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This Article is From Mar 01, 2022

"यह नरक जैसा था" : यूक्रेन से दिल्ली लौटे छात्र ने NDTV से कहा

शुभांशु ने एनडीटीवी को बताया, "हमने विन्नित्सिया से सीमा तक यात्रा की. हमारे कॉन्ट्रैक्टरों ने बसों की व्यवस्था की. हमें लगभग 12 किमी चलना पड़ा. समस्या रोमानियाई सीमा को पार करने में आई."

"यह नरक जैसा था" : यूक्रेन से दिल्ली लौटे छात्र ने NDTV से कहा
शुभांशु ने कहा, "कुछ छात्रों को राइफल के बट से मारा गया. स्थिति बहुत खराब हो गई. वे हमें पसंद नहीं कर रहे.
नई दिल्ली:

दिल्ली हवाई अड्डे पर आगमन टर्मिनल से बाहर निकलने के बाद एक मां और बेटे को एक-दूसरे को गले मिलते देखा गया. दरअसल, शुभंशु यूक्रेन से एक फ्लाइट के जरिए वापस भारत आया. दिल्ली हवाई अड्डे के बाहर छात्र ने एनडीटीवी को बताया, "यह नरक जैसा था." शुभंशु ने रोमानियाई सीमा तक पहुंचने के लिए अपनी और सैकड़ों भारतीय छात्रों की लंबी यात्रा और उन कठिनाइयों के बारे में बताया, जब वे यूक्रेन से पड़ोसी देशों में जाने की सख्त कोशिश कर रहे थे. जहां से उन्हें एयरलिफ्ट कर भारत लाया जा रहा है.

शुभांशु ने एनडीटीवी को बताया, "हमने विन्नित्सिया से सीमा तक यात्रा की. हमारे कॉन्ट्रैक्टरों ने बसों की व्यवस्था की. हम सुरक्षित रूप से सीमा पर पहुंच गए, हालांकि हमें लगभग 12 किमी चलना पड़ा. लेकिन पैदल चलने में कोई समस्या नहीं थी. समस्या रोमानियाई सीमा को पार करने में आई. एक समय पर यह सीमा पार करना असंभव हो गया था.”

बता दें कि विन्नित्सिया राजधानी कीव से 270 किमी दूर है, जहां रूसी और यूक्रेनी सेनाएं सड़क पर लड़ाई में लगी हुई हैं.

उन्होंने बताया, "छात्र रो रहे थे, मैंने देखा, और सीमा पार करने की अनुमति देने के लिए भीख मांग रहे थे. कुछ बेहोश हो गए, उनके (सुरक्षाकर्मियों के) पैरों पर गिर गए. कुछ छात्रों ने आपस में लड़ाई शुरू कर दी, 'मुझे पहले जाने दो, मुझे पहले जाने दो'. मैंने किसी भी हिंसा का सामना नहीं किया, लेकिन इसे होते हुए देखा. कुछ यूक्रेनी सैनिकों ने छात्रों को लातों से भी मारा." 

शुभांशु ने कहा, "कुछ छात्रों को राइफल के बट से मारा गया. स्थिति बहुत खराब हो गई थी. वे हमें पसंद नहीं कर रहे थे. जब सीमा के द्वार खुलते थे, तो वे पहले यूक्रेनियनों को जाने देते थे. लेकिन एक बार जब हम सीमा पार कर गए, तो भारतीय दूतावास ने हमारा अच्छे से ध्यान रखा. उसके बाद हमें कोई समस्या नहीं हुई. उसके बाद सब कुछ सुचारू रूप से चला. हमें भोजन और पानी मिला. मेरे कुछ दोस्त अभी भी शेल्टर में हैं और वे पांच सितारा आवास की तरह हैं, बहुत अच्छे हैं. लेकिन रोमानियाई सीमा में स्थिति खराब थी."

गौरतलब है कि करीब 16,000 भारतीय छात्र अभी भी यूक्रेन में फंसे हुए हैं. कई लोगों ने सोशल मीडिया पर भूमिगत बंकरों, मेट्रो स्टेशनों और बम शेल्टरों से तस्वीरें और वीडियो साझा किए हैं, जहां वे पिछले गुरुवार को रूसी हमले शुरू होने के बाद से छिपे हुए हैं. लगभग 9,000 भारतीय नागरिक विभिन्न विशेष उड़ानों से रवाना हुए हैं. एयरपोर्ट पर अपने बच्चों को लेने पहुंचे कई अभिभावकों ने राहत जताई.

ऐसे ही बिहार के मोतिहारी के रहने वाले जैनेंद्र कुमार के लिए पिछले कुछ दिन उनके सबसे बुरे सपने से परे थे, क्योंकि उनका बेटा और बेटी दोनों यूक्रेन में फंस गए थे.

उनकी 21 वर्षीय बेटी प्राची अपने भाई के साथ पश्चिमी यूक्रेन के इवानो-फ्रैंकिव्स्क के एक विश्वविद्यालय में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही है. रोमानिया में सीमा पार करने की कोशिश के दौरान कल वह उससे अलग हो गई. वह दिल्ली के लिए उड़ान भरने में कामयाब रही और वापस आ गई, लेकिन उसका भाई वहीं रह गया था. आखिरकार जैनेंद्र कुमार का 22 वर्षीय बेटा रोमानिया की राजधानी बुखारेस्ट से लौट आया.

जैनेंद्र कुमार ने एनडीटीवी को बताया, "हमारा परिवार युद्ध शुरू होने के बाद से पिछले नौ दिनों से दिल्ली में है. तब से मेरी रातों की नींद उड़ गई है क्योंकि मेरे बच्चे यूक्रेन में फंस गए थे. यह सब बहुत तनावपूर्ण था. बच्चे फंस गए थे और सीमा तक पहुंचने के लिए संघर्ष कर रहे थे. लेकिन अंत में, सरकार ने रोमानिया में प्रवेश करने के बाद मदद की."

एक और अभिभावक जसलीन मल्होत्रा, आज सुबह 9 बजे से एयरपोर्ट पर इंतजार कर रही थीं. जब उनकी 22 वर्षीय बेटी सिमरन आखिरकार पांच घंटे बाद दोपहर 2 बजे पहुंची तो दोनों ने कई मिनट तक एक-दूसरे को गले लगाया.

जसलीन ने एनडीटीवी को बताया, "मैं उसे यहां वापस पाकर बहुत राहत महसूस कर रही हूं. पिछले कुछ दिन हमारे लिए अब तक के सबसे कठिन दिन रहे हैं." वहीं सिमरन ने एनडीटीवी को बताया, "रोमानिया सीमा पर बर्फबारी हो रही थी. तापमान शून्य से माइनस 12 डिग्री सेल्सियस था. खाना और पानी नहीं था. कोई आश्रय नहीं था. सीमा के इस तरफ कोई भारतीय दूतावास के अधिकारी नहीं थे, क्योंकि मुझे लगता है कि उन्हें अनुमति नहीं है. जब हम रोमानिया गए तो हम भारतीय अधिकारियों से मिले जिन्होंने हमें भारत वापस लाने में मदद की."

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