपियनशिप में गोल्‍ड, विक्रम अवार्ड भी मिला लेकिन खो-खो खिलाड़ी जूही को नहीं मिली सरकारी नौकरी..

जूही को मध्‍य प्रदेश के शीर्ष खेल सम्‍मान विक्रम अवार्ड से नवाजा जा चुका है

खास बातें

  • दो साल से सरकारी नौकरी के लिए कर रहीं इंतजार
  • सुलभ शौचालय में काम करते हैं जूही के पिता
  • अवार्ड लेने गई तो ट्रेन का रिजर्वेशन कराने के नहीं थे पैसे
भोपाल:

एशियन चैपियनशिप में खो-खो में सोने का तमगा जीतने के बाद तीन साल पहले खो-खो (kho-kho) प्‍लेयर जूही झा (Juhi Jha) जब मध्यप्रदेश (Madhya pradesh) के सर्वोच्च खेल सम्मान विक्रम अवॉर्ड (Vikram Award) से सम्मानित हुई तो परिवार के पास इंदौर से भोपाल आने के लिये ट्रेन में रिजर्वेशन करवाने के पैसे नहीं थे. ऐसे में वे जनरल डिब्बे में आईं, अवॉर्ड लिया और चली गईं. 12 साल तक सुलभ शौचालय में काम करने वाले पिता और 5 लोगों का परिवार इंदौर के कमरे में रहा. विक्रम अवार्ड मिलने के बाद लगा कि अब संघर्ष खत्म हो गया. लेकिन ये संघर्ष अब मंत्रालय की फाइलों से है.

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तीन साल पहले जब जूही झा अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में देश के लिये खेल रही थीं तब परिवार के सिर से सुलभ शौचालय का छोटा एक कमरा भी चला गया अब इंदौर में बाणगंगा के झोपड़े में रहती हैं, 2018 में तत्कालीन खेल मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया ने मध्य प्रदेश के सबसे ऊंचे खेल सम्मान, विक्रम अवॉर्ड से नवाजा लेकिन अब पिछले दो साल से नौकरी के लिए वे सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रही हैं. सरकारी नियमों के तहत विक्रम पुरस्कार विजेताओं को शासकीय नौकरी मिलती है, लेकिन जूही सिर्फ इंतज़ार ही कर रही है. 

जूही के पिता सुबोध कुमार झा इंदौर के सुलभ शौचालय में नौकरी करते हैं, एक छोटे से कमरे में पांच लोगों का परिवार 10 साल से ज्यादा समय तक रहा. मां रानी देवी झा सिलाई करके घर में मदद करती थीं. खो-खो खिलाड़ी जूही बताती हैं, 'खराब लगता था कि हम सुलभ शौचालय में रहते हैं, लेकिन गरीबी के कारण लाचार थे. मैं एक निजी स्कूल में स्पोर्ट्स टीचर बनी. 2016 में एशियन चैंपियनशिप में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व करते हुए स्वर्ण पदक जीता. 2018 में विक्रम पुरस्कार की घोषणा हुई. नियमानुसार विक्रम अवार्ड विजेता को शासकीय नौकरी एक साल के भीतर मिलती है, लेकिन मुझे अब तक नहीं मिली. जूही जिस निजी स्कूल में काम करती थी उस स्कूल को लगा कि सरकारी नौकरी मिलने पर वह बीच सत्र में चली जाएगी तो उन्होंने भी नौकरी से हटा दिया. इधर, सरकारी नौकरी मिली नहीं, उधर निजी स्कूल की नौकरी भी छिन गई. तब से वह लगातार सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रही हैं. इस बीच प्रदेश में तीन बार सरकारें बदल गईं. जूही कहती हैं, 'मुझे उम्मीद थी कि नए पुरस्कारों की घोषणा के साथ पुराने पुरस्कार प्राप्त खिलाड़ियों के लिए भी नौकरी की घोषणा होगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.'

जूही के पड़ोसी चेतन शिवहरे कहते हैं, 'इतनी मेहनत और कठिनाई के बाद बच्ची ने शहर का नाम रोशन किया है. स्वर्ण पदक लेकर आई है. सरकार से गुजारिश है कि मदद करे ताकि लोगों में खेलने की भावना जगे.इस मामले में खेल मंत्रालय में संयुक्त संचालक डॉ. विनोद प्रधान ने कहा मेरी जानकारी में ये बात है, शासन स्तर पर विक्रम पुरस्कार के बाद उत्कृष्ट घोषित करने की प्रक्रिया वल्लभ भवन में होती है. हर विभाग से जानकारी एकत्र करते हैं, वो बताते हैं कि कितनी वैकैंसी उस विभाग में हैं.1997 के कुछ प्रकरण थे जिसमें उत्कृष्ट सर्टिफिकेट देने के बाद उसे वापस लिया गया, इस वजह से थोड़ी देर हुई है लेकिन अगले हफ्ते तक निराकरण हो जाएगा. इस दौरान मध्यप्रदेश में तीन दफे सरकार बदल गई, देखते हैं सरकारी अधिकारियों में भावना कब जगती है.

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