भारत बायोटेक-निर्मित कोवैक्सीन को इमरजेंसी यूज लिस्टिंग में जगह मिलने के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की मुख्य वैज्ञानिक डॉ सौम्या स्वामीनाथन ने एनडीटीवी को बताया कि बच्चों पर कोवैक्सीन का इस्तेमाल करने के लिए क्लीयरेंस में काफी कम समय लगेगा. डब्ल्यूएचओ की मंजूरी मिलने के मायने ये हैं कि अब 'मेड-इन-इंडिया' वैक्सीन को अन्य देशों में मान्यता मिल जाएगी. इसे लगवाने वाले भारतीयों को विदेश यात्रा करते समय खुद को क्वारेंटाइन करने की जरूरत नहीं होगी और न ही प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा.
गौरतलब है कि डब्ल्यूएचओ की इमरजेंसी यूज लिस्टिंग सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थितियों के दौरान उपयोग किए जा सकने वाले नए, या बिना लाइसेंस वाले उत्पादों का आकलन करने और सूचीबद्ध करने के लिए एक जोखिम-आधारित प्रक्रिया है.
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डॉ स्वामीनाथन ने साफ किया कि कोवैक्सीन को WHO से मंजूरी लेने में सबसे ज्यादा समय लगा. उनका बयान इस आलोचना के काउंटर के रूप में आया कि डब्ल्यूएचओ ने अन्य वैक्सीन यहां तक की चीन की निर्मित वैक्सीन को भी जल्दी मंजूरी दे दी थी, लेकिन कोवैक्सीन को नहीं. उन्होंने कहा कि मंजूरी मिलने में औसतन 50 से 60 दिन का समय लगता है, लेकिन कई मामलों में 165 दिन भी लग जाते हैं. कोवैक्सीन को 90 से 100 दिनों का वक्त लगा.
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उन्होंने कहा कि इमरजेंसी यूज लिस्टिंग के लिए डब्ल्यूएचओ पैनल ने पिछले सप्ताह कोवैक्सीन पर मुलाकात कर अतिरिक्त स्पष्टीकरण मांगा था. "समिति ने आज फिर से मुलाकात की और बहुत संतुष्ट थे. अभी 13 अन्य वैक्सीन हैं जिन्हें मंजूरी का इंतजार है." जब उनसे पूछा गया कि क्या यह वैक्सीन गर्भवती महिलाओं के लिए पूरी तरह से सुरक्षित है, तो उन्होंने कहा कि इस पर जवाब देने के लिए और डेटा की जरूरत होगी. "हमें अब तक यह पता है कि भारत में कई गर्भवती महिलाओं को कोवैक्सीन की डोज दी गई है, हम डेटा का इंतजार कर रहे हैं." वहीं जब उनसे यह पूछा गया कि इसका बच्चों या नवजात पर क्या असर होगा तो इस पर भी उन्होंने यही कहा कि इसके जवाब के लिए भी और डेटा की जरूरत होगी.
वैक्सीन को बच्चों के लिए मंजूरी मिलने में कितना वक्त लग सकता है, इस सवाल के जवाब में डॉ स्वामीनाथन ने कहा कि इसमें ज्यादा वक्त नहीं लगना चाहिए, लेकिन यह डेटा पर निर्भर करता है."
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